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Thursday, November 22, 2018

बहुत दिन बाद याद आया वो बीता हुवा पल


मोबाईल की घंटी बजी तो हमेशा की तरह नंबर पर नजर गयी . कोई अनजाना सा नंबर था . चित्त सुबह से अनमना था . कोई काम तो क्या किसी से बात करने या किसी की बात सुनने की भी इच्छा नहीं हो रही थी . हर दिन की घिसी- पिटी दिनचर्या पहले बोरियत और फिर उदासियों में बदलने लगी थी . सुबह उठते ही किचन , अरविन्द के साथ चाय , अरविन्द की आफिस की तैयारी और उसके बीच - बीच में उनकी छेड़ - छाढ़ , कभी - कभी गुस्सा भी , फिर नेहा का स्कूल , काम वाली बाई के साथ झिक- झिक , नेहा का होम वर्क , वही अकेली दोपहर , शाम फिर उसी रूटीन दिनचर्या का बंधन और रात का अधखुला सन्नाटा अक्सर अरविन्द के नाम . क्या इन्ही सब के लिए यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल लिया था . घंटी बजे जा रही थी . उठाने की इच्छा नहीं हुई . फोन बंद हो गया . नीलू अनमनी सी बेड पर अधलेटी बनी रही और मोबाईल में अपने आप को ढूंढ़ती रही . जिसके पास भी इसका नंबर होता है , वही बड़े आराम से इसे बजा लेता है . इसकी इच्छा हो या न हो , इसे बजना पड़ता है और उम्मीद करता है की इसकी आवाज पर इसे उठाया ही जायेगा .इस उधेड़बुन से वह अभी निकली भी नहीं थी कि थोड़ी देर बाद घंटी फिर बज उठी . नंबर वही था और अनजाना था . उसने सोचा पता नहीं कौन है जो इस कदर पीछे पड़ा है कि उसे पूरा विश्वास है कि उसकी बात जरूर सुनी जाएगी ! क्या पता उसे कोई जरूरी काम हो ! उसने फोन उठा लिया . उधर से आवाज आयी , " हेलो , क्या मैं नीलू जी से बात कर सकता हुँ ? "
उसने कहा , " जी ! पर आप कौन , मैं नीलू ही बोल रही हुँ ? "
" लगता है आवाज को पहचाना नहीं . पहचानोगी भी कैसे ? चार साल कम तो नहीं होते . इतने अरसे में तो बहुत कुछ बदल जाता है . "
" क्या कहना चाहते हैं . साफ़ - साफ़ कहिये कि आप कौन हैं और किसे फोन किया है ? नहीं तो मैं फोन रखती हूँ ."
" इसका मतलब समय के साथ कुछ भी नहीं बदला . सब कुछ वैसा ही है . गुस्सा तो तुम्हारी नाक पर रखा रहता है . "
" अच्छा तो तुम हो , अजय ! अरे , इतने अरसे बाद फोन ? " नीलू सोफे पर तरतीब से बैठ गयी ."
" दूसरो पर दोष मढ़ने की आदत आज भी वैसी ही है , तुम्हारी . मैंने किया तो है , तुम तो वो भी नहीं कर सकीं . " अजय ने बेतक्लुफी से कहा .
" हिंदुस्तानी औरत हूँ . मर्द नहीं जो चाहे दुनिया के किसी भी कोने का हो , उसे हर तरह की छूट होती है . " अचानक आये इस फोन से नीलू की उदासी से भरी बोरियत ने अपने आप से निकलने के रास्ते तलाशने की कोशिश की .
" पहले की तरह अपनापन भी दिखाओगी तो वह भी ऐसे जैसे बहुत बड़ा एहसान कर रही हो . " अजय ने उलाहना दिया पर जल्द ही बोला ," चलो छोड़ो इन बातों को . यह बताओ कैसी हो ? "
" बात कर रही हूँ तुमसे तो क्या पता नहीं लग रहा कि कैसी हुँ ? " उसने कहा
" मेरा मतलब कितनी तारीफ़ करूँ तुम्हारी ? " अजय भी कालेज के दिनों की लय में था .
" अब तुमने तारीफ़ की बात की है तो यही कहूंगी की जितनी चाहें कर सकते हो ." नीलू ने शब्दों में अपनत्व घोलने में कोई कमी नहीं की .उसकी रूटीन दिनचर्या उसके अवसाद का कारण बन रही थी और उसने तय कर लिया था कि वह उससे बाहर निकलेगी .
