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Tuesday, August 31, 2021

बहुत दिनों बाद।

घर से तैयार हो के  दिल्ली आने के लिए घर से निकले
पास के रेलवे स्टेशन पहुंचे जो कि २० किमी दूर है 
इक टाउन है  उसी टाउन से मै १२th और bsc भी किया हुआ
उस टाऊन हर गली गली के लोग जानते हैं मुझे यहां तक कि कुत्ते भी  😊 वहीं से मेरी ट्रेन थी ४ बजें मैं जैसे ही पहुंचा तब तक मेरे ४,५ दोस्त वहां आ गया ये उसी टाऊन के हैं। कुछ देर बाद इक लड़की  आती दिखी उसके साथ में इक आदमी थे। आ के जैसे ही सामने रूकि हम सब देखते ही पहचान गये ५ साल बाद देखें थे उसे जब वो bsc १ year में थी हम लोग bsc ३ year में अक्सर हम और कुछ दोस्त  और ये लड़की इक ही बस से आते थे इक इलाके से आते भी थे  
ये मेरे ८०% friends कि crush थी आज जब ये देखें तो 
इनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा
इतने साल बाद दिखी थी मगर आज उसे जब ५ साल बाद देखें तो  देखता ही रह गये सब !‌ तब तक ट्रेन आ गयी हम ट्रेन कि तरफ़ बढने लगे
इक मेरे दोस्त राजपूत है राजपूत वो भी है वो तो आज भी बोलता है
ये शादी करें तो दहेज दे के कर लु। इसने बोला मुझे इसका नं ले लेना देना मुझे इक दोस्त के लिये इतना तो कर सकते हों न मैंने बोल हां।तब तक वो इक बोगी में चली गयी मुझे भी उसी बोगी में चढ़ा रहे थे सब जबरदस्ती लेकिन मैं नहीं चढ़ा क्योंकि
मेरे पास टिकट नहीं था ९० किमी चलकर गोरखपुर पहुंचना था
 बिना टिकट इस लिए मैं उस बोगी में नहीं चढ़ा। और 
मैंने सोचा यही बिछड़ जाता हु बोल दुंगा कि दोबारा नहीं मिली वो न० कहा से दु। मुझे लगा ये इक दो स्टेशनों तक जायेगी। और ये काम भी मेरे लिए बड़ी चुनौती भरी है गोरखपुर से दिल्ली की हमसफ़र सुपरफास्ट की
रिजर्वेशन था। मुझे लेट भी हो रहा था। फिर उस बात को दिमाग से हटा दिया। पिछे की बोगी में चढ़ा गया
और अपने सफ़र पे ध्यान रखा। क्यों की ये लास्ट ट्रेन थी गोरखपुर जाने वाली
 हां गोरखपुर में थोड़ा इधर उधर देखा कि कहीं दिख जाये लग भी रहा था उसके बैग देख के कि कहीं दुर का तो सफ़र नहीं है। खैर मैं देख कर 
अपने सीट पर जा के बैठ गया। सुबह  जब आनंद बिहार स्टेशन पहुंचा तो उतर के तेजी से मेट्रो स्टेशन के तरफ़ जा रहा था अचानक आगे इक ब्लेक टि शर्ट में इक लड़की दिखी पैर की स्पीड मेरी धिमी हों गई। पिछे से गौर से देखा तो वहीं थी। पता नहीं सामने जाने में क्यों मुझे डर लग रहा था।
 फ़िर मैं उसके दाये साईड से चलने लगा उसको अनदेखा कर के। फिर आगे जा के रूक गया कनफुज था प्लेटफार्म को ले के राजीव चौक वाली मेट्रो पकडनी थी। तब तक वो आई वो भी कनफुज थी। फिर मैं पुछ के प्लेटफार्म के तरफ़ चल दिया आगे जा के रूका फिर ये भी आ के रूक गयी मेरे ७८ % दिमाग उसपे जाने लगा जाना प्लेटफार्म न 2 पे 1 पे चला गया लेकिन वो नहीं गई वहीं रुक गई। लड़कीया कई चिजे इक साथ हेनडल कर लेती हैं। लड़कों से नहीं हो पाता वो अक्सर बहक जाते हैं। वैसे ही हो रहा था। पैर में भी मेरे दर्द था।  मैं परेशान था मैं नहीं चाहता था कि वो सामने आये। मैं 1 प्लेटफार्म पे जाने के बाद
