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Wednesday, May 15, 2019

Diary of a mad man, एक पागल की डायरी



एक पागल की डायरी

फ्रांस के महान कथाकार गाय दी मोपासां की एक मशहूर कहानी का हिंदी अनुवाद




गाय दी मोपासां (1850-1893) को लघु कथा विधा का दिग्गज कहा जाता है. इस महान फ्रांसीसी साहित्यकार की कहानियों में इंसान की जिंदगी और उसकी नियति का खाका कुछ इस तरह से मिलता है कि पढ़ने वाले के लिए कई बार मोहभंग की स्थिति पैदा हो जाती है. उनकी कहानी 'द डायरी ऑफ अ मैडमैन' का यह हिंदी रूपांतरण विजय शर्मा ने किया है


वह दुनिया से जा चुका था- हाई ट्रिब्यूनल का मुखिया, एक ईमानदार जज जिसके बेदाग जीवन की मिसाल फ्रांस की सारी अदालतों में दी जाती थी. जिसके बड़े से मुरझाए चेहरे को दो चमकती और गहरी आंखें सजीव बनाती थीं. उसके सामने पड़ने पर एडवोकेट, युवा वकील और जज सब उसका अभिवादन करते और उसके सम्मान में सिर झुकाते.
उसका सारा जीवन कमजोरों की रक्षा और अपराधों की पड़ताल में गुजरा था. बेइमानों और हत्यारों का उससे बड़ा दुश्मन कोई नहीं था, ऐसा लगता था कि वह उनके दिमाग में चलती हर बात पढ़ लेता है.
लेकिन अब एक अधिकारी को उस दराज में एक अजीब सा कागज मिला है जहां वह बड़े-बड़े अपराधियों के रिकॉर्ड्स रखता था!  इसका शीर्षक है क्यों
अब 82 साल की उम्र में उसकी मौत हो चुकी थी. बड़ी संख्या में लोग इस पर दुख जता रहे थे और उसे श्रद्धांजलि दे रहे थे. लाल पतलून पहने सैनिकों ने उसे कब्र तक पहुंचाया. टाई पहने आदमियों ने उसकी समाधि पर असली लगने वाले आंसू बहाए.
लेकिन अब एक अधिकारी को उस दराज में एक अजीब सा कागज मिला है जहां वह बड़े-बड़े अपराधियों के रिकॉर्ड्स रखता था!  इसका शीर्षक है :
क्यों?
20 जून, 1851. मैं अभी-अभी अदालत से बाहर आया हूं. मैंने ब्लॉन्डे को मृत्युदंड़ दिया है! इस आदमी ने अपने पांच बच्चों की हत्या क्यों की? अक्सर ऐसे लोगों से मिलना होता रहता है जिन्हें हत्या करके आनंद मिलता है. हां, हां, यह आनंद ही होना चाहिए. बल्कि शायद सबसे बड़ा आनंद. क्या मिटाना, बनाने का अगला चरण नहीं है?  बनाना और मिटाना! ये दो शब्द ब्रह्मांड और दुनिया का पूरा इतिहास समटे हुए हैं. सारा का सारा इतिहास!!! तो हत्या करना नशे जैसा क्यों न हो?
25 जून . यह सोचना कि जीव वह है जो जीता है, चलता-फ़िरता है, दौड़ता है. एक जीव? जीव क्या है? जीवन से भरी एक चीज जिसमें गति का नियम है और जो इस गति के नियम से संचालित होती है. यह जीवन का एक कण है, जो संसार में विचरण करता है और यह जीवन का यह कण मुझे नहीं मालूम कहां से आता है. इसे कोई जब चाहे, जैसे चाहे नष्ट कर सकता है. तब कुछ, कुछ भी बाकी नहीं बचता. यह खत्म हो जाता है. समाप्त हो जाता है.
क्या मिटाना, बनाने का अगला चरण नहीं है?  बनाना और मिटाना! ये दो शब्द ब्रह्मांड और दुनिया का पूरा इतिहास समटे हुए हैं. सारा का सारा इतिहास!!!
