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Friday, September 27, 2019

Mai aur Mera gum

चले हैं लोग मैं रस्ता हुआ हूं
मुद्दत से यहीं ठहरा हुआ हूं
ज़माने ने मुझे जब चोट दी है
मैं जिंदा था नहीं जिंदा हुआ हूं
मैं पहले से कभी ऐसा नहीं था
मैं तुमको देखकर प्यारा हुआ हूं
मैं कागज सा न फट जाऊं
ए लोगो उठाओ ना मुझे भीगा हुआ हूं
मेरी तस्वीर अपने साथ लेना
अभी हालात से सहमा हुआ हूं
कभी आओ इधर मुझको समेटो
मैं तिनकों सा कहीं बिखरा हुआ हूं
चलो अब पूछना तारों की बातें
अभी मैं आसमां सारा हुआ हूं
मुसलसल बात तेरी याद आई गया
वो वक़्त मैं उलझा हुआ हूं
बुरा कोई नहीं होता जन्म से
मुझे ही देख लो कैसा हुआ हूं
ज़माने ने मुझे जितना कुरेदा
मैं उतना और भी गहरा हुआ हूं

Monday, June 17, 2019

MERI DIARY

MERI DIARY

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today I went to the beach.
my favorite part is
when the ocean starts
showing up above the horizontal line
drawn by the asphalt.
you see this second shade of blue,
darker,
getting bigger, closer
and you breathe that refreshing salty smell
and you close your eyes
and take a deep breath
as if getting ready to enter another state of mind,
transcend.

the sand was unbearably hot
the water was warmer and warmer
strange pieces of seaweed floated 
and touched my body,
got stuck in my hands, arms, curls.
but at least I saw a turtle
swimming as if it was as peaceful 
as I am now that I've came back from the ocean,
wet and with my hair full of sand,
my skin darker,
my mind as clear as that blue sky...

the weather forecast says it is going to rain soon

Saturday, June 8, 2019

मेरी यात्रा गाव से शहर की ओर

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 1 - लेट्स मूव ऑन
नाम क्षितिज, पूरा नाम क्षितिज मोहन , पिता का नाम रामनरेश सिंह । ट्रेन नंबर 19722 बिहार सप्त क्रांति एक्सप्रेस, कोच नंबर A2 सीट नंबर 42 । क्षितिज सीट पे लेटा हुआ मोबाइल पर फेसबुक का newsfeed स्क्रॉल कर रहा था, तभी फ़ोन बजा ।

"नमस्ते पापा !”
“हाँ बेटा खुश रहो, ट्रेन  देवारिया पहुंच गयी है, मुश्किल से 10 मिनट और लगेगा भाटपार  रानी पहुंचने में, अभी एन्कवारी में पूछे थे हम । हम प्लेटफार्म नंबर 3 पर ही खड़े है ।”
“अरे पापा आपको आने की क्या जरूरत थी, मै बस ले के आ जाता । “
“अरे तुम समझते नहीं हो, आजकल यहाँ माहौल बहुत ख़राब चल रहा है । और ऊपर से अभी नई नई नौकरी लगी है, अकेले जाना ठीक नहीं था इसलिए आ गए ।” पापा अंदर ही अंदर बेटे से मिलने को आतुर हो रहे थे । ” अच्छा सुनो सारा सामान निकाल लो और ट्रेन के दरवाजे पर आ जाओ क्यूंकि गाडी यहाँ बस दो मिनट के लिए ही रूकती है। “
“अरे पापा आप खामखा….. “
ट्रेन नंबर 19722 बिहार सप्त क्रांति एक्सप्रेस, नई दिल्ली से चलकर बरौनी को जाने वाली, कुछ ही समय में प्लेटफार्म नो 3 पर आ रही है । ट्रेन जैसे जैसे धीरे हो रही थी , रामनरेश क्षितिज को मिलने के लिए आतुर हुए जा रहे थे । ट्रैन जैसे ही रुकी, रामनरेश सरपट कोच न A2 के द्वार की तरफ बढे और क्षितिज का सामान उतरने लगे ।
” पापा आप छोड़िये मै ले लूंगा । “
पर पिताजी कहा मानने वाले । खुद से सारा सामान उठाकर बहार तक लाते है और खुद ही गाडी की डिक्की में डालते है । क्षितिज थोड़ा असहज महसूस कर रहा था, अचानक क्या हो गया है पापा को ?
आज पहली बार रामनरेश भी क्षितिज के साथ पीछे वाली सीट पर बैठे थे और रास्ते भर क्षितिज से उसके नौकरी के बारे में पूछ रहे थे ।
गाड़ी घर के दरवाजे पर पहुंची और माँ की आँखे हर बार की तरह बेटे को देखने के लिए विवश थी । जैसे ही क्षितिज गाडी से उतरा माँ ने उसे गले से लगा लिया और बोलने लगी ये ऑफिस वाले बहुत काम करा रहे है हमारे बेटे से , कितना दुबला हो गया है हमारा बेटा !
“चलो अंदर, कुछ खिलाओगी पिलाओगी बेटा को या यहीं दरवाजे पर ही रखने का विचार है ?” रामनरेश मजाकिया मूड में हाथ में क्षितिज का बैग लिए बोल पड़े ।
शाम हुई , पिताजी क्षितिज को अपने मित्रो से मिलाने ले गए । आज पिताजी का सीना गर्व से फूल रहा था ।
” नमस्ते अंकल ” क्षितिज विनम्र भाव से पैर छूकर प्रणाम किया शर्मा जी ( रामनरेश जी के खास मित्र ) को ।
“खुश रहो बेटा । पापा बता रहे थे तुम्हारी नौकरी के बारे में । बहुत तारीफ कर रहे थे, तुम बताओ कैसा चल रहा है ? ” शर्मा जी क्यूरोसिटी से पूछ रहे थे क्यूंकि उनका बेटा भी इस बार दसवीं की परीक्षा में शामिल हो रहा था और उनको भी बेटे को आई आई टी में दाखिले के लिए कोचिंग में तयारी के लिए भेजना था ।
“अरे शर्मा बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद, यहाँ बैठे बैठे लोग गांड से प्याज काट रहे है । जा के देखने पर दिमाग घूम जायेगा । अमरीका की कंपनी में नौकरी करता है हमारा क्षितिज। 10 महाले का ये लम्बा टावर है और अंदर ही खाने पिने, खेलने आदि सारी सुख सुविधाएं उपलबध है । 6 महीने और उसके बाद अमरीका हेड ऑफिस में ट्रांसफर हो जायेगा । ” क्षितिज कुछ बोल पाता उससे पहले ही उत्तेजित रामनरेश जी ने पूरा बखान कर दिया ।
दोनों घर आये, माँ ने आज रात में क्षितिज का फेवरेट मटन और काश्मीरी पुलाव बनाया था ।
“बेटा ये डाइटिंग वाइटिंग के चक्कर तुम कहा पड़ गए हो ? अच्छा बस एक पीस और ले लो, फिर तो वहाँ जा के वही फ्रीज में जमाया हुआ चिकन खाना पड़ेगा ।” माता जी का उसी जूनून और प्यार के साथ क्षितिज का वजन बढ़ाने का अटूट प्रयास जारी था ।
“अरे खाओ भाई, देसी मटन है एकदम ताजा, सामने कटवा के लाये हैं । ” पिताजी मूछों को ताव देते हुए बोले ।
क्षितिज आज पहली बार अपने ही घर में बहुत असहज महसूस कर रहा था । बिस्तर पर लेटा रहा लेकिन नींद नहीं आ रही थी । रात के 1 बज गए थे, पूरा सन्नाटा छाया हुआ था, खिड़की से चाँद ऐसे झाँक रहा था मानो, प्रेमिका अपने प्रेमी को देख रही हो । क्षितिज अचानक उठा और बैग से एक पेपर और पेन निकाला और कुछ लिखने लगा ।
“पापा मुझे नहीं पता क्या गलत हैं या क्या सही , लेकिन आज पहली बार मै अपने ही घर में असहज महसूस कर रहा हूँ। मुझे आज भी याद हैं 18 मई का वो दिन जिस दिन मेरा आई आई टी का रिजल्ट आया था, और मै अपने कमरे में उदास पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था सबकुछ ख़त्म ही गया हैं ।
तभी आप अचानक तमतमाते हुए मेरे कमरे में घुसे और झुंझलाते हुए कहने लगे, नाक कटा दिया तुमने उस अभागन लड़की ( क्षितिज की गर्लफ्रेंड) के चक्कर में । तुम्हारे जैसे संतान से अच्छा हैं निसंतान रहना । फिर आप अचानक बहार गए और किसी से जोर जोर से बातें करने लगे । मुझे भी ऐसा लगा की मै अब आपके घर में रहने के लायक नहीं हूँ और मैंने अपने बैग में दो चार कपडे डाले और मोबाइल ले कर निकल गया ।
आँखों में आँसू और अंदरकारमय भविष्य के साथ मै घर से निकला था । मैंने अनिशा ( क्षितिज की गर्लफ्रेंड) को कॉल किया और बोला की मुझे अभी मिलना हैं तुमसे, बताओ कहा आना हैं । समय नहीं हैं मेरे पास । मेरे पहुंचने से पहले ही वो स्टेशन पे पहुंच चुकी थी । हाथ में पर्स, ग्रे टॉप, ब्लू जीन्स और गले में स्टाल पिंक कलर का ।
मुझे देखते ही अनीशा ने गले से लगा लिया ।
“मै घर से जा रहा हूँ ।”
“हाँ पता हैं मुझे । तुम्हारे घर से किसी का फ़ोन आया था मेरे पापा के पास, सबलोग बहुत टेंशन में हैं ।” उसने भी आँखों से आँसू रोकते हुए बोला ।
“तुम्हे क्या लगता था, हाँ ? समाज और प्यार में हमेशा जीत समाज की होती हैं । प्यार की जीत बस फिल्मों में होती हैं । यहाँ तो एक लड़की शाम तक लड़की रहती तो भोर होते होते उसके मांग में सिंदूर भर कर उसे औरत बना दिया जाता हैं, फिर चाहे वो चीखती रहे या चिल्लाती रहे, घंटा किसी को फर्क नहीं पड़ता हैं । बाकी तो तुमको समझाने की जरुरत हैं नहीं । “
मै स्तब्ध सुनता रहा उसको गले से लगाकर । उसने इसी बीच मेरे पिछले जेब में न जाने कब 4 , 500 के नोट और एक पेपर रख दिया था, जो आज भी मेरे पास हैं और मै कभी कभी उस पेपर के टुकड़े को देख कर मुस्कुरा दिया करता हूँ । उससे मै अंतिम बार तभी मिला था ।
तबसे आज तक मेरी आदत हैं, एक सख्त पिता और बेटे के रिश्ते की । मै अचानक इसबार आपके इस रवैये को देखकर बहुत असहज महसूस कर रहा हूँ और इसलिए मै वापस दिल्ली जा रहा हूँ । आशा करता हूँ अगली बार जब मै वापस आऊंगा तो आप वही सख्त पिता की तरह पेश आएंगे ।
अमरीका वाली कंपनी में काम करे वाला आपका बेटा,
क्षितिज मोहन “