फ़िर मै वापस आया तो देखा वो नहीं है जहां वो रुकीं थीं। सोचा चलो अच्छा हुआ । फिर दिमाग control कर के चल दिया मेट्रो में चढ़कर साइड में खड़ा हो गया अचानक फिर उसपे नजर गई मेरे साईड में ही खड़ी थी। मैं दुसरे तरफ़ मुंह करके खड़ा गया । सोच भी रहा था ऐसा क्यों कर रहा हूं मेरे तरफ कि है हम अब तो दिल्ली में है कौन से अपने इलाके में हैं। अब तो बोल दु फिर सोचा ये नहीं बोल रही तो मैं क्यों बोलु। (मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है। कालेज के समय का कोई भी मिलता न मैं उस समय में जैसा था वैसे ही हो जाता हु) तब तक वो बोल पड़ी आप भाटपार से चढ़े हैं। हम बोले हां बोलीं आप मालबिय से bsc किये है! हम बोले हां बोलीं आपका नाम बिनोद है  हम बोले हां बोलीं पहली बार शहर जा रहें हम बोले नहीं तो बोली कि अब भी आप उतना ही शर्माते हैं जितना तब । हम बोले हां
फिर पुछने लगी काम पढ़ाई etc अपने बारे में में बताई फिर बोली कि मेरे नो पे कल नहीं लग रहा शायद। आप काल करोगे इक बार  मेरे पापा का काल नहीं आ रहा ।वो न0 4 अंक बोलीं थी तब तक उसके बुआ का फ़ोन आ गया वो बात करने लगी फिर मैं इसके तरफ़ देखने लगा और destination station देखने लगा। इस मेट्रो में हरा लाल रंग का कोई  सुचना पट्टी नहीं चल रही थी तो confused भी था स्टेशन को ले के  इसी confusion में राजीव चौक आगे था मुझे लगा पिछे चला गया मैं उसे बिन बोले उतर गया इक आदमी से पूछा तो वो बोला यही जायेगी तब तक वो पिछे से बोली आओ उतर क्यों गये मैं जैसे ही वापस चढ़ने को आगे बढ़ा तब तक गेट बन्द हो गया। मैं और वो देखते हि रह गये।
शायद मेरे दोस्त के  नसीब में उसका न0 नही था। मिल गया होता तब भी नहीं ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंऔर अब भी नहीं।😁😁 अब उसे कहा ढुंढे इतनी बड़ी दिल्ली शहर में। वो तो हमसफ़र ट्रेन से आये थे तो ट्रेन कि मेहरबानी थी जो काई बार बिछड़ कर मिलें। हा लेकिन
आज भी वो वैसे ही लग रही थी सुन्दर वो आकर्षण जिसे देख सब
हमेशा उसकी और खिचा चला चले जाते थे 
आज वो पहले से भी ज्यादा  खूबसूरत लग रही थी 
पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था ! की वो मुझे देखते ही 
पहचान लेगी ! 
ऐसा नहीं है कि कभी बात नहीं हुई थी इससे हुईं थीं बात ३.४ बार जब college time में जब बस में पास बैठी थी।
सुन्दर के साथ दिमाग भी तेज था।
सुन्दर संस्कारी और शर्मिली। लड़की  आज भी वो वैसे ही थी
मासुमियत लिये कई चेहरों वाले शहर में। 
             
 
  

Thursday, August 26, 2021

अतीत

बहुत दिनो बाद आलमरी खोली तो कुछ यादें बिखरी हुए मिली 5 क्लास की रफ, 6 क्लास की किताब कुछ खिलाउने कुछ पेंसिल। सबको समेटे के गौर से देखा तो बचपन की अतित में खो गया।  मास्टर साहब की लिखी हुई बात hurt कर गयी। जो 4 में मेरे कापी में लिखी थी।  राइटीनग सुधारने कि कोशिश करें।  कोशिश तभी से अभी तक जारी है। आज इक दुकान पे मिल गये वहीं वाले सर जी। बोले थोड़ा इक नम्बर लिख दो। कहीं काल पे थे बात कर रहे थे तब तक हम पहुंच गये। पेन उठाया बोले बोलीये सर जी। लिखना शुरू करते ही मुझे पुरानी बात याद आ गयी। वहीं वाली। तब तक बोल पड़े मास्टर साहब अरे अब त‌ साफ साफ लिख द। या कसम खा लेले बाडय। हम ऐसे ही लिखेम।  हम सोचें गज़ब वेइजती हैं यार ।