26 जून. तब हत्या करना अपराध क्यों है? हां, क्यों? इसके विपरीत यह प्रकृति का विधान है, प्रत्येक जीव का उद्देश्य है हत्या. वह जीने के लिए मारता है. वह मारने के लिए मारता है. यह पशु बिना रुके मारता रहता है. सारे दिन, अपने अस्तित्व के हर क्षण में. आदमी निरंतर मारता है, अपने पोषण के लिए; लेकिन इसके अलावा भी उसे अपने आनंद के लिए हत्या की जरूरत पड़ती है. इसलिए उसने शिकार का खेल ईजाद किया! बच्चा कीड़े-मकोड़ों, छोटी चिड़ियाओं और छोटे जीवों, जो भी उसे मिल जाएं, मारता है.
लेकिन इससे भी संहार की उस इच्छा की पूर्ति नहीं होती जो हमारे भीतर बसती है. जानवरों को मारना काफी नहीं. हमें आदमी को भी मारना है. बहुत पहले नरबलि के द्वारा इस इच्छा की पूर्ति हुआ करती थी. अब, सभ्य समाज में रहने की आवश्यकता ने हत्या को अपराध का दर्जा दे दिया है. हम हत्यारे को सजा देते हैं, उसकी भर्त्सना करते हैं. लेकिन हम इस सहज प्रवृत्ति के हिसाब से आचरण किए बिना नहीं रह सकते इसलिए हम समय-समय पर इसे युद्धों के द्वारा संतुष्ट करते रहते हैं. तब एक देश दूसरे देश की हत्या करता है. खून की होली होती है. जो सैनिकों को पागल बना देती है और लोगों, महिलाओं और बच्चों को मदहोश, जो इस कत्लेआम की कहानियां लैंप की रोशनी में बड़े उत्साह के साथ पढ़ते हैं.लेकिन इससे भी संहार की उस इच्छा की पूर्ति नहीं होती जो हमारे भीतर बसती है. जानवरों को मारना काफी नहीं. हमें आदमी को भी मारना है. बहुत पहले नरबलि के द्वारा इस इच्छा की पूर्ति हुआ करती थी.
कोई भी सोच सकता है कि इस बर्बरता को अंजाम देने वालों की भर्त्सना होती होगी? नहीं, उन्हें हम जयमालाएं पहनाते हैं. वे सोने से मढ़े जाते हैं, उनके सिर पर चमकदार कलगी और सीने पर तमगे सजते हैं, उन्हें क्रॉस, ईनाम और पदवी से नवाजा जाता है. महिलाएं उन पर गर्व करती हैं, उनका सम्मान करती हैं, उनसे प्रेम करती हैं. भीड़ उनकी जयजयकार करती है. और इसकी वजह सिर्फ यही है कि उनका मकसद आदमी का खून बहाना है. जब वे अपने हथियार ले कर चलते हैं तो राहगीर उन्हें ईर्ष्या से देखते हैं. मारना कुदरत का महान नियम है जो हमारे अस्तित्व के केंद्र में है. हत्या से बढ़ कर सुंदर और सम्मान योग्य और कुछ नही.
30 जून. नष्ट करना विधान है क्योंकि प्रकृति सतत यौवन चाहती है. अपनी सभी अचेतन प्रक्रियाओं में वह जैसे पुकारती है, “जल्दी! जल्दी! जल्दी!” जितना वह नष्ट करती है, उतना ही वह नूतन होती जाती है.
तीन जुलाई. यह अवश्य ही आनंददायक होगा, अनोखा और स्फ़ूर्तिदायक. मारना : जिंदगी से भरे, सब कुछ महसूस करने वाले एक प्राणी को सामने रख कर उसमें एक छेद करना. कुछ और नहीं बस एक छोटा-सा सूराख और एक पतली लाल धार, जिसे खून कहते हैं और जो जीवन है उसे बहते देखना ; और फिर देखना कि सामने केवल मांस का एक लोथड़ा, ठंडा, विचारशून्य ढ़ेर है.क्या हम लोगों को मारने के लिए चुने गए इन कसाइयों की भर्त्सना करते हैं? नहीं, उन्हें हम जयमालाएं पहनाते हैं. वे सोने से मढ़े जाते हैं
पांच अगस्त. मैं, जिसने फ़ैसले देते और न्याय करते अपना जीवन बिता दिया, मैं जिसने शब्दों से उनकी हत्या की जिन्होंने चाकू से यह काम किया था और उन्हें गिलोटीन (हत्या के लिए इस्तेमाल होने वाला एक उपकरण जिसमें अपराधी का सिर ऊपर से गिरते एक आरे से कटता है) पर चढ़वाया, अगर मैं वैसा ही करूं जो वे हत्यारे करते हैं तो किसे पता चलेगा?