अजय , पोस्ट ग्रेजुएशन में उसका सहपाठी था . बॉटनी की थ्योरी क्लास के बाद सभी स्टूडेंट्स को कालेज के बाद पास के छोटे से बोटेनिकल गार्डन में भी जाना होता था . वहां अन्य सामान्य पौधों के साथ बहुत से औषधीय पौधे भी लगाए गए थे . अजय को उन सभी पौधों की पहचान के साथ नाम और गुण अच्छी तरह से रटे हुए थे . उसकी इस प्रतिभा का लाभ सभी सहपाठी उठाते थे . इस कारण लड़कों के लिए जहां वह ईर्ष्या का पात्र था वहीं लड़कियों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बना रहता था क्योंकि किसी भी पौधे की विशेषताओं को अजय की सहायता से आसानी से समझा जा सकता था . नीलू भी अजय की इस खासियत के कारण उससे अछूती नहीं रह पाती थी .
"अजय ! अगर पेड़ों की यह दुनिया न होती तो पौधों के बिना यह धरती कैसी लगती ? " एक बार नीलू ने उससे पूछा था .
" कैसी क्या ? कल्पना करो की लड़कियों के सर पर एक भी बाल न होता तो वे कैसी लगतीं ? " अजय ने उसकी तरफ उपहास की दृष्टि से देखा था . झेंप गयी थी नमिता . उसे लगा सुन्न हो जाएगी . अजय को लगा कुछ ज्यादा ही हो गया . उसने बात को संभालते हुए कहा , " अरे पगली ! बॉटनी अर्थात वनस्पतियों की बैज्ञानिक हो , इतना तो जानती हो न की पेड़ - पौधे न होते तो हम भी न होते . प्रकृति की उतपत्ति और विकास के मूल में तो वनस्पतियां ही हैं . नेचर ने पेड़ - पौधों की रचना न की होती तो हम भी अस्तित्व में आ न पाते . प्रकृति का प्रथम सौंदर्य हैं ये पौधे . ये हैं तभी तो हम हैं , आभारी हैं हम इनके , प्रकृति के विकास के सबसे कठिन चरणों को इन्होने ही पार किया है . हमारी उतपत्ति का मूल स्रोत हैं ये ." इतना कहकर वह पौधे की पत्तिओं को ऐसे सहलाने लगा जैसे उनका शुक्रिया अदा कर रहा हो की हमारे लिए इन्होने समय के कितने प्रहार झेले ही नहीं , उन प्रहारों से लोहा लेकर , उन्हें हराया भी है . "
अजय ने प्रकृति के रचनात्मक सौंदर्य को इतने सुरीले अंदाज में कहा की नीलू एकटक उसे देखती रह गयी .
" कहाँ खो गयी मैडम , क्या देख रही हो ? " अजय ने टोका था .
" सोच रही हुँ , तुम विज्ञान के स्टूडेंट हो या दर्शन के ? छोड़ो बाटनी , किसी आध्यात्मिक स्कूल को ज्वाइन कर लो . " कहकर खिलखिला पड़ी थी नीलू .
अजय ने भी नाटकीय मुद्रा अख्त्यार कर ली , आदाब की मुद्रा में बोला था , " जनाब की जर्रा नवाजी का शुक्रिया . बोलिये आपकी तारीफ में क्या कहा जाए ? "
" जी ! कुछ खास नहीं , बस हमारे बालों की वैसी ही तारीफ कर दीजिये जैसी इन पौधों की कर रहे हैं . "
दोनों की हंसी की गूंज पूरे गार्डन की हवा में तैर गयी .
अजय , इतने सालोँ बाद नीलू से ऐसी उम्मीद नहीं कर रहा था पर इत्तफाक ने आज फिर अचानक वैसी ही परिस्थितिया उतपन्न कर दी थी .
उसे उम्मीद नहीं थी की नीलू कहेगी जितनी तारीफ़ चाहें कर सकते हो , करो . पर वह था ही हाजिर जवाब . उससे रहा नहीं गया ,सो बोला , " आपकी तारीफ में हम तो कभी रुकना ही नहीं चाहते , आप अनुमति तो दीजिये . " नीलू सोच नहीं पायी की क्या कहे .
थोड़े अंतराल के बाद अजय ने फिर कहा " लगता है वक्त के बेरहम बदलाव के साथ आइना देखना भूल गयीं हो . उसे कभी अपनी नजर से देखोगी तो सब कुछ बतला देगा . "
इस बार नीलू चुप नहीं रही , बोलीं ," वक्त को पीछे सरका पाते तो वो सब नसीब में नहीं होता जो नसीब में आ गया है."
" नसीब में किसको , क्या मिला इसका हिसाब तुम्हारे पास कहाँ से आ गया . नसीब का हिसाब - किताब तो कहीं और लिखा होता है . यहाँ तो सब्र से काम चलता है मैडम , बस . " अजय ने कहा .
नीलू कुछ नहीं कह पायी . अजय भी सोच नहीं पाया की क्या कहे . चुप्पी उन दोनों के बीच फ़ैल गयी .