क्षितिज यह पत्र अपने बिस्तर पर रखकर रात को ही बिना किसी को बताये घर से वापस दिल्ली आ गया 😯😯😯😯😯📑📑📑📑

काश तेरी बातो पर यकींन होता


काश तेरी बातो पर यक़ीन होता


काश तेरी बातो पर यकींन होता::
आई सी यू में लडकी


काश...!!
आई सी यू के बाहर काँच की खिड़की से अंदर देखते हुए आरुष की आंखों से लगातार ही आंसू बह रहे थे बेड पर जो लड़की अपनी मौत से इस वक़्त जंग लड़ रही थी वो कोई और नही उसका प्यार था वो पिछले कोई 5 साल से इस रिश्ते में था ..शादी करना चाहता था।।
उस दिन दोपहर बाद 3 बजे की बात को याद करते हुए आरुष की आंखों के आंसू फिर से बेलगाम हो के बह निकले।।
3 बजे के आसपास ही फ़ोन आया था दीपा का "हेलो आरुष मैं अपने ऑफिस के फ़्रेंड्स के साथ आज बाहर जा रही हु घूमने "
आरुष उस वक़्त अपने सिविल सर्विसेज की कोचिंग के लिए नोट्स वैगरह रख रहा था बैग में बस रेडी था जाने को--
"हेलो दीपा कितनी बार कहा है तुमसे तुम अपने उन वाहियात दोस्तो के साथ मत जाया करो वो मुझे बिल्कुल भी पसंद नही है"
दीपा का उधर से भन्नय हुआ जवाब आया "तुम्हे तो मैं ही नही अब पसंद हु हर बात पे रोकते टोकते रहते हो यह मत जाओ वहाँ मत जाओ इसके साथ मत जाओ उसके साथ मत जाओ में तो तंग आ गयी हु तुमसे हर बात पे ओवर रियेक्ट करते हो बात बात पे उल्टी सीधी बाते करने लगते हो मुझे बात ही नही करनी है तुमसे तुम्हारा रोज का ये नाटक हो गया है प्यार से तो बात करते ही नही ऊपर से इतनी बंदिशें "
इतना सब कुछ कहने के बाद उसने फ़ोन काट दिया।।
आरुष ने कॉल किया तो उसने काट दिया फ़ोन को एक दो बार कॉल लगाने के बाद उसने फ़ोन को रिसीव किया तो उसका लहज़ा बदल हुआ नही था
"दीपा सुनो तो मेरी बात देखो में तुम्हारे साथ वह नही हु तो मेरी ज़िम्मेदारी बनती है के में तुम्हे सही और ग़लत क्या है इसको पहचानने में तुंहरी मदद करु "
"प्लीज आरुष ये अपनी फिलॉसफी किसी और को सुनाना मुझे कोई बात नही करनी"
"हेलो यार दीपा बात तो सुनो अच्छा बताओ तो कौन कौन जा रहा है ... नंदिनी जा रही है साथ मे या नही "
"नही नंदिनी छुट्टी पे है... प्रीति जा रही है साथ मे बाकी पीयूष विक्रम और राहुल है "
"कहा जा रहे हो सारे" आरुष ने हार मानते हुए पूछा "हम लोग लांग ड्राइव पे जायेगे नोएडा एक्सप्रेस वे पर उसके बाद एक हाउस पार्टी है राहुल के फ्लैट पे "
"यार दीपा मुझे ये हाउस पार्टी और ये लांग ड्राइव कुछ समझ नही आता तुम लोग आस पास किसी मॉल में भी जा सकते हो "
"तुम कभी नही बदल सकते आरुष फिर वही के वही आ गए "
"तुम कभी नही बदल सकते आरुष कभी नही "
दीपा की आवाज़ गुस्से से भरी हुई थी
"अच्छा सुनो दीपा ठीक है जाओ लेकिन जल्दी आ जाना ज्यादा देर से मत आना वरना तुम तो जानती हो के दिल्ली का माहौल क्या है "
आरुष दीपा की ज़िद के आगे आत्म समर्पण करते हुए बोला।।
दीपा न भी कहा वो निकलते हुए उसे कॉल कर देगी ।।
जब से दीपा जॉब के लिए दिल्ली आयी थी तो आरुष और दीपा की बात बस फ़ोन पर ही हो पाती थी महीने में एक आधा बारी ही मिल पाते थे दीपा का स्वभाव चंचल था वो खूबसूरत भी थी इसलिए आरुष को उसको बहुत फिकर रहती थी इस वजह से ही आरुष दीपा पे बंदिशें लगाने की कोशिशें करता लेकिन अंतिम रूप से उसे दीप की ही बात माननी पड़ती थी हमेशा ।।
उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था।।
आरुष ने जाने के लिए कह तो दिया लेकिन उसका मन नही लग रहा था उसने बैग उठाया और कोचिंग के लिए निकल गया आरुष अलाहाबाद में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था।।
अक्सर दीपा उससे इस बात पे झगड़ा करती थी के वो उसपे बंदिशें लगाता है आरुष हमेशा कहता के वो उसकी फिकर करता है इस वजह से ऐसा करता है लेकिन शायद दीपा के दिल पर दिल्ली के माहौल कुछ ज्यादा ही असर हो गया था वो अब बंदिशे बर्दाश्त नही कर पा रही थी और इसी बात को लेकर उनमे आये दिन झगड़ा होता रहता था।।
इधर दीपा अपने दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त थी उधर आरुष का मन कोचिंग में बिल्कुल नही लग रहा था ।।
दीपा, राहुल ,विक्रम, प्रीति सारे राहुल की स्कोडा कार से एक्सप्रेस वे पर मौज मस्ती कर रहे थे राहुल ने विक्रम से कहा "विक्रम यार हम लोग वापस चलते है हमारे कुछ और दोस्त भी घर पर ववेट कर रहे है "
विक्रम ने भी हा में हां मिलाई और वो वापस चले दिए
रास्ते मे दीपा ने राहुल से कहा "राहुल मेरा हॉस्टल रास्ते मे पड़ेगा तुम छोड़ देना मुझे पार्टी नही करनी यार देर हो जाएगी"
इस बात पर राहुल ने उसका मजाक बनते हुए कहा "एक बात बताओ तुम आरुष को प्यार करती हो या उसकी गुलामी जब देखो तब वो बस हम लोगो के प्रोग्राम की ऐसी की तैसी कर देता है"
दीपा ने झेंपते हुए कहा"मैं किसी की गुलाम नही हु तुम ज्यादा न बोलो में इसलिए कह रही थी क्यों के कल आफिस में ज्यादा काम है तो जल्दी जाना है और कुछ नही "
"काम ज्यादा है तो मैं हु न मिल के कर लेंगे काम" राहुल ने कहा
"मैं हूं न हम लोग मिल के काम कर लेंगे" राहुल ने कहा तो दीपा ने कहा "नही राहुल रात ज्यादा हो जायेगी बात को समझो प्रीति तो तुम्हारे घर के पास ही रहति है उसका सही है जाना मुझे तुम रास्ते मे छोड़ते हुए चले जाना"
विक्रम ने बीच मे टोकते हुए कहा " मैं तुम्हे रास्ते मे छोड़ के अपने घर निकल जाऊंगा परेशान न हो "में भी आ जाऊंगा फालतू ही परेशान हो "बीच मे ही राहुल बोल पड़ा ।।
दीपा चुप हो गयी और उसने अपने फ़ोन को निकाल के एक कॉल आरुष को करनी चाही लेकिन फिर पता नही क्या सोच के फ़ोन को वापस रख लिया ।।
राहुल ने गाड़ी की स्पीड बढा दी और वो लोग लगभग आधे घंटे में राहुल के फ्लैट पे पहुच गएll