10 अगस्त. कभी भी किसे पता चलेगा? कौन मुझ पर शक करेगा? खासकर जब मैं एक ऐसा जीव चुनूं जिससे मेरा कोई मतलब न हो? मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
15 अगस्त. मुझ पर यह लालच सवार हो गया. है. ऐसा लगता है जैसे यह मेरे अस्तित्व में व्याप्त हो गया हो. मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
22 अगस्त. मैं और नहीं रुक सका. शुरुआत में प्रयोग के तौर मैंने एक छोटा-सा जीव मारा. मेरे नौकर जीन के पास एक गोल्ड फिंच (चिड़िया) थी जो ऑफिस की खिड़की से लटके एक पिंजरे में रखी थी. मैंने जीन को काम से बाहर भेजा. मैंने उस नन्हीं-सी चिड़िया को हाथ में ले लिया, उसके दिल की धड़कन, उसकी गरमी महसूस की. मैं उसे अपने कमरे में गया और रुक-रुक कर उस परिंदे पर हाथ का दबाव बढ़ाता गया. उसकी धड़कन तेज होती हई. : यह क्रूर था पर मुझे मजा आ रहा था. मैं उसका दम घोंटने ही वाला था कि मैंने सोचा. खून तो दिखा ही नहीं.
किसे पता चलेगा? कौन मुझ पर शक करेगा? खासकर जब मैं एक ऐसा जीव चुनूं जिससे मेरा कोई मतलब न हो?  मेरे हाथ हत्या करने के लिए कांप रहे हैं.
तब मैंने एक कैंची ली. नाखून काटने वाली छोटी कैंची. और फिर मैंने आराम से उसके गले पर तीन चीरे मार दिए. उसने अपनी चोंच खोली, वह निकल भागने को छटपटाई, पर मैंने उसे पकड़े रखा. ओह! मैं उसे पकड़े हुए था- मैं एक पागल कुत्ते को भी पकड़ रह सकता था-और मैंने खून की धार देखी.
फिर मैंने वही किया जो असली कातिल करते हैं. मैंने कैंची धोई. अपने हाथ साफ किए. पानी छिड़का और लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे बागीचे में ले गया. मैंने उसे स्ट्राबेरी के झाड़ के नीचे दबा दिया. यह कभी नहीं खोजा जा सकेगा. मैं रोज उस पेड़ की स्ट्राबेरी खाऊंगा. जब आप जीवन का आनंद लेना जानते हैं तो आप कैसे-कैसे वह आनंद ले सकते हैं!
नौकर रोया, उसने सोचा कि चिड़िया उड़ गई. वह मुझ पर कैसे शक कर सकता था. आह! आह!
25 अगस्त. अब मुझे एक आदमी को मारना है. मारना ही है....
30 अगस्त. मैंने यह काम कर दिया. लेकिन यह कितनी छोटी सी बात थी! मैं वेरनेस के जंगल में सैर पर गया था. मेरे मन में कुछ नहीं था. कुछ नहीं. फिर मैंने सड़क पर एक बच्चे को देखा. एक छोटा सा बच्चा जो मक्खन के साथ ब्रेड खा रहा था.
फिर मैंने वही किया जो असली कातिल करते हैं. मैंने कैंची धोई. अपने हाथ साफ किए. पानी छिड़का और लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे बागीचे में ले गया.
मुझे गुजरते देख वह रुका और उसने कहा, 'नमस्ते. मिस्टर प्रेजीडेट. '
और मेरे दिमाग में कौंधा, 'क्या इसे मार दूं?' मैं जवाब देता हूं, 'बेटा, अकेले हो?'
'जी'
'जंगल में अकेले?'
'जी'
उसे मारने की इच्छा नशे की तरह मुझ पर हावी होने लगी. मैं आराम से उसके करीब पहुंचा और अचानक मैंने उसकी गर्दन दबोच ली.
उसे मारने की इच्छा नशे की तरह मुझ पर हावी होने लगी. मैं आराम से उसके करीब पहुंचा और अचानक मैंने उसकी गर्दन दबोच ली. डर से भरी आंखों से उसने मुझे देखा-क्या आंखें थीं! उसने अपने नन्हें हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली और उसका शरीर आग के ऊपर रखे पंख की तरह मुरझाने लगा. और फिर उसके शरीर की हलचल बंद हो गई. मैंने लाश एक गड्ढ़े में फ़ेंक दी. उसके ऊपर कुछ झाड़ियां डाल दीं. घर लौट कर मैंने डट कर खाना खाया. कितना सरल काम था यह! शाम को मैं काफ़ी खुश, हल्का और तरोताजा महसूस कर रहा था. वह शाम मैंने साथियों के साथ गुजारी. उन लोगों को मैं काफ़ी मजाकिया मूड में नजर आया.