नीलू कुछ और भी सुनना चाहती थी .
" कुछ कहा नहीं तुमने ? अजय बोला .
" जब इतना कुछ जानते हो तो तुम्ही बता दो की अब क्या कहेगा आइना ? "
" नमिता मैडम , आइना कहता है , कभी - कभी खुद से भी प्यार करना चाहिए , मंद आवाज में बातें करते हुए . " अजय के स्वर में नशा सा आ गया .
" गहरी बातें अब भी उतने ही भोलेपन से करते हो , जैसे तब करते थे , शरारतें करने की तुम्हारी आदतें अब भी बरकरार हैं .वक्त की धूल में जरा भी धुंधली नहीं हुई . " नमिता के शब्दों में पुरानी वाली शर्माहट फिर से आने लगी थी .
" यही तो नसीब है हमारा कि आप को हमारी शरारतें अब भी याद हैं . "
" भूल गए तुम . तुम ही तो कहा करते थे कि कभी - कभी खुद से भी प्यार करना चाहिए ......... खुद पर भी प्यार आना चाहिए .लगता है तुम भी आईने से कम ही रूबरू होते हो ."
" ओह थेंक्स गाड . विश्वास हो गया कि आज सचमुच तुमने अपने आईने को हालात की नजरों से नहीं , अपनी खुद की नजरों से देखा है . इसलिए कमसे कम आज तुमसे जीतना मुश्किल है ."
" मैंने अपनी नहीं तुम्हारी बात की है ." नीलू के स्वरों में शरारत थी .
" यह वक्त का आइना ही है जो तुमसे बात करने की हिम्मत जुटा सका हुँ . थेंक्स नीलू . चाहता हुँ परमिशन दो कि कभी - कभी तुमसे इसी तरह बेबाक बात कर सकूं . " अजय रुआंसा हो आया .
" अजय परमिशन मांग कर मुझे और अपने आपको हर्ट मत करो , तुम्हारे साथ रुमानियत को जिया है मैंने इसलिए यह तो हक़ है तुम्हारा . जिंदगी में नयापन न हो तो उसका रोमांस खत्म हो जाता है . हमेशा नई बातों में ही नयापन नहीं होता . बहुत बार अतीत भी नयापन दे जाता है . जिंदगी हर पल जीने का नाम है . इसे भरपूर जीने के लिए जरूरी है की उसमें लचीलापन हो .कुछ हद तक डेविएशन हो ." नीलू के हर शब्द में उल्लास के साथ ,
अजय को लगा गार्डन में औषधीय पौधे फिर से सुगंध की बिखेर रहे हैं .
उस सुगंध से वह खुद को ही नहीं नीलू को भी महकाना चाहता था .
" अच्छा सुनो , हमारे मिस्टर आते ही होंगे . बाकी बाते फिर कभी . जहां भी हो घर पर आ सकते हो . बैठ कर वही वाला पूरी तरह से हर्बल नमकीन जूस पीते हैं जो कभी तुम्हे बेहद पसंद था . "
अजय , नीलू के इस आग्रह को टाल नहीं सकता था . टालना भी नहीं चाहता था .
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Friday, November 9, 2018

मेहरबानी कयो इन हसिनो पे

पिछले महीने बस से गोरखपुर जाना हुआ। बस में मेरे बगल की सीट पर एक दिव्यांग वृद्ध बैठे हुए थे। उन्हें अस्पताल जाना था। अस्पताल बस स्टैण्ड से पहले पड़ता है। वृद्ध ने कंडक्टर से विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि उसे अस्पताल के पास उतार दे। कण्डक्टर ने साफ इंकार कर दिया। बेचारे वृद्ध मन मसोसकर रह गए।
कुछ देर बाद सामने की सीट पर बैठी काॅलेज की एक खूबसूरत लड़की ने कण्डक्टर से कहा कि वह घर से अपना पेन लाना भूल गई है, इसलिए बस की थोड़ी देर के लिए पेन कार्नर के पास रोक दे। कण्डक्टर ने उसकी बात सहर्ष मान ली।
बस पेन कार्नर के सामने तब तक रूकी रही जब तक कि वह लड़की पेन खरीदकर वापस नहीं आ गई।

बिनोद कुमार कुशवाहा

लव - मैरिज - ATrue story

लव - मैरिज

ये सफर शुरू हुआ था कॉलेज के पहले साल से जहां सना और अनंत दोनों ही एक दूसरे से अनजान थे , वो साइंस में था और वो आर्ट्स में और कई बार एक दूसरे के सामने से गुजर कर भी कभी एक दूसरे को नोटिस नहीं किया था !!