आरुष की क्लास 9 बजे छूटती थी लेकिंन मन न लगने की वजह से वो शाम 8 बजे ही कोचिंग से निकल गया रास्ते मे उसने न तो बस न ऑटो ही किया पैदल पैदल ही अपने रूम की तरफ चल दिया रास्ते मे चलते हुए वो बस दीपा के ही बारे में सोच रहा था उसने अपना फ़ोन निकाला और कॉल मिला दिया दो बार रिंग गयी लेकिंन फ़ोन रिसीव नही हुआ तो उसे मन ही मन गुस्सा आया लेकिन वह कुछ करने की स्तिथि में भी नही था सो फ़ोन वापस जेब मे रख लिया ।।
रास्ते मे चाय पीने की सोच कर वो चाय की टपरी की तरफ बढ़ गया चाय वाले को एक चाय के लिए कह के वो वह पड़ी हुई बेंच पे बैठ गया।।
मन अशांत था आरुष का... बार बार दीपा को सोच रहा था फ़ोन फिर निकाला और मिलाने लगा कॉल गयी तो लेकिन उधर से फ़ोन कट गया उसने ये सोच के फ़ोन दोबारा नही मिलाया के जब दीपा फ्री होगी तो खुद ही कॉल करेगी।।
तभी उसके फ़ोन पे कॉल आयी उसने सोचा दीपा होगी लेकिन फ़ोन उसके दोस्त अनुज का था अनुज ने उससे कहा "अरे आरुष तुझे याद नही क्या आज uppcs का फाइनल रिजल्ट आने वाला था भाई मैने अभी अपना रिजल्ट देखा है मेरी रैंक अच्छी तो नही कह सकते लेकिन हां मेरा सेलेक्शन हो गया है मुझे यकीन है भाई आरुष तेरा जरूर सेलेक्शन हुआ होगा और वो भी अच्छी रैंक पर क्यों के तूने बड़ी मेहनत की इस बारी"
आरुष दीपा को लेकर इतना चिंतित था के उस रिजल्ट वाली बात का कुछ याद ही नही रहा उसने अनुज से कहा "अनुज यार मैं अभी ही क्लास ड्राप करके निकला मुझे बिल्कुल याद नही रहा के आज रिजल्ट आने वाला है"
अनुज ने कहा "कोई नही तू अपना रोल नंबर मुझे मैसेज कर दे"
"तू अपना रोल नम्बर दे में अभी देख के बताता हूं " अनुज ने कहा तो आरुष ने अपना रोल नंबर उसे बात दिया फ़ोन कटने के बाद उसने चाय पीते पीते ही एक बार दीपा को फिर से कॉल किया लेकिन फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था पता नही क्यों आरुष का मन आशंकाओ से भर उठा उसने चाय वाले को पैसे दिए और वह से निकल गया।।
रूम पे पहुँचा ही था के कॉल आ गया अनुज का "आरुष मेरे भाई कमाल कर दिया तूने भाई तेरी रैंक 124 है भाई अभी आ रहा हु रूम पे तेरे हैम लोग बाहर खाना खाएंगे और संगम किनारे घूम केे आएंगे " आरुष ने हामी भर दी और तुरंत ये खबर अपने मम्मी पापा को दी तो पूरे परिवार और उसके गांव में खुशी की लहर दौड़ गई सभी खुश थे पूरा गांव आरुष के घर बधाई देने आ रहा था ।।
अनुज ने आरुष के हॉस्टल के बाहर से ही कॉल किया "भाई में नीचे हु आ जा जल्दी से बड़ी भूख लगी है " आरुष ने बस दो मिनट में पहुचने की बात कह के फ़ोन काट दिया।।
आरुष अपनी क़ामयाबी की खबर माँ बाप के बाद जिसको बताना चाह रहा था वो उसकी दीपा ही थी लेकिन दीपा की कॉल न लगने की वजह से वो उसे बात नही पा रहा था बड़ी बेचैनी सी हो रही थी आरुष को अब उसे फिकर होने लगी थी के वो कहा होगी क्या कर रही होगी कुछ ऐसा वैसा तो नही हुआ होगा मन मे विचारों की आंधिया लिए हुए आरुष अनुज के पास पहुचा तो वो बाइक लिए खड़ा था।।
"क्या भाई लड़कियों की तरह कितना टाइम लगाते हो"आरुष ने बस मुस्कुरा के उसके मजाक उत्तर दिया और बाइक के पीछे बैठ गया।।
अनुज ने बाइक एक रेस्टोरेंट के बाहर रोकी और दोनों अंदर चले गए, खाना आर्डर करने के बाद दोनों अपने रिजल्ट और अन्य सहपाठियों के रिजल्ट पर चर्चा करने लगे इसी बीच खाना टेबल पर आ गया ।।
खाना खाने के बाद दोनों ही संगम किनारे टहलने निकल गए, चांदनी रात में चमकती हुई संगम के रेत में दोनों बैठ के बातें करने लगे आरुष का मन अब भी दीपा की तरफ ही लगा हुआ था उसकी परेशानी अनुज को भी साफ दिख रही थी, उसने पूछ ही लिया "क्या बात है आरुष आज इतना अच्छा दिन है हम लोगों की ज़िन्दगी का और तुम आज भी परेशान से दिख रहे हो क्या बात है दीपा से कुछ झगड़ा हुआ है क्या" आरुष ने पहले तो बात को टालमटोल किया लेकिन उसके बार बार पूछने पर अपनी परेशानी का सबब और पूरे घटनाक्रम को बता दिया ।।
आरुष ने सारी बात अनुज को बतायी तो अनुज ने उसे सांत्वना देते हुए कहा"परेशान न हो भाई वो ऑफिस के ही लोगो के साथ है फ़ोन ऑफ आ रहा है शायद चार्ज नही कर पाया होगा तो बंद जा रहा है तू टेंसन न ले चल अब मैं तुझे भी रूम पे ड्राप करके निकल जाता हूं 11 बज गया है भाई " आरुष ने मोबाइल पे टाइम देखा तो 11 बज चुके थे फ़ोन साइलेंट पे था उसको बधाई देने वालो की ढेर सारी मिसकॉल पड़ी थी उन इतने सारे कॉल में जिसकी कॉल वो चाहता था के हो उसे नही दिखी।।
अनुज ने आरुष को उसके हॉस्टल ड्राप किया और अपने रूम के लिए निकल गया ,आरुष परेशान मन से अपने रूम के अंदर दाखिल हुआ और फोन निकल के फिर कॉल किया फ़ोन अब भी स्विच ऑफ आ रहा था 12 बज रहा था उसकी बेचैनी लगातार बढ़ रही थी इससे पहले ऐसा कभी नही हुआ था, उनमे झगड़ा भी तो थोड़ी देर बाद फ़ोन आ ही जाता था दीपा का।।
उसको ध्यान आया के उसके पास प्रीति का भी नंबर है फ़ोन की कांटेक्ट लिस्ट में जाकर उसने प्रीति को कॉल लगाया एक बार मे रिंग जाने पे फ़ोन नही उठा तो उसने दोबारा कॉल किया फ़ोन उठा तो उधर से प्रीति की उनींदी सी आवाज़ सुनाई दी "हेलो कौन इस टाइम पे नींद खराब कर रहा है "
"हेलो मैं आरुष बोल रहा हूं प्रीति यार दीपा का कॉल नही लग रहा है मैंने उससे कहा भी था कि निकले के कॉल कर दे में बहुत देर से ट्राय कर रहा हु फ़ोन बन्द जा रहा है" आरुष की आवाज़ से बेचैनी और दीपा के लिए फिक्र साफ दिख रही थी ।।