लेकिन मैंने खून नहीं देखा था!
31 अगस्त. लाश मिल गई. वे हत्यारे की खोज में हैं. आह!
एक सितंबर. दो भिखारी गिरफ़्तार हो गए. सबूत नहीं हैं.
दो सितंबर. उसके माता-पिता मेरे पास आए थे. वे रो रहे थे. आह! आह!
छह अक्टूबर. अब तक कुछ पता नहीं चला. जरूर यह काम किसी उठाईगीर ने किया होगा. ओह! ओह. मुझे लगता है कि मैंने खून देख लिया होता तो अब तक मैं संतुष्ट हो जाता. हत्या की इच्छा मुझ पर यूं सवार हो गई है जैसे 20 की उम्र में आप पर कोई नशा सवार होता है. 
मैंने देखा, एक पेड़ के नीचे एक मछुआरा सो रहा था. दोपहर हो चली थी. नजदीक ही आलू के एक खेत के पास एक फ़ावड़ा जैसे खासतौर पर मेरे लिए ही रखा था.
10 अक्टूबर. एक और. मैं नहाने के बाद नदी के किनारे टहल रहा था. मैंने देखा एक पेड़ के नीचे एक मछुआरा सो रहा था. दोपहर हो चली थी. नजदीक ही आलू के एक खेत के पास एक फ़ावड़ा जैसे खासतौर पर मेरे लिए ही रखा था. मैंने उसे उठाया और वापस लौटा. मैंने फावड़े को उठाया और जोर से मछुआरे के सिर पर दे मारा. ओह! खून निकलने लगा. गुलाबी रंग का खून. यह आराम से पानी में बहता जा रहा था. मैं भारी कदमों से चला आया. मुझे किसी ने देखा तो नहीं! आह! आह! मैं एक बढ़िया हत्यारा बन सकता था.
अक्टूबर २5. मछुआरे की हत्या पर काफी हंगामा हुआ. उसका भतीजा उस दिन उसी के साथ मछली मार रहा था. मजिस्ट्रेट ने उसे ही दोषी ठहराया. शहर में सबने यह बात मान ली. आह! आह!
27 अक्टूबर. भतीजे की कुछ नहीं चली. उसका कहना था कि जब हत्या हुई वह ब्रेड और चीज खरीदने गांव गया था. उसने शपथ खा कर कहा कि उसका चाचा उसकी गैरहाजिरी में मारा गया था. कौन मानेगा?
28 अक्टूबर. भतीजे ने लगभग अपना जुर्म कबूल कर लिया है. उन्होंने उसे इतनी यातनाएं दीं कि उसे ऐसा करना पड़ा. आह! न्याय!
15 नवंबर. वह भतीजा, जो अपने चाचा का वारिस है, उसके खिलाफ वजनदार सबूत हैं. सुनवाई मेरी अध्यक्षता में होगी.
मृत्यदंड! मृत्युदंड! मृत्युदंड! मैंने उसे मृत्युदंड दिया.एडवोकेट जनरल की बातें किसी देवदूत जैसी थीं. आह! एक और! जब उसे सजा मिल रही होगी तो मैं वहां उसे देखने जाऊंगा.
25 जनवरी. मृत्यदंड! मृत्युदंड! मृत्युदंड! मैंने उसे मृत्युदंड दिया. एडवोकेट जनरल की बातें किसी देवदूत जैसी थीं. आह! एक और! जब उसे सजा मिल रही होगी तो मैं वहां उसे देखने जाऊंगा.
10 मार्च काम हो गया. आज सुबह उसे गिलोटीन पर चढ़ा दिया गया. वह अच्छे से मरा. बहुत अच्छे से. इससे मुझे प्रसन्नता हुई. एक आदमी का सिर कटता है तो देखने में कितना मजा आता है!
अब मैं इंतजार करूंगा. मैं इंतजार कर सकता हूं. जरा सी गलती मुझे पकड़वा सकती है.
आगे और बहुत से पन्ने थे लेकिन उनमें किसी और अपराध का जिक्र नहीं था.
जिन डॉक्टरों को यह कहानी दी गई उनका कहना है कि दुनिया में ऐसे कई पागल घूम रहे हैं जिनके बारे में लोगों को मालूम नहीं है. जो उतने ही चालाक हैं जितना यह राक्षस था और जिनसे उतना ही डरने की जरूरत है.