दोनों के बिच एक कड़ी थी सोम उसी ने एक बार सना को अनत के बारे में बताया था तब लेकिन सना को सोम पसंद था इसलिए उसे अनंत में ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं थी बस कभी कभार कॉलेज के बहाने फोन पर बात हो जाया करती थी .. सोम सना क रिश्तेदार था इसलिए उनकी कई बार मुलाकात हो जाया करती थी लेकिन वो सना को सिर्फ दोस्त मानता था , और अगर कुछ और भी होता तो शायद वो कभी कहता नहीं क्यूकी उसे अपने घरवालों का बहुत डर था ...
कुछ समय बाद सना और सोम के बिच किसी बात पर झगड़ा हो गया और दोनों ने एक दूसरे से बात तक करना बंद कर दिया , इसमें फायदा अनंत का हुआ उसे सना के करीब आने का मौका मिल चूका था , शुरुआत दोस्ती से हुयी थी और धीरे धीरे बाते होने लगी , एक दूसरे की अच्छाई से लेकर बुराई तक सब जानने लगे थे . घंटो मैसेज पर बाते होती रहती , कभी मजाक टी कभी किसी बात पर बहस लेकिन य बातो का सिलसिला सिर्फ फोन तक ही सिमित था अभी तक दोनों ने एक दूसरे को नहीं देखा था ,, उस वक्त में कीपेड वाला फोन हुआ करता था ,,,
एक लम्बे वक्त के बाद सना ने अनंत से मिलने का मन बनाया और उसे मेसेज करके कहा
- कल तुम्हारे लिए कुछ बना के ला रही हु, कॉलेज के बरामदे में मिलना 10 बजे
अनंत ने भी ok लिख कर सेंड कर दिया
कॉलेज में 10 बजे बरामदे में खड़ी अनंत का इन्तजार कर रही थी कुछ देर बाद वो आया .. सना ने देखा वो बहुत ही मासूम सा डरा डरा सा दिख रहां था , सना से ज्यादा शर्म तो उसे आ रही थी .. व धीरे धीरे आ रहा था सना उसके पास गयी और चलते चलते उसे टिफिन पकड़ा दिया दोनों की एक बार नजर मिली और झुक गयी
सना मजे लेने के मूड में थी इस; िये चलते चलते कह गयी
- डरो मत भगा के नहीं ले जा रही , और हां टिफिन लौटा देना एक ही है मेर पास
अनंत को उसकी इस बचकानी हरकत पर हसी आ गयी और वो वहां से चला गया .. सना जितनी बिंदास और खुले विचारो की लड़की थी अनंत उतना ही गंभीर और चुप रहने वाला लड़का था .. वो बहुत शर्मीला लड़का था और इसी वजह से सना जब देखो तब उसको तंग करती रहती थी !! कभी उसकी क्लास में जाकर उसके पास बैठ जाती , कभी उसके दोस्तों के सामने उसे छेड कर चली जाती थी .. कभी कभी तो इतनी स्टुपिड हरकते करती की अनंत अपना सर पिट लेता था उसके सामने पर क्या करता दोनों बहुत अच्छे दोस्त जो थे
ऐसे ही एक बार rose day वाले दिन सना की अपनी दोस्तों से शर्त लग गयी
और उसने घुटनो पर बैठ कर सबके सामने अनंत को गुलाब दे दिया , तब शायद वो इसका मतलब भी नहीं जानती थी ... अनंत ने तो कुछ नहीं कहा पर वहा खड़े एक लड़के ने हस दिया
बस फिर क्या था सना उसके पीछे पड़ गयी और लास्ट में उस से sorry बुलवाकर छोड़ा
अनंत जानता था की सना एक निडर और खुले विचारो वाली लड़की है और एक दिन बातो ही बातो में उसने सना से कह दिया की
- तूम में बहुत हिम्मत है न
सना - हां है
- तो इसका मतलब तुम किसी से नहीं डरती
सना - बिलकुल नहीं
- ठीक है तो मेरे साथ कॉलेज के बाहर एक घंटा सबके सामने घूमकर देखो ,
सना - बाहर ?
- डरो नहीं मैं तुम्हे हाथ भी नहीं लगाऊंगा , सिर्फ एक घंटा बाहर रहना है ,,,, (अनंत ने ये सब मजाक कहा और सोचा की सना जाने से मना कर देगी )
पर सना जिद्दी बहुत थी उसने खुद को स्ट्रांग दिखने के लिए हां बोल दी !!