"आरुष दीपा तो 10 बजे के आस पास ही निकल गयी थी हम लोगों ने उसकी वजह से जल्दी पार्टी खत्म कर दी थी वो कह भी रह थी तुम्हारे लिए की तुमने उसे जल्दी आने को कहा था और आज कोई रिजल्ट आने वाला था तुम्हारा तो उसके बारे में भी बात कर रही थी तुमसे शायद झगड़ा हुआ था उसका तो अपसेट भी थी और ऊपर से राहुल ने नितिन को भी इनवाइट किया था इस बात पे भी वो खुश नही थी " प्रीति ने इतना कुछ बताया तो नितिन का नाम सुन के आरुष भी गुस्से से भर गया "कहा था मैंने दीपा को मत जाये मुझे ऐसे ही लोगो का साथ बिल्कुल भी पसंद नही है खैर तुम बताओ क्या पार्टी में ड्रिंक तो नही किया किसी ने "
"लड़के कर रहे थे हम लोग नही और हाँ 10 बजे के आस पास राहुल विक्रम और नितिन उसे छोड़ने के लिए निकले थे" प्रीति ने बताया।।
प्रीति के इतना सब कुछ बताने के बाद आरुष को पता नही क्यों ऐसा लग के कुछ अच्छा नही हो रहा है प्रीति से उसने राहुल का नंबर लिया और उसे कॉल किया तो उसका भी फ़ोन रिंग जाती रही लेकिन उठा नही ।। के बार ट्राय किया लेकिन फोन उठ नही रहा था।। फ़ोन मिलाते हुए ही पता नही उसे कब नींद आ गयी ।।।
आरुष का फ़ोन बजा तो उसने सामने लगी दीवार घड़ी पे टाइम देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे फ़ोन प्रीति का था उसने फ़ोन रिसीव किया तो उधर से प्रीति की बहुत घबराई हुई सी आवाज़ आई प्रीति ने आरुष से पूछा" क्या बात हुई है दीपा तुम्हारी" इस पर आरुष ने कहा "नही प्रीति मेरी तो नही हुई तुम इतना घबराई सी क्यों हो क्या हुआ है बताओ तो"
प्रीति ने कहा " आरुष बात मुझे भी नही पता क्या हुई है लेकिन मैंने सबके नंबर मिला के देख लिए किसी का नही लग रहा न राहुल, विक्रम, दीपा का न ही उस नितिन का " आरुष ने बेचैनी भरे स्वर में कहा "प्रीति तुम पता करो में भी यह से ट्रेन से निकल रहा हु में शाम तक पहुच जाऊंगा अगर कुछ पता चले तो तुम मुझे फ़ोन जरूर कर देना" प्रीति ने ठीक है बोल के फ़ोन रख दिया।।
आरुष ने फ़ोन पे ट्रैन चेक की अगली ट्रेन 8 बजे की थी उसने तुरंत ही बिस्तर छोड़ दिया और फ्रेश होने चला गया।।नहा के वापस जब आया तो उसके फ़ोन पे प्रीति और नंदिनी के दो कॉल पड़े हुए थे उसने तुरंत ही प्रीति को कॉल किया "हेलो आरुष तुम निकले या नही " प्रीति ने हड़बड़ाई हुई आवाज़ में पूछा "हाँ प्रीति बस निकल रहा हु 8 बजे की ट्रेन है क्यों क्या हुआ तुम इतना घबराई हुई क्यों हो क्या हुआ कुछ बात पता चली है क्या फ़ोन मिला उसका या राहुल का " उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी वो लगभग चिल्ला के ही बात कर रहा था।।
"आरुष तुम आ जाओ बस और हां परेशान नही होना में और नंदिनी और हमारे घर वाले भी उन लोगो को ढूंढने में लगे है पुलिस में भी कंप्लेन कर दी है दीपा के घर वालो को भी खबर कर दी है वो लोग भी लखनऊ से निकल चुके है"
"में बस निकल रहा हु प्रीति प्लीज अगर कुछ भी पता चले तो तुरंत ही इन्फॉर्म करना "इतना कह के उसने फ़ोन को काट दिया और इलाहाबाद जंक्शन के लिए निकल गया ।।
कोई 8 घंटे का सफर करने के बाद आरुष शाम लगभग 5 बजे तक वो गाज़ियाबाद स्टेशन पहुँचा वहाँ से उसने प्रीति को कॉल किया तो उसने उसे बताया कि वो सीधे फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा सेक्टर 63 चला आये ।।
किसी अनहोनी की आशंका से मन विचलित हो उठा उसने पूछा भी प्रीति से तो उसने कुछ भी कहे बिना फिर यही कहा वो हॉस्पिटल ही आये सब बात वहाँ ही होगी।।
ऑटो लेकर वह हॉस्पिटल पहुच गया तो उसने प्रीति नंदिनी और उनके मम्मी पापा को देखा दीपा के माँ पापा भी पहुच चुके थे जैसे ही वो अंदर दाखिल हुआ प्रीति की आंखों से आंसू निकलने लगे कुछ यही हाल कमोबेश नंदिनी और वहाँ पे मौजूद और लोगों का भी था।।
सबसे पहले उसने प्रीति से पूछा "क्या हुआ है दीपा को तुम सब रो रहे हो वो ठीक तो है ना" बदहवास सी आवाज़ में वो हर किसी के पास जा के यही पूछ रहा था
"अंकल आप बताओ न क्या हुआ दीपा को प्लीज ऐसे तो चुप न रहिये प्लीज बोलिये न" दीपा के पापा से वो पागलो की तरह ही पूछ रहा था।।
"अरे सब गूंगे हो गए हो क्या कोई कुछ बोलता क्यों नही " उसने लगभग पागलों की तरह ही तेज़ आवाज़ में कहा और रोने लगा।।
प्रीति के पास जा के उसने कहा "तुम तो प्लीज प्रीति चलो मुझे दीपा के पास ले चलो प्लीज " प्रीति उसके गले लग के जोर जोर से रोने लगी नंदिनी भी पास आई और आरुष की पीठ पे हाथ रख के उसको सांत्वना देने लगी लेकिन आंसू उसके भी नही रुक रहे थे।।
प्रीति ने आरुष को लेकर 2 सरे माले पर आई सी यू में लेकर गयी उसने कहा दीपा यही है डॉक्टर अंदर है और ऑपरेशन कर रहे है इस पर आरुष ने फिर बेचैनी से पूछा कि "आखिर दीपा के साथ ऐसा क्या हुआ जो उसे यह हॉस्पिटल लाना पड़ा तुम प्लीज बताओ न प्लीज बताओ मुझे बहुत बेचैनी हो रही है ।।
प्रीति ने बताया " कल पार्टी खत्म होने के बाद राहुल , विक्रम जब दीपा को छोड़ने के लिए अपनी कार से निकले ही थे कि नितिन ने कहा "राहुल यार तुम मुझे भी रास्ते मे ड्राप कर देना में कुछ ज्यादा ही ड्रिंक कर ली है तो बाइक से जाना सही नही है कल तुम बाइक को ऑफिस लेते आना" राहुल ने उसे भी साथ ले लिया ।।
घर से थोड़ा सा आगे निकलने के बाद ही नितिन ने कहा राहुल तुम लोग अकेले ही लांग ड्राइव पे हो के आ गए मुझे नही घुमाया चलो प्लीज भी एक राउंड मेरे साथ बस 5 किलोमीटर"
प्रीति ने आगे बताया " असल मे तीनो ही नशे में थे और नितिन की जिद के आगे राहुल को झुकना पकड़ा दीपा ने बहुत मना किया और कहा के वो ऑटो से चली जायेगी रहने दो तुम लोग जाने को साथ तुम लोग जाओ लांग ड्राइव पर लेकिन न ही राहुल ने गाड़ी रोकी और न ही उन दोनों ने ही कुछ सुना दीपा बार बार कहती रही लेकिन इन लोगो ने आगरा एक्सप्रेस वे की ओर गाड़ी घुमा दी ।।