Friday, May 10, 2019

few things in life

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A There are a few things in life so beautiful they hurt: swimming in the ocean while it rains, reading alone in empty libraries, the sea of stars that appear when you’re miles away from the neon lights of the city, bars after 2am, walking in the wilderness, all the phases of the moon, the things we do not know about the universe, and you.”

Monday, May 6, 2019

Ek ladki thi meri college ki

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एक लड़की थी मेरी कॉलेज की रोज सुबह वो मिलती थी
   न कुछ कहती थी सुनती थी  चुप चाप वो रहती थी
मैंने उसको पहली बार देखा था जूलॉजी के क्लास में,
करने लगा था प्यार  मै शायद  पहली मुलाकात में
काले काले नैना थे उसके घुंघराले थे बाल
 जब तक मै न देखू उसको दिल रहता था बेहाल था
   जब ये मेरा हाल था वो फर्स्ट ईयर का साल था
 ये जो दिल पर असर हुवा था,ये उसके नजरो का कमाल था
उससे बाते करने को दिल मेरा बेहाल था
जब  सोचा में बता दू उसको
 ये 2 ईयर का लास्ट साल था
next session सुरु हुवा कहानी फिर सुरु हुई 
सोच लिया अब मैंने भी  हाले दिल बताने को
 अब हर वकत दिल मे जो रहता लगा था, वो बस उसी का  ख्याल था
आँखों में बस ख्वाब जलते थे, मोहब्बत के इज़हार का
सोचा मै बता दू उसको बाते अपनी  प्यार का,
पर कही गुसा न हो जाये  
बस यही दिल में रहता सवाल था .
यही  सोच के डरता रहा चुप चाप बस सोचता रहा, हाले दिल इजहार का 
कैसे बताऊ कितना मेरा उसके प्यार में बुरा हल था
जिस दिन मुझको चैन न आती ओ दिन रविवार था
  मेरी मोहब्बत मेरे दिल दबी रह गयी
और ओ मुझसे जुदा हो गयी  और ये लास्ट ईयर का साल था
छोड़ गयी ओ अपनी यादे 
हर गली चौबारे में 
उसके देख लेता हु मै कभी कभी चाँद और सितारों में 