क्लास ख़तम होने के बाद अनत गेट पर खड़ा था सना भी आ गयी और दोनों साथ साथ चलने लगे आज दोनों ही गंभीर थे अनंत ने सोचा नहीं था की सना इस तरह उसके साथ बाहर आ जाएगी इस लड़की को तो किसी का डर नहीं था , बेचारा अनंत ही घबरा रहा था अंदर ही अंदर
और रही सही कसर सना ने पूरी कर दी उसने चलते चलते सबके सामने अनंत का हाथ पकड़ लिया और बिना चेहरे के भाव बदले वैसे भी चलती रही .. अनंत का डर के मारे बुरा हाल था उसे पसीने आने लगे अगर उसे किसी ने इस तरह देख लिया तो आज उसकी पिटाई पक्की थी
उसने धीमी सी आवाज में हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
- हाथ छोडो , कोई देख लेगा plz
सना - क्यों डर लग रहा है ?
- यार कोई देखेगा इस तरह तो क्या सोचेगा ?
सना अचानक उसके सामने आ जाती है और उसकी आँखों में आँखे डालकर कहती है
- जब तुम सही हो, मैं सही हु , दोनों का दिल, दिमाग , सोच साफ है.. फिर लोग क्या सोचते है इस से क्या फर्क पड़ता है, इसलिए अब डरना बंद करो और चलो वहा चलकर बैठते है
सना सामने रखी बेंच की तरफ इशारा करके कहती है
दोनों कुछ देर वही बैठते है और फिर कुछ देर बाते करते है ,अनत बस सना की बाते सुनता रहता है वो अब भी सना का हाथ अपने हाथ में महसूस कर रहा था ,, कुछ देर बाद दोनों घर चले जाते है ... पर अनंत वो सब भूल नहीं पाता उस बार बार वो पल याद आते है और वो महसूस करता है की उसे सना से प्यार हो गया है
और एक दिन अचनाक सना को मेसेज करता है
अनंत - i love you सना , मुझे तुमसे प्यार हो गया है
सना सोचने लगती है ये आज अचानक इसे क्या हो गया है ऐसे बात क्यों कर रह है सना उसे वापस मेसेज करती है !
सना - अनंत ! हम दोनों दोस्त है और प्यार के बारे में नहीं सोचा है अभी तक मैंने
अनंत - पर मुझे हो गया है
सना - अनंत मैं सिर्फ उसी से प्यार करुँगी जिससे मेरी शादी होगी , ऐसे प्यार का कोई मतलब नहीं है जब दोनों को अलग अलग जीना पड़े
अनंत - मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हु !!
सना - अन्नत मैं other cast शादी नहीं कर सकती
अनंत - मैं तुम्हार cast से हु , अगर घरवाले मान जाये तो हमारी शादी हो सकती है ..
सना सोचने पर मजबूर हो जाती है अब तक वो सोम को भूल नहीं पायी थी , लेकिन सोम के लिए नफ़रत अभी भी उसके दिल में थी
सना - अनंत , मुझे थोड़ा वक्त चाहिए , अभी मैं कोई फैसला नहीं ले सकती !!
अनंत - ठीक है , तुम्हे जितना वक्त चाहिए उतना ले सकती हो , पर सच तो ये है की मैं तुम्स बहुत प्यार करता हु ,, और पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हु !! बस तुम्हारी हां चाहिए
कॉलेज का एक साल पूरा हो जाता है और फिर छुट्टिया शुरू हो जाती है , सना और अनंत का मिलना बंद हो जाता है पर इन 3 महीनो की छुटटी में सना को अहसास हो जाता है की वो भी अनंत को चाहने लगी है और एक दिन वो भी अनंत से अपने दिल की बात कह देती है
और फिर शुरू होती है एक प्रेम कहानी -
कहते है जब दो लोग प्यार में होते है तो उनके लिए कुछ सही गलत नहीं होता , उन्हें अपने अलावा कुछ दिखाई नहीं देता बस हर चीज में प्यार नजर आता है, हर बात हर चीज खुद से जुडी हुयी नजर आती है , पहले प्यार का असर ही कुछ ऐस होता है सारी दुनिया गलत और एक अपना यार सच्चा नजर आता है ! हिंदी फिल्मो के सब रोमांटिक गाने सुनकर लगता है जैसे ये सब अपने लिए ही बने हो !!
सना का भी कुछ यही हाल था , वो अनंत को खुद से भी ज्यादा चाहने लगी थी , उसके लिए सब कुछ भूल चुकी थी शायद , लेकिन दोनों ने कभी अपनी सीमाएं पार नहीं की .. कभी कभी घर से बाहर पार्क में उनकी मुलाकात हो जाया करती थी जहा बैठकर दोनों घंटो अपनी आने वाली जिंदगी के सपने बुनते थे !! दोनों इतने गुम हो चुके थे एक दूसरे की मोहब्बत में की एक दूसरे को खो देने के डर से ही तड़प उठते थे ...
एक बार बातो ही बातो में अनंत ने मजाक में सना से कहा क अगर मुझसे प्यार है तो मुझे इसका सबुत चाहिए !!