हाइ वे पर एक ढाबे के किनारे गाड़ी खड़ी करके ये लोग फिर से कुछ बियर और खाने को लेकर आये वही कार में बैठ के पीने लगे दीपा ने मना किया और घर चलने को कहा लेकिन वो अपनी मन कि करते रहे।।
जब तीनो ही भयंकर नशे में हो गए तो गाड़ी फिर इन्होंने आगे की तरफ बढा दी नितिन बार बार दीपा को नशे में आई लव यू बोलने लगा तो दीपा ने राहुल से कहा राहुल आज के बाद में कभी तुम लोगो के साथ नही आउंगी और इस घटिया इंसान का तो मैं चेहरा भी नही देखना चाहती इस पर राहुल ने उसे कहा के क्या है ऐसा खास आरुष में जो हम लोगो में नही है क्यों तुम बस उसकी वजह से हम लोगो की बेइज़्ज़ती करती रहती हो हम लोगो की भी फीलिंग्स है हम लोग भी प्यार कर सकते है तुम्हे और उससे कही ज्यादा ऐशो आराम की ज़िंदगी मुहैया करवा सकते है ।।
राहुल के मुह से ये सब सुन के उसे एक जोर से झटका लगा उसे अब खुद पे गुस्सा आ रही थी क्यों उसने आरुष की बात नही मानी उसने राहुल से कहा प्यार एक से होता हर किसी से नही और तुम अब गाड़ी पीछे की तरफ ले के चलो बहुत हो गया तुम लोगो का नाटक वरना मैं अभी पुलिस को कॉल करुँगी फिर।।
दीपा ने पुलिस की धमकी दी तो तीनों ही ठहाका मार के हसने लगे "पुलिस बुलाएगी नितिन देखा भाई मुझे नखरीली लड़कियाँ बहुत पसंद है" राहुल के मुँह से ऐसे शब्द सुन के दीपा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई वो अब सच मे ही बहुत डर गई थी नितिन उसके साथ गंदी छेड़खानी करने लगा तो वो रोने राहुल से भी कहा कि वो उसे वहाँ से लेकर चले और उसके हॉस्टल छोड़ दे लेकिन राहुल ने उसकी बात नही सुनी और हसते हुए नितिन से कहा "भाई मैंने अपनी दोस्ती निभा दी है आगे अब तेरी मर्जी जो चाहे कर तू" ऐसा सुन के दीपा को अब हर बात समझ मे आ रही थी ये उन तीनों की प्लानिंग थी जो के शायद कई दिनों से चल रही थी ।।
राहुल के इतना कहते ही नितिन ने उससे गाड़ी कही सुनसान जगह पर रोकने को कहा।। राहुल ने गाड़ी को हाई वे से नीचे उतार कर एक सुनसान रोड की तरफ बढ़ा दी नितिन बार बार दीपा से आरुष के साथ को छोड़ने के लिए कह रहा था और ऐसा न करने पर वो उसका ऐसा हश्र करेगा कि किसी को मुह नही दिखा पाएगी धमकी दे रहा था ।।
राहुल भी उसकी हाँ में हाँ मिला रहा था और नितिन को उकसा भी रहा था ।। राहुल ने गाड़ी जैसे ही सुनसान जगह पे रोकी तो दीपा गाड़ी से निकल के भागने लगी लेकिन विक्रम ने उसे दबोच लिया।। नितिन के ऊपर शराब का नाश अब बहुत ज्यादा ही हावी हो गया था उसने राहुल से कहा "ये ऐसे नही मानेगी इसको इसकी औकात दिखानी ही पड़ेगी " इतना कह के वो दीपा के ऊपर टूट पड़ा उसने उसके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए जिसमे राहुल और विक्रम ने उसका साथ देना शुरू कर दिया।
दीपा तीनो से ही रहम की भीख मांग रही थी इसी बीच दीपा के फ़ोन पे तुम्हारी कॉल आयी थी आरुष जिसको राहुल ने काट दिया और फ़ोन स्विच ऑफ करके वही झाड़ियों में फेंक दिया ।।
दीपा लगातार रोते हुए रहम के लिए चिल्ला रही थी लेकिन उसे सुनने वाला कोई नही था फ़ोन आने की वजह से राहुल और विक्रम का ध्यान थोड़ा सा इधर उधर हुआ और नितिन की पकड़ कुछ ढीली हुई दीपा ने पूरी ताकत से नितिन को धक्का दिया और भागने लगी बिना इस बात की परवाह किए की वो उस वक़्त अर्धनग्न ही थी क्यों के उसके सारे कपड़ो को नितिन और उन दरिंदो ने तार तार कर दिया था ।।
वो सुनसान सड़क से हाई वे की तरफ भागी जा रही थी।।
भागते हुए दीपा जैसे ही हाई वे पर पहुँची उसे किसी तेज़ रफ़्तार गाड़ी ने जोरदार टक्कर मार दी और वो सड़क से नीचे झाड़ियों में जा गिरी वो तीनो पीछे से भागते हुए आये जब उन्होंने ये देखा तो डर के अपनी गाड़ी ले कर वहा से भाग गए रात भर वो उसी नग्न हालात में घायल उन झाड़ियों में पड़ी रही।।
सुबह बगल के किसी गाँव वाले ने देख के पुलिस को खबर की वो उसे उठा के मथुरा के जिला अस्पताल ले गए ।। नोएडा पुलिस को मथुरा पुलिस ने उस बात की खबर दी नोएडा पुलिस उसे लेकर यहाँ आये तो इन लोगो ने हमे खबर की और शिनाख्त के लिए बुलाया जब हम लोगो ने उसे इस हालत में देखा तो इसे लेकर यहां फोर्टिस हॉस्पिटल में एडमिट कराया सुबह इलाज मिलने के बाद उसे होश आया तो उसने सारी बात बताई और पुलिस के सामने बयान दिया है डॉक्टरों ने बताया है उसके दोनों पैर और कमर में फ्रैक्चर हुआ है पसलियां टूट के फेफड़ो में धस गयी जिसकी वजह से सांस लेने में भी उसे दिक्कत है डॉ ऑपरेशन कर रहे हैं।।
प्रीति बताते हुए और आरुष सुनते हुए दोनों की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, डॉक्टर आई सी यू बाहर निकलता है तो दोनों उसकी तरफ बढ़ते हैं डॉक्टर ने बताया के वो ऑपरेशन कर चुका है दीपा की हालत अभी भी नाजुक है 24 घंटे बीतने के बाद ही कुछ कह सकता हु होश में आने पे आप मिल सकते हो उससे।।
इस बीच पुलिस इंस्पेक्टर आ के प्रीति को किसी जरूरी फॉर्मेलिटी की लिए कॉल करता है और साथ मे उन तीनों के आगरा से गिरफ़्तार करने की बात भी बताता है।
नर्स ने आरुष को बताया के दीपा को होश आया गया है मिल ले बस 2 मीनट का टाइम दिया उसे वो भाग के उसके पास गया दीपा ने उसे देखा तो उसकी आंखों में सैलाब आ गया दोनों ही बस रोये जा रहे थे आरुष ने उसे कहा के उसे कुछ नही होगा वो जल्दी ठीक हो जायेगी और उसके बाद वो शादी करके एक दुनिया बसायेंगे अपने रिजल्ट और सेलेक्ट होने की बात भी बताई ।।
लेकिन दीपा बस उससे इतना ही कह पायी #काश..!!! आरुष मैंने तुम्हारी बात मान ली होती और वो फिर बेहोश हो गयी
आरुष ने डॉ को बुलाया डॉ ने उसे बाहर जाने को कहा वो वापस आके कांच से अंदर अपने प्यार को मौत की जंग लड़ते हुए देख रहा था