Written by"""" vinod kushwaha

Wednesday, May 1, 2019

Mohobat ki had

मेरे पड़ोस में रहने वाला दीपक,साफ़ दिल का और नेक लड़का था। उसकी जिंदगी तब तक बहुत अच्छी चल रही थी जब तक की उसके ज़िन्दगी में कोई लड़की नहीं आयी थी।मुझे आज भी वो दिन याद है जब दीपक के जिंदगी में कोई नहीं था,वो पढ़ाई छोड़ कर रियल स्टेट का कारोबार करने लगा था, जिसमे उसने खूब पैसा कमाया। उसका जान पहचान बहुत सारे लोगो से हो गया था।और अपने व्यवसाय की वजह से उसकी पहुंच भी बहुत ऊपर तक हो गयी थी,लेकिन वो अपनी जिंदगी में ही मशगूल रहा करता था।इतनी व्यस्तता के बाद भी वो समय निकाल कर मेरे पास आता था और बहुत सारी बातें किया करता था।उसकी बातें सुन कर कुछ देर तक मैं भी टेंशन फ्री हो जाता था,क्योंकि वो अपने क्लाइंट की अजीबो गरीब हरकत के बारे में बताया करता था और हम दोनों बहुत हसा करते थे। दीपक जाति के हिसाब से यदुवंशी था,लेकिन उसके जिंदगी जीने के हिसाब से कभी ऐसा नहीं लगा की वो यदुवंशी है । एक दिन अचानक उसके जिंदगी में एक लड़की आयी जिसका नाम ख़ुशी था, ख़ुशी से मिलना,पूरा का पूरा फ़िल्मी लग रहा था। बात दरसल ये थे की सुबह का समय था और दीपक अपने एक क्लाइंट को प्लाट दिखा कर अकेले अपने कार से लौट रहा था,तभी एक लड़की ने लिफ्ट लेने का इशारा किया और दीपक ने कार को रोक दिया,लड़की कार में बैठते हुए बोली की उसे कॉलेज जाना है जो रास्ते में ही पड़ता है,कॉलेज तक छोड़ देने का रिक्वेस्ट किया । दीपक मान गया और कॉलेज तरफ जाने लगा। फिर लड़की ने बताया की उसे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से उसे काफी परेशानी हो रही है,कॉलेज वाले ना जाने क्यों उसे परेशान कर रहे हैं, दीपक ने कार चलाते हुए कॉलेज के प्रिंसिपल को कॉल किया और लड़की का नाम ख़ुशी बता कर बोला की इस लड़की का एडमिशन ले लीजिये,मेरी जान-पहचान वाली है।ख़ुशी को आस्चर्य हुआ की एक साधारण सा दिखने वाला लड़का सीधे कॉलेज के प्रिंसिपल को कॉल कर दिया है,जबकि दीपक की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। कॉलेज के पास कार रोकते हुए दीपक ने कहा जाओ तुम्हारा एडमिशन हो जायेगा,इस पर ख़ुशी ने दीपक का मोबाइल नंबर मांग लिया और बोली जरुरत होगा तो कॉल कर सकती हूँ? इस पर दीपक ने अपना मोबाइल नंबर देते हुए बोला जरूर,कभी जरुरत पड़े कॉल कर ले।उस दिन ख़ुशी का एडमिशन हो गया और उसने दीपक को कॉल करके धन्यवाद बोला।कुछ दिनों के बाद दीपक फिर काम में व्यस्त हो गया और लड़की अपने कॉलेज की जिंदगी में। लेकिन शायद भगवान को एक बार फिर से ख़ुशी और दीपक को मिलवाना था इसलिए,तो ख़ुशी को एक बार फिर दीपक को कॉल करना पड़ गया,बात दरसल ये हुई की ख़ुशी बहुत तेज बीमार पड़ गयी जिसकी वजह से वो बहुत दिनों तक कॉलेज नहीं जा पायी और कॉलेज वालो ने उसे परीक्षा के लिए फॉर्म नहीं भरने दिया।जिसकी वजह से ख़ुशी को दीपक को कॉल करना पड़ा और दीपक वापस कॉलेज आ कर उसका फॉर्म भरवा दिया, ख़ुशी बहुत ही दुबली नजर आ रही थी, उसका चेहरा पीला था, वो अभी तक बीमार ही थी, अब दीपक रोज अपने कार से सुबह उसके घर जाता और उसे कार में बिठा कर कॉलेज छोड़ता,फिर कॉलेज के पास ही कार ले कर इंतजार करता और ख़ुशी की जब छूटी होती तब उसे पास के ही दुकान पर जूस पिलाता और घर छोड़ देता।