और अगले ही दिन सना ने अपने खून से अनंत को लेटर लिख के दे दिया .. उसे बहुत दुःख हुआ की उसके मजाक में कही बात क अंजाम ये होगा , पर उसे बहुत ख़ुशी थी की कोई है जो उस से इतना प्यार करता है !! वो जगह दोनों का घर थी जहा उन्होंने अपने आने वाले कल के सेकड़ो सपने बने थे और पूरा करने की कस्मे खायी थी ,,,
पर कोई प्यार में हो और को मुसीबत ना आये ऐसा भला कही हुआ है , यहाँ भी यही हुआ सना के घर पर अनंत के बारे में पता चल गया , और फिर घरवालों ने फरमान जारी कर दिया इसका कॉलेज जाना बंद!!!
और सना के लिए रिश्ता देखा जाने लगा , पर सना जिद पर अडी रही और फिर एक दिन घरवालों को भी मना लिया तब तक अनंत अपना आर्मी का एग्जाम भी क्लियर कर चूका था और सरकारी नौकरी में आ चूका था .. सना के घरवाले अनंत से मिलने को तैयार हो गए , लेकिन अनंत ने अभी तक अपने घर पर इस बारे में नहीं बताया था
सना हर बार उसे कहती लेकिन वो हर बार कोई ना कोई बहाना बनाकर बात को टाल देता था
वो सना को धोखा नहीं दे रहा था लेकिन उसने उस से एक झूठ बोला था और उस झूठ को छुपाने के लिए ही वो
सना को झूठ बोले जा रह था ,,
फिर एक दिन अनंत ने सना को उसी जगह मिलने बुलाया जहा रोज मिलते थे पर आज अनंत के चेहरे पर वो ख़ुशी नहीं थी ...अनंत को उदास देखकर सना ने पूछा
सना - क्या हुआ , सब ठीक तो है
अनंत - सना , मैंने तुम्हे यहाँ कुछ जरुरी बात बताने के लिए बुलाया है
सना - हां कहो न
अनंत - अगले महीने मैं आर्मी की ट्रेनिंग के लिए बैंगलोर जा रहा हु , 6 महीनो के लिए ना तुमसे बात कर पाउँगा ना मिल पाउँगा ,
सना की आँख में आंसू आ जाते है उन्हें अन्नत से छुपाते हुए कहती है - अरे !! ये तो ख़ुशी की बात है , और तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हो इस से ज्यादा ख़ुशी की बात और क्या हो सख्त है भला
अनंत - 6 महीने रह पाओगी मुझसे दूर
सना - तुम्हारी कामयाबी के लिए ये 6 महीने भी रह लुंगी मैं ..
अनंत - अच्छा !! तो फिर ये आँखों में आंसू क्यों है
सना - ये तो ख़ुशी के आंसू है पागल , और कुछ तुमसे दूर होने के !! वहां जाने के बाद तुम्हे कोई और पसंद आ गयी तो फिर मेरा क्या होगा !!
अनंत - कोई और पसंद आ भी जाये तो वो मुझे तुम्हारे जीतना प्यार नहीं कर सकती , और भरोसा रखो मुझपे मेरी जिनदगी में ab और कोई नहीं आएगा . ट्रेनिंग से वापस आते ही मैं अपने घर पर तुम्हारी और मेरी शादी की बात कर लूंगा , बस तब तक मुझपे भरोसा रखो
सना - मुझे तुम पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है , और मैं तुम्हारा इन्तजार करूंगी बस तुम अपना ख्याल रखना , टाइम पर खाना और ज्यादा ठंडा पानी भी मत पीना जुखाम हो जाता है तुम्हे और इस बेग में मैंने कुछ दवाईया और तुम्हारी जरुरत का सामान रखा है , जब भी जरुरत हो तो ले लेना !! महीने में एक बार टाइम मिले और बात कर पाओ तो कर लेना वरना परेशान मत होना !!
इस बार आंसू अनंत की आँखों में थे
सना - अब तुम्हे क्या हुआ ?
अनंत - कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है ?
सना - मैं करती हु न , और हमेशा करुँगी ऐसे ही उम्रभर ,
अनंत सना के आता है और उसके हाथो को अपने हाथो में ले लेता है !! और कहता है
अनंत - तुमसे एक बात पुछु ?
सना - हम्म
अनंत - अगर कोई तुम्हे मेरे बारे में आकर कुछ कहे तो क्या तुम मान लोगी ?
सना - अगर भगवान भी आकर कहे तो नहीं मानूंगी , तुम कहोगे तो मान लुंगी
अनंत - इतना प्यार करती हो मुझसे ..
सना - हां , शायद खुद से भी ज्यादा ..