कुछ 15 मिनट के बाद जब डॉ वापस आया तो उसके सॉरी बोलनेे का साफ मतलब था कि दीपा मौत से हार गयी थी और आरुष अपने प्यार को हार चुका था।।

Friday, June 7, 2019

Rape trauma syndrome, RTS

                    Rape trauma syndrome (RTS

Rape trauma syndrome (RTS) is the psychological trauma experienced by a rape victim that includes disruptions to normal physical, emotional, cognitive, and interpersonal behavior. The theory was first described by nurse Ann Wolbert Burgess and sociologist Lynda Lytle Holmstrom in 1974.
RTS is a cluster of psychological and physical signs, symptoms and reactions common to most rape victims immediately following a rape, but which can also occur for months or years afterwards. While most research into RTS has focused on female victims, sexually abused males (whether by male or female perpetrators) also exhibit RTS symptoms.RTS paved the way for consideration of complex post-traumatic stress disorder, which can more accurately describe the consequences of serious, protracted trauma than posttraumatic stress disorder alone.] 

The symptoms of RTS and post-traumatic stress syndrome overlap. As might be expected, a person who has been raped will generally experience high levels of distress immediately afterward. These feelings may subside over time for some people; however, individually each syndrome can have long devastating effects on rape victims and some victims will continue to experience some form of psychological distress for months or years. It has also been found that rape survivors are at high risk for developing substance use disorders, major depression, generalized anxiety disorder, obsessive-compulsive disorder, and eating disorders
Rapists is a mad people who always thinking rape if thise people nat punished by law they  will be also raped. So goverment find thats type of mad people who raped child and rare case victime ..  The goverment make a law who take less time to punished ..  And the law is only punished death rare pape case and finished in the sociaty of this people. Than safe society by Rapists,   Under 6 to 1 year...Rapists punished by  only death

rapists punished only death.     It is god law 

   

Wednesday, June 5, 2019

हम बहुत दूर निकल आए हैं

जिंदगी
हम बहुत दूर निकल आए हैं 

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते
अब ग़म-ए-ज़ीस्त से घबरा के कहाँ जाएँगे
उम्र गुज़री है इसी आग में जलते जलते
रात के बा'द सहर होगी मगर किस के लिए
हम ही शायद रहें रात के ढलते ढलते
रौशनी कम थी मगर इतना अँधेरा तो था
शम-ए-उम्मीद भी गुल हो गई जलते जलते
आप वा'दे से मुकर जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता
ज़ेहन से बात उतर जाती है टलते टलते
टूटी दीवार का साया भी बहुत होता है
पाँव जल जाएँ अगर धूप में चलते चलते
दिन अभी बाक़ी है 'इक़बाल' ज़रा तेज़ चलो
कुछ सूझेगा तुम्हें शाम के ढलते ढलते

Wednesday, May 15, 2019

Diary of a mad man, एक पागल की डायरी



एक पागल की डायरी

फ्रांस के महान कथाकार गाय दी मोपासां की एक मशहूर कहानी का हिंदी अनुवाद




गाय दी मोपासां (1850-1893) को लघु कथा विधा का दिग्गज कहा जाता है. इस महान फ्रांसीसी साहित्यकार की कहानियों में इंसान की जिंदगी और उसकी नियति का खाका कुछ इस तरह से मिलता है कि पढ़ने वाले के लिए कई बार मोहभंग की स्थिति पैदा हो जाती है. उनकी कहानी 'द डायरी ऑफ अ मैडमैन' का यह हिंदी रूपांतरण विजय शर्मा ने किया है


वह दुनिया से जा चुका था- हाई ट्रिब्यूनल का मुखिया, एक ईमानदार जज जिसके बेदाग जीवन की मिसाल फ्रांस की सारी अदालतों में दी जाती थी. जिसके बड़े से मुरझाए चेहरे को दो चमकती और गहरी आंखें सजीव बनाती थीं. उसके सामने पड़ने पर एडवोकेट, युवा वकील और जज सब उसका अभिवादन करते और उसके सम्मान में सिर झुकाते.
उसका सारा जीवन कमजोरों की रक्षा और अपराधों की पड़ताल में गुजरा था. बेइमानों और हत्यारों का उससे बड़ा दुश्मन कोई नहीं था, ऐसा लगता था कि वह उनके दिमाग में चलती हर बात पढ़ लेता है.
लेकिन अब एक अधिकारी को उस दराज में एक अजीब सा कागज मिला है जहां वह बड़े-बड़े अपराधियों के रिकॉर्ड्स रखता था!  इसका शीर्षक है क्यों
अब 82 साल की उम्र में उसकी मौत हो चुकी थी. बड़ी संख्या में लोग इस पर दुख जता रहे थे और उसे श्रद्धांजलि दे रहे थे. लाल पतलून पहने सैनिकों ने उसे कब्र तक पहुंचाया. टाई पहने आदमियों ने उसकी समाधि पर असली लगने वाले आंसू बहाए.
लेकिन अब एक अधिकारी को उस दराज में एक अजीब सा कागज मिला है जहां वह बड़े-बड़े अपराधियों के रिकॉर्ड्स रखता था!  इसका शीर्षक है :
क्यों?
20 जून, 1851. मैं अभी-अभी अदालत से बाहर आया हूं. मैंने ब्लॉन्डे को मृत्युदंड़ दिया है! इस आदमी ने अपने पांच बच्चों की हत्या क्यों की? अक्सर ऐसे लोगों से मिलना होता रहता है जिन्हें हत्या करके आनंद मिलता है. हां, हां, यह आनंद ही होना चाहिए. बल्कि शायद सबसे बड़ा आनंद. क्या मिटाना, बनाने का अगला चरण नहीं है?  बनाना और मिटाना! ये दो शब्द ब्रह्मांड और दुनिया का पूरा इतिहास समटे हुए हैं. सारा का सारा इतिहास!!! तो हत्या करना नशे जैसा क्यों न हो?
25 जून . यह सोचना कि जीव वह है जो जीता है, चलता-फ़िरता है, दौड़ता है. एक जीव? जीव क्या है? जीवन से भरी एक चीज जिसमें गति का नियम है और जो इस गति के नियम से संचालित होती है. यह जीवन का एक कण है, जो संसार में विचरण करता है और यह जीवन का यह कण मुझे नहीं मालूम कहां से आता है. इसे कोई जब चाहे, जैसे चाहे नष्ट कर सकता है. तब कुछ, कुछ भी बाकी नहीं बचता. यह खत्म हो जाता है. समाप्त हो जाता है.
क्या मिटाना, बनाने का अगला चरण नहीं है?  बनाना और मिटाना! ये दो शब्द ब्रह्मांड और दुनिया का पूरा इतिहास समटे हुए हैं. सारा का सारा इतिहास!!!
26 जून. तब हत्या करना अपराध क्यों है? हां, क्यों? इसके विपरीत यह प्रकृति का विधान है, प्रत्येक जीव का उद्देश्य है हत्या. वह जीने के लिए मारता है. वह मारने के लिए मारता है. यह पशु बिना रुके मारता रहता है. सारे दिन, अपने अस्तित्व के हर क्षण में. आदमी निरंतर मारता है, अपने पोषण के लिए; लेकिन इसके अलावा भी उसे अपने आनंद के लिए हत्या की जरूरत पड़ती है. इसलिए उसने शिकार का खेल ईजाद किया! बच्चा कीड़े-मकोड़ों, छोटी चिड़ियाओं और छोटे जीवों, जो भी उसे मिल जाएं, मारता है.
लेकिन इससे भी संहार की उस इच्छा की पूर्ति नहीं होती जो हमारे भीतर बसती है. जानवरों को मारना काफी नहीं. हमें आदमी को भी मारना है. बहुत पहले नरबलि के द्वारा इस इच्छा की पूर्ति हुआ करती थी. अब, सभ्य समाज में रहने की आवश्यकता ने हत्या को अपराध का दर्जा दे दिया है. हम हत्यारे को सजा देते हैं, उसकी भर्त्सना करते हैं. लेकिन हम इस सहज प्रवृत्ति के हिसाब से आचरण किए बिना नहीं रह सकते इसलिए हम समय-समय पर इसे युद्धों के द्वारा संतुष्ट करते रहते हैं. तब एक देश दूसरे देश की हत्या करता है. खून की होली होती है. जो सैनिकों को पागल बना देती है और लोगों, महिलाओं और बच्चों को मदहोश, जो इस कत्लेआम की कहानियां लैंप की रोशनी में बड़े उत्साह के साथ पढ़ते हैं.लेकिन इससे भी संहार की उस इच्छा की पूर्ति नहीं होती जो हमारे भीतर बसती है. जानवरों को मारना काफी नहीं. हमें आदमी को भी मारना है. बहुत पहले नरबलि के द्वारा इस इच्छा की पूर्ति हुआ करती थी.
कोई भी सोच सकता है कि इस बर्बरता को अंजाम देने वालों की भर्त्सना होती होगी? नहीं, उन्हें हम जयमालाएं पहनाते हैं. वे सोने से मढ़े जाते हैं, उनके सिर पर चमकदार कलगी और सीने पर तमगे सजते हैं, उन्हें क्रॉस, ईनाम और पदवी से नवाजा जाता है. महिलाएं उन पर गर्व करती हैं, उनका सम्मान करती हैं, उनसे प्रेम करती हैं. भीड़ उनकी जयजयकार करती है. और इसकी वजह सिर्फ यही है कि उनका मकसद आदमी का खून बहाना है. जब वे अपने हथियार ले कर चलते हैं तो राहगीर उन्हें ईर्ष्या से देखते हैं. मारना कुदरत का महान नियम है जो हमारे अस्तित्व के केंद्र में है. हत्या से बढ़ कर सुंदर और सम्मान योग्य और कुछ नही.
30 जून. नष्ट करना विधान है क्योंकि प्रकृति सतत यौवन चाहती है. अपनी सभी अचेतन प्रक्रियाओं में वह जैसे पुकारती है, “जल्दी! जल्दी! जल्दी!” जितना वह नष्ट करती है, उतना ही वह नूतन होती जाती है.
तीन जुलाई. यह अवश्य ही आनंददायक होगा, अनोखा और स्फ़ूर्तिदायक. मारना : जिंदगी से भरे, सब कुछ महसूस करने वाले एक प्राणी को सामने रख कर उसमें एक छेद करना. कुछ और नहीं बस एक छोटा-सा सूराख और एक पतली लाल धार, जिसे खून कहते हैं और जो जीवन है उसे बहते देखना ; और फिर देखना कि सामने केवल मांस का एक लोथड़ा, ठंडा, विचारशून्य ढ़ेर है.क्या हम लोगों को मारने के लिए चुने गए इन कसाइयों की भर्त्सना करते हैं? नहीं, उन्हें हम जयमालाएं पहनाते हैं. वे सोने से मढ़े जाते हैं
पांच अगस्त. मैं, जिसने फ़ैसले देते और न्याय करते अपना जीवन बिता दिया, मैं जिसने शब्दों से उनकी हत्या की जिन्होंने चाकू से यह काम किया था और उन्हें गिलोटीन (हत्या के लिए इस्तेमाल होने वाला एक उपकरण जिसमें अपराधी का सिर ऊपर से गिरते एक आरे से कटता है) पर चढ़वाया, अगर मैं वैसा ही करूं जो वे हत्यारे करते हैं तो किसे पता चलेगा?
10 अगस्त. कभी भी किसे पता चलेगा? कौन मुझ पर शक करेगा? खासकर जब मैं एक ऐसा जीव चुनूं जिससे मेरा कोई मतलब न हो? मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
15 अगस्त. मुझ पर यह लालच सवार हो गया. है. ऐसा लगता है जैसे यह मेरे अस्तित्व में व्याप्त हो गया हो. मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
22 अगस्त. मैं और नहीं रुक सका. शुरुआत में प्रयोग के तौर मैंने एक छोटा-सा जीव मारा. मेरे नौकर जीन के पास एक गोल्ड फिंच (चिड़िया) थी जो ऑफिस की खिड़की से लटके एक पिंजरे में रखी थी. मैंने जीन को काम से बाहर भेजा. मैंने उस नन्हीं-सी चिड़िया को हाथ में ले लिया, उसके दिल की धड़कन, उसकी गरमी महसूस की. मैं उसे अपने कमरे में गया और रुक-रुक कर उस परिंदे पर हाथ का दबाव बढ़ाता गया. उसकी धड़कन तेज होती हई. : यह क्रूर था पर मुझे मजा आ रहा था. मैं उसका दम घोंटने ही वाला था कि मैंने सोचा. खून तो दिखा ही नहीं.
किसे पता चलेगा? कौन मुझ पर शक करेगा? खासकर जब मैं एक ऐसा जीव चुनूं जिससे मेरा कोई मतलब न हो?  मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
तब मैंने एक कैंची ली. नाखून काटने वाली छोटी कैंची. और फिर मैंने आराम से उसके गले पर तीन चीरे मार दिए. उसने अपनी चोंच खोली, वह निकल भागने को छटपटाई, पर मैंने उसे पकड़े रखा. ओह! मैं उसे पकड़े हुए था- मैं एक पागल कुत्ते को भी पकड़ रह सकता था-और मैंने खून की धार देखी.
फिर मैंने वही किया जो असली कातिल करते हैं. मैंने कैंची धोई. अपने हाथ साफ किए. पानी छिड़का और लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे बागीचे में ले गया. मैंने उसे स्ट्राबेरी के झाड़ के नीचे दबा दिया. यह कभी नहीं खोजा जा सकेगा. मैं रोज उस पेड़ की स्ट्राबेरी खाऊंगा. जब आप जीवन का आनंद लेना जानते हैं तो आप कैसे-कैसे वह आनंद ले सकते हैं!
नौकर रोया, उसने सोचा कि चिड़िया उड़ गई. वह मुझ पर कैसे शक कर सकता था. आह! आह!
25 अगस्त. अब मुझे एक आदमी को मारना है. मारना ही है....
30 अगस्त. मैंने यह काम कर दिया. लेकिन यह कितनी छोटी सी बात थी! मैं वेरनेस के जंगल में सैर पर गया था. मेरे मन में कुछ नहीं था. कुछ नहीं. फिर मैंने सड़क पर एक बच्चे को देखा. एक छोटा सा बच्चा जो मक्खन के साथ ब्रेड खा रहा था.
फिर मैंने वही किया जो असली कातिल करते हैं. मैंने कैंची धोई. अपने हाथ साफ किए. पानी छिड़का और लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे बागीचे में ले गया.
मुझे गुजरते देख वह रुका और उसने कहा, 'नमस्ते. मिस्टर प्रेजीडेट. '
और मेरे दिमाग में कौंधा, 'क्या इसे मार दूं?' मैं जवाब देता हूं, 'बेटा, अकेले हो?'
'जी'
'जंगल में अकेले?'
'जी'
उसे मारने की इच्छा नशे की तरह मुझ पर हावी होने लगी. मैं आराम से उसके करीब पहुंचा और अचानक मैंने उसकी गर्दन दबोच ली.
उसे मारने की इच्छा नशे की तरह मुझ पर हावी होने लगी. मैं आराम से उसके करीब पहुंचा और अचानक मैंने उसकी गर्दन दबोच ली. डर से भरी आंखों से उसने मुझे देखा-क्या आंखें थीं! उसने अपने नन्हें हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली और उसका शरीर आग के ऊपर रखे पंख की तरह मुरझाने लगा. और फिर उसके शरीर की हलचल बंद हो गई. मैंने लाश एक गड्ढ़े में फ़ेंक दी. उसके ऊपर कुछ झाड़ियां डाल दीं. घर लौट कर मैंने डट कर खाना खाया. कितना सरल काम था यह! शाम को मैं काफ़ी खुश, हल्का और तरोताजा महसूस कर रहा था. वह शाम मैंने साथियों के साथ गुजारी. उन लोगों को मैं काफ़ी मजाकिया मूड में नजर आया.
लेकिन मैंने खून नहीं देखा था!
31 अगस्त. लाश मिल गई. वे हत्यारे की खोज में हैं. आह!
एक सितंबर. दो भिखारी गिरफ़्तार हो गए. सबूत नहीं हैं.
दो सितंबर. उसके माता-पिता मेरे पास आए थे. वे रो रहे थे. आह! आह!
छह अक्टूबर. अब तक कुछ पता नहीं चला. जरूर यह काम किसी उठाईगीर ने किया होगा. ओह! ओह. मुझे लगता है कि मैंने खून देख लिया होता तो अब तक मैं संतुष्ट हो जाता. हत्या की इच्छा मुझ पर यूं सवार हो गई है जैसे 20 की उम्र में आप पर कोई नशा सवार होता है. 
मैंने देखा, एक पेड़ के नीचे एक मछुआरा सो रहा था. दोपहर हो चली थी. नजदीक ही आलू के एक खेत के पास एक फ़ावड़ा जैसे खासतौर पर मेरे लिए ही रखा था.
10 अक्टूबर. एक और. मैं नहाने के बाद नदी के किनारे टहल रहा था. मैंने देखा एक पेड़ के नीचे एक मछुआरा सो रहा था. दोपहर हो चली थी. नजदीक ही आलू के एक खेत के पास एक फ़ावड़ा जैसे खासतौर पर मेरे लिए ही रखा था. मैंने उसे उठाया और वापस लौटा. मैंने फावड़े को उठाया और जोर से मछुआरे के सिर पर दे मारा. ओह! खून निकलने लगा. गुलाबी रंग का खून. यह आराम से पानी में बहता जा रहा था. मैं भारी कदमों से चला आया. मुझे किसी ने देखा तो नहीं! आह! आह! मैं एक बढ़िया हत्यारा बन सकता था.
अक्टूबर २5. मछुआरे की हत्या पर काफी हंगामा हुआ. उसका भतीजा उस दिन उसी के साथ मछली मार रहा था. मजिस्ट्रेट ने उसे ही दोषी ठहराया. शहर में सबने यह बात मान ली. आह! आह!
27 अक्टूबर. भतीजे की कुछ नहीं चली. उसका कहना था कि जब हत्या हुई वह ब्रेड और चीज खरीदने गांव गया था. उसने शपथ खा कर कहा कि उसका चाचा उसकी गैरहाजिरी में मारा गया था. कौन मानेगा?
28 अक्टूबर. भतीजे ने लगभग अपना जुर्म कबूल कर लिया है. उन्होंने उसे इतनी यातनाएं दीं कि उसे ऐसा करना पड़ा. आह! न्याय!
15 नवंबर. वह भतीजा, जो अपने चाचा का वारिस है, उसके खिलाफ वजनदार सबूत हैं. सुनवाई मेरी अध्यक्षता में होगी.
मृत्यदंड! मृत्युदंड! मृत्युदंड! मैंने उसे मृत्युदंड दिया.एडवोकेट जनरल की बातें किसी देवदूत जैसी थीं. आह! एक और! जब उसे सजा मिल रही होगी तो मैं वहां उसे देखने जाऊंगा.
25 जनवरी. मृत्यदंड! मृत्युदंड! मृत्युदंड! मैंने उसे मृत्युदंड दिया. एडवोकेट जनरल की बातें किसी देवदूत जैसी थीं. आह! एक और! जब उसे सजा मिल रही होगी तो मैं वहां उसे देखने जाऊंगा.
10 मार्च काम हो गया. आज सुबह उसे गिलोटीन पर चढ़ा दिया गया. वह अच्छे से मरा. बहुत अच्छे से. इससे मुझे प्रसन्नता हुई. एक आदमी का सिर कटता है तो देखने में कितना मजा आता है!
अब मैं इंतजार करूंगा. मैं इंतजार कर सकता हूं. जरा सी गलती मुझे पकड़वा सकती है.
आगे और बहुत से पन्ने थे लेकिन उनमें किसी और अपराध का जिक्र नहीं था.
जिन डॉक्टरों को यह कहानी दी गई उनका कहना है कि दुनिया में ऐसे कई पागल घूम रहे हैं जिनके बारे में लोगों को मालूम नहीं है. जो उतने ही चालाक हैं जितना यह राक्षस था और जिनसे उतना ही डरने की जरूरत है.