जब तक ख़ुशी की पूरी पढ़ाई नहीं हो गयी,दीपक का रोज का यही रूटीन बना रहा,दीपक के इस व्यवहार के वजह से ख़ुशी ने दीपक को अपना जीवन साथी मान लिया था, दीपक भी ख़ुशी को अपना जीवन संगनी मान चूका था।जो ख़ुशी पतली दुबली थी वो आज फूल कर लाल-लाल हो गयी थी,जिसका वजह दीपक के द्वारा ख़ुशी को जूस पिलाना और अच्छा खाना खिलाना था,कॉलेज के अलावे भी ख़ुशी का कोई और काम होता तो दीपक उसे भी कर दिया करता था 
ख़ुशी के चक्कर में उसके सारे क्लाइंट दीपक से नाराज हो गए,क्योंकि दीपक अपने क्लाइंट को समय नहीं दे पता था, 2 साल कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने में लग गया और इन दो सालो में दीपक ने पिछले 6 साल की कमाई ख़ुशी पर खर्च कर चूका था और उसे थोड़ा भी अफ़सोस नहीं हुआ क्योंकि आगे चल कर ख़ुशी उसकी जीवन संगनी ही जो बनने वाली थी। ख़ुशी की पढ़ाई खत्म होने वाली थी,और पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों शादी करने वाले थे, सिर्फ एक प्रोजेक्ट वर्क ख़ुशी का करना रह गया था,वो भी दीपक को ही करवाना था।इसी बीच ख़ुशी के पिता ने ख़ुशी का रिश्ता तय कर दिया,ख़ुशी विरोध नहीं कर पायी और ये बात जब ख़ुशी ने दीपक को बताया तो दीपक पूरी तरह से टूट गया।वो ख़ुशी को बोला की उसके बिना वो जिन्दा नहीं रह सकता, इसलिए उसे छोड़ कर मत जाओ,उसने अपने प्यार का वास्ता दिया,इस पर ख़ुशी ने कहा की वो राजवंशी है और वो अपने जाति के विपरीत नहीं जा सकती। जिस दीपक ने अपने जीवन के 2 साल ख़ुशी को दे दिए,कभी उसे किसी चीज की समस्या नहीं होने दी,वो ख़ुशी आज राजवंशी होने की बात कर रही है, जब उसने उसका साथ उस समय दिया जब वो बिलकुल अकेली थी, तब तो एक यदुवंशी ने ही उसका एडमिशन करवाया,बीमार थी तब कॉलेज छोड़ा,उसका ख्याल रखा,उस समय तक वो भूल गयी की दीपक यदुवंशी है,और आज शादी की बात हुई तो उसे याद आ गया।खैर ख़ुशी के जाने के बाद दीपक सदमे में आ गया और वो घर बंद करके रहने लगा ना किसी से मिलता था ना ही किसी से बात करता था, एक दिन अचानक दीपक घर से निकला तो उसे देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई,दीपक ने बताया की वो ख़ुशी से मिलने जा रहा है, ख़ुशी ने.बात करने को बुलाया है,शायद वो मुझसे दूर नहीं रह सकती इसलिए मुझे बुलाया है,मैं भी खुश हुआ,क्योंकि बहुत दिनों के बाद दीपक के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी, दीपक शाम को आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था,मैंने जब दीपक से पूछा क्या बात हुई तो दीपक ने बोला की ख़ुशी ने प्रोजेक्ट वर्क पूरा करवा देने के लिए बुलाया था,मैंने दीपक से बोला प्रोजेक्ट वर्क मत करवाओ,दीपक ने बोला की मैंने उससे वादा किया है,इसलिए मैं अपना वादा निभाउंगा, और दीपक ने ख़ुशी का प्रोजेक्ट वर्क भी पूरा करवा दिया और ख़ुशी से ये वादा भी ले लिया की अब उसे कभी कॉल ना करे, एक बार फिर दीपक अपने पुराणी जिंदगी में मशगूल हो गया,एक बार  फिर वो रियल स्टेट के व्यवसाय में उतर गया और मेहनत शुरू कर दिया ,लेकिन आज उसके पास ना कार थी,ना अकाउंट में पैसे ना ही ख़ुशी।