अनंत सना को गले लगा लेता है , चाहत है की ये पल कुछ देर यही थम जाये क्युकी कुछ देर बाद वो ये सब छोड़कर बहुत दूर चल जायेगा !! दोनों ही खुश थे और दुखी भी ..
अनंत - कल सुबह 7 बजे मेरी ट्रैन है , स्टेशन आओगी ना मुझे छोड़ने ?
सना - नहीं !!
अनंत - क्यों ?
सना - क्युकी मैं तुम्हे खुद से दूर जाते हुए नहीं देखना चाहती
और फिर फूटफूट कर रोने लगती है 1 साल के रिश्ते में सना ने कभी अनंत से दूर जाने का नहीं सोचा ,, झगडे बहुत बार होते थे लेकिन दोनों के प्यार की डोर उन झगड़ो से कई ज्यादा मजबूत थी ...
सना ने सामने की दिवार पर अनंत लव सना लिख दिया !!
अनंत - ये किसलिए
सना - जब भी तुम्हारी याद आएगी यहाँ आकर इसे देख लिया करुँगी
दोनों भारी मन से घर के लिए निकल जाते है अगले दिन अनंत बैंगलोर के लिए निकल जाता है पर पुरे रस्ते सिर्फ एक ही बात दिमाग में घूमती रहती है
अनंत सोचता है - इस बार मैं आते ही उसे सब सच बता दूंगा , पहले ही बता देता लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था , सच जानने के बाद भले वो मुझे माफ़ ना करे लेकिन मैं उसे और धोखे में नहीं रख सकता !! मर जाएगी ऐसी है वो जिस दिन उसे सब पता चलेगा मुझसे बहुत बडी गलती हो गयी , पर ये सब मैंने उसे पाने के लिए किया क्युकी जीतन प्यार वो मुझसे करती है उतनी ही मोहब्बत मैं उस से करता हु !!
यह सब सोचते सोचते अन्नत बैंगलोर पहुंच जाता है , और आर्मी ज्वाइन कर लेता है ... घर को माँ पापा को और सबसे ज्यादा सना को याद करता रहता है ... वो चाहता है की जल्दी से जल्दी ट्रेनिंग ख़तम हो और वो घर पहुंच जाये ...
इधर अनंत के जाते ही सना उदास रहने लग जाती है , कॉलेज जाना भी लगभग कम कर देती है , वो दिन रात उसे याद करती रहती है और उसके साथ बिताये वक्त को याद करती रहती है जो की उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलो में से था !! हफ्ते में एक बार सना उस पार्क में जाती है और घंटो वहा वक्त बिताकर आ जाती है सना वहां लिखे अपने और अनंत के नाम को देखकर सोचती है की कब यहाँ लव से वेड्स होगा ... 1 महीना निकल जाता है अनंत का कोई फ़ोन नहीं आता है पर सना को उस पर पूरा भरोसा था ,, एक दिन अनंत का फोन आता है और सना खुश हो जाती है कुछ ही दिन बाद सना के रिलेशन में कोई शादी होती है इत्तेफाक से सोम भी उसी शादी में आता है दोनों एक दूसरे को देखते है लेकिन बात नहीं करते शायद दोनों की नाराजगी अभी भी थी ...
चूँकि अनंत सोम का अच्छा दोस्त था इसलिए सना की मम्मी ने सोम से पूछा
- बेटा, वो कौन दोस्त है तुम्हारा जो आर्मी में है
सोम - जी अंनत !
- कैसा लड़का है वो ?
सोम - जी अच्छा लड़का है मेरे साथ ही पढ़ा हुआ है और बचपन से दोस्त है हम दोनों !!
पर आप क्यों पूछ रही हो ?
- सना उस से प्यार करती है और शादी करना चाहती है ,
सोम के पेरो तले जमीं खिसक गयी उसे कुछ समझ नही आया की क्या करे उसने कहा - पर सना ु दोनों की शादी कैसे हो सकती है ??
- हां हम लोगो ने बहूत समझाया सना को पर वो मानने को तैयार ही नहीं है उसपे तो बस लव मैरिज का भूत सवार है , और जब जब उसने बताया की अनंत भी अपनी ही कास्ट से है तो फिर हम लोग भी मान गए , उसकी ख़ुशी से बढकर कुछ नहीं है
अब तुमसे मिलकर तसल्ली हो गयी की उसने अपने लिए सही लड़का चुना है !!!
सोम का सर फटने लगा एक साल में इतना कुछ हो गया और उसे कुछ पता नहीं चला न सना ने बताया ना अनंत ने कुछ कहा , उसे अनंत पर बहुत गुस्सा आया , सना की मम्मी ने जो बताया वो सच्चाई से बिलकुल अलग था सोम ने सना की मम्मी से कुछ नहीं कहा और वह से चला गया
सोम सना से बात करने क मौका ढूंढ़ने लगा वो सना को सच बता देना चाहता था जो अब तक अनंत उस से छुपा रहा था लेकिन सना ने सोम से कोई बात नहीं की , फिर सोम ने सारा सच सना की बहन को बता दिया और कहा की वो जाकर सना को ये सब बताये क्युकी सोम की हिम्मत नहीं थी उसे टूटता हुआ देखने की !!
सना की बहन ने जाकर सना को सब बाते बता दी एक बार तो सना को भरोसा ही नहीं हुआ लेकिन जब बहन ने बताया की ये सब सोम ने कहा है टी उसे मानना पड़ा , सना ने अनंत को फोन किया
सना - हेलो अनंत !
अनंत - हां बोलो
सना - तुम्हारी कास्ट क्या है ? (सना ने सीधा सवाल किया )
अनंत कुछ देर चुप रहा वही हुआ जिसका डर था , सना को शायद सच का पता चल चूका था फिर भी अनंत ने हिम्मत करके कहा
- सना मैं तुम्हे ये सब बहुत पहले बता देना चाहत था, पर तुम्हे खो देनेके डर से कुछ नहीं बोल पाया
सना - मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो ?
अनंत - हां !! तुमने जो सुना वो सब सही है मैं other कास्ट से हु , पर मैं तुमसे बहुत प्यार करता हु !!
सना ने फोन काट दिया , उसकी आँखों से आंसू बहने लगे चेहरे पर कोई भाव नहीं था पर आंसुओ ने बहना जारी रखा , बाकि लोग जहा शादी का जश्न मना रहे थे सना का दिल मातम मना रहा था , दिल टूट ता है तो दर्द होता है पर जब पहली बार होता है तो असहनीय दर्द होता है वही सना के साथ हो रहा था , लो कहते है सिर्फ दिल टूट ता है गलत कहते है बॉडी का हर एक पार्ट मातम मनाता है ... सच जानने के बाद सना के चेहरे से हसी जैसे गायब हो गयी बस सबके सामने मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी .. सोम से सना का दर्द देखा नहीं जा रहा था
उसने अन्नत को फोन करके बुरा भला कहा और उसे अहसास दिलाया की उसने बहुत बड़ी गलती की है .. इधर अनंत भी उसी दर्द से गुजर रहा था उसे बहुत बुरा लग रहा था की उसने सना को धोखे में रखा , पर उसने ये सब सिर्फ सना को पाने के लिए किया था ...
कुछ वक्त गुजरा और सना और अनंत के बिच बातचीत का सिलसिला बंद हो चूका था , ना ही उसकी सोम से बात होती थी उसने खुद को जॉब में बिजी कर लिया लेकिन शादी की बात को हमेशा टालती रही
एक साल गुजर गया अनंत ट्रेनिंग से वापस आ चूका था लेकिन उसकी सना से बात करने की हिम्मत नहीं हुयी .. और फिर एक दिन उसने सना से बात की और माफ़ी मांगने लगा , उसने सना से एक मौका और मांगा खुद के प्यार को सही साबित करने का , सना का दिल पिघल चूका था उसने उसे माफ़ कर दिया
पर अब तक दोनों काफी मेच्योर हो चुके थे , अनंत भी पहले से काफी बदल चूका था लेकिन अगर कुछ नहीं बदल तो वो तह सना का अनंत के लिए प्यार !! वो अब भी उसे पागलो की तरह प्यार करती थी ...जॉब के कारन अनंत बहुत कम सना से मिल पता था सना ने उस से कई बार कहा की वो अपने घरवालों से बात ककरे पर अन्नत हमेशा टालता रहा
इधर सना के घरवाले उसे शादी के लिए दबाव बनाने लगे लड़के देखने लगे ा दिन हारकर उसने अनंत से कहा
सना - तूम अपने घरवालों से बात क्यों नहीं करते !!
अनंत - घरवाले नहीं मांनेंगे
सना - अगर तुम नहीं बोल सकते तो मैं बोल देती हु उनको उसके बाद जो होगा देखा जायेगा
अनंत - ये इतना आसान नहीं है
सना - तो फिर प्यार क्यों किया जब मुझे अपनाना ही नहीं था (सना उदास हो जाती है )
अनंत - मैं लव मैरिज नहीं कर सकता , पापा कभी नहीं मानेगे
सना - ओह्ह !! तो जब ये बात थी तो फिर मेरी जिंदगी में वापस क्यों आये , मुझे फिर से क्यों वही उम्मीद दी जो मैं कबका छोड़ चुकी थी
अनंत चुप रहता है कुछ नहीं कहता !!
सना - 2 