Wikipedia

Search results

Saturday, June 8, 2019

मेरी यात्रा गाव से शहर की ओर

Image result for गाव से सहर की वोर हिंदी

 1 - लेट्स मूव ऑन
नाम क्षितिज, पूरा नाम क्षितिज मोहन , पिता का नाम रामनरेश सिंह । ट्रेन नंबर 19722 बिहार सप्त क्रांति एक्सप्रेस, कोच नंबर A2 सीट नंबर 42 । क्षितिज सीट पे लेटा हुआ मोबाइल पर फेसबुक का newsfeed स्क्रॉल कर रहा था, तभी फ़ोन बजा ।

"नमस्ते पापा !”
“हाँ बेटा खुश रहो, ट्रेन  देवारिया पहुंच गयी है, मुश्किल से 10 मिनट और लगेगा भाटपार  रानी पहुंचने में, अभी एन्कवारी में पूछे थे हम । हम प्लेटफार्म नंबर 3 पर ही खड़े है ।”
“अरे पापा आपको आने की क्या जरूरत थी, मै बस ले के आ जाता । “
“अरे तुम समझते नहीं हो, आजकल यहाँ माहौल बहुत ख़राब चल रहा है । और ऊपर से अभी नई नई नौकरी लगी है, अकेले जाना ठीक नहीं था इसलिए आ गए ।” पापा अंदर ही अंदर बेटे से मिलने को आतुर हो रहे थे । ” अच्छा सुनो सारा सामान निकाल लो और ट्रेन के दरवाजे पर आ जाओ क्यूंकि गाडी यहाँ बस दो मिनट के लिए ही रूकती है। “
“अरे पापा आप खामखा….. “
ट्रेन नंबर 19722 बिहार सप्त क्रांति एक्सप्रेस, नई दिल्ली से चलकर बरौनी को जाने वाली, कुछ ही समय में प्लेटफार्म नो 3 पर आ रही है । ट्रेन जैसे जैसे धीरे हो रही थी , रामनरेश क्षितिज को मिलने के लिए आतुर हुए जा रहे थे । ट्रैन जैसे ही रुकी, रामनरेश सरपट कोच न A2 के द्वार की तरफ बढे और क्षितिज का सामान उतरने लगे ।
” पापा आप छोड़िये मै ले लूंगा । “
पर पिताजी कहा मानने वाले । खुद से सारा सामान उठाकर बहार तक लाते है और खुद ही गाडी की डिक्की में डालते है । क्षितिज थोड़ा असहज महसूस कर रहा था, अचानक क्या हो गया है पापा को ?
आज पहली बार रामनरेश भी क्षितिज के साथ पीछे वाली सीट पर बैठे थे और रास्ते भर क्षितिज से उसके नौकरी के बारे में पूछ रहे थे ।
गाड़ी घर के दरवाजे पर पहुंची और माँ की आँखे हर बार की तरह बेटे को देखने के लिए विवश थी । जैसे ही क्षितिज गाडी से उतरा माँ ने उसे गले से लगा लिया और बोलने लगी ये ऑफिस वाले बहुत काम करा रहे है हमारे बेटे से , कितना दुबला हो गया है हमारा बेटा !
“चलो अंदर, कुछ खिलाओगी पिलाओगी बेटा को या यहीं दरवाजे पर ही रखने का विचार है ?” रामनरेश मजाकिया मूड में हाथ में क्षितिज का बैग लिए बोल पड़े ।
शाम हुई , पिताजी क्षितिज को अपने मित्रो से मिलाने ले गए । आज पिताजी का सीना गर्व से फूल रहा था ।
” नमस्ते अंकल ” क्षितिज विनम्र भाव से पैर छूकर प्रणाम किया शर्मा जी ( रामनरेश जी के खास मित्र ) को ।
“खुश रहो बेटा । पापा बता रहे थे तुम्हारी नौकरी के बारे में । बहुत तारीफ कर रहे थे, तुम बताओ कैसा चल रहा है ? ” शर्मा जी क्यूरोसिटी से पूछ रहे थे क्यूंकि उनका बेटा भी इस बार दसवीं की परीक्षा में शामिल हो रहा था और उनको भी बेटे को आई आई टी में दाखिले के लिए कोचिंग में तयारी के लिए भेजना था ।
“अरे शर्मा बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद, यहाँ बैठे बैठे लोग गांड से प्याज काट रहे है । जा के देखने पर दिमाग घूम जायेगा । अमरीका की कंपनी में नौकरी करता है हमारा क्षितिज। 10 महाले का ये लम्बा टावर है और अंदर ही खाने पिने, खेलने आदि सारी सुख सुविधाएं उपलबध है । 6 महीने और उसके बाद अमरीका हेड ऑफिस में ट्रांसफर हो जायेगा । ” क्षितिज कुछ बोल पाता उससे पहले ही उत्तेजित रामनरेश जी ने पूरा बखान कर दिया ।
दोनों घर आये, माँ ने आज रात में क्षितिज का फेवरेट मटन और काश्मीरी पुलाव बनाया था ।
“बेटा ये डाइटिंग वाइटिंग के चक्कर तुम कहा पड़ गए हो ? अच्छा बस एक पीस और ले लो, फिर तो वहाँ जा के वही फ्रीज में जमाया हुआ चिकन खाना पड़ेगा ।” माता जी का उसी जूनून और प्यार के साथ क्षितिज का वजन बढ़ाने का अटूट प्रयास जारी था ।
“अरे खाओ भाई, देसी मटन है एकदम ताजा, सामने कटवा के लाये हैं । ” पिताजी मूछों को ताव देते हुए बोले ।
क्षितिज आज पहली बार अपने ही घर में बहुत असहज महसूस कर रहा था । बिस्तर पर लेटा रहा लेकिन नींद नहीं आ रही थी । रात के 1 बज गए थे, पूरा सन्नाटा छाया हुआ था, खिड़की से चाँद ऐसे झाँक रहा था मानो, प्रेमिका अपने प्रेमी को देख रही हो । क्षितिज अचानक उठा और बैग से एक पेपर और पेन निकाला और कुछ लिखने लगा ।
“पापा मुझे नहीं पता क्या गलत हैं या क्या सही , लेकिन आज पहली बार मै अपने ही घर में असहज महसूस कर रहा हूँ। मुझे आज भी याद हैं 18 मई का वो दिन जिस दिन मेरा आई आई टी का रिजल्ट आया था, और मै अपने कमरे में उदास पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था सबकुछ ख़त्म ही गया हैं ।
तभी आप अचानक तमतमाते हुए मेरे कमरे में घुसे और झुंझलाते हुए कहने लगे, नाक कटा दिया तुमने उस अभागन लड़की ( क्षितिज की गर्लफ्रेंड) के चक्कर में । तुम्हारे जैसे संतान से अच्छा हैं निसंतान रहना । फिर आप अचानक बहार गए और किसी से जोर जोर से बातें करने लगे । मुझे भी ऐसा लगा की मै अब आपके घर में रहने के लायक नहीं हूँ और मैंने अपने बैग में दो चार कपडे डाले और मोबाइल ले कर निकल गया ।
आँखों में आँसू और अंदरकारमय भविष्य के साथ मै घर से निकला था । मैंने अनिशा ( क्षितिज की गर्लफ्रेंड) को कॉल किया और बोला की मुझे अभी मिलना हैं तुमसे, बताओ कहा आना हैं । समय नहीं हैं मेरे पास । मेरे पहुंचने से पहले ही वो स्टेशन पे पहुंच चुकी थी । हाथ में पर्स, ग्रे टॉप, ब्लू जीन्स और गले में स्टाल पिंक कलर का ।
मुझे देखते ही अनीशा ने गले से लगा लिया ।
“मै घर से जा रहा हूँ ।”
“हाँ पता हैं मुझे । तुम्हारे घर से किसी का फ़ोन आया था मेरे पापा के पास, सबलोग बहुत टेंशन में हैं ।” उसने भी आँखों से आँसू रोकते हुए बोला ।
“तुम्हे क्या लगता था, हाँ ? समाज और प्यार में हमेशा जीत समाज की होती हैं । प्यार की जीत बस फिल्मों में होती हैं । यहाँ तो एक लड़की शाम तक लड़की रहती तो भोर होते होते उसके मांग में सिंदूर भर कर उसे औरत बना दिया जाता हैं, फिर चाहे वो चीखती रहे या चिल्लाती रहे, घंटा किसी को फर्क नहीं पड़ता हैं । बाकी तो तुमको समझाने की जरुरत हैं नहीं । “
मै स्तब्ध सुनता रहा उसको गले से लगाकर । उसने इसी बीच मेरे पिछले जेब में न जाने कब 4 , 500 के नोट और एक पेपर रख दिया था, जो आज भी मेरे पास हैं और मै कभी कभी उस पेपर के टुकड़े को देख कर मुस्कुरा दिया करता हूँ । उससे मै अंतिम बार तभी मिला था ।
तबसे आज तक मेरी आदत हैं, एक सख्त पिता और बेटे के रिश्ते की । मै अचानक इसबार आपके इस रवैये को देखकर बहुत असहज महसूस कर रहा हूँ और इसलिए मै वापस दिल्ली जा रहा हूँ । आशा करता हूँ अगली बार जब मै वापस आऊंगा तो आप वही सख्त पिता की तरह पेश आएंगे ।
अमरीका वाली कंपनी में काम करे वाला आपका बेटा,
क्षितिज मोहन “



क्षितिज यह पत्र अपने बिस्तर पर रखकर रात को ही बिना किसी को बताये घर से वापस दिल्ली आ गया 😯😯😯😯😯📑📑📑📑

No comments:

Post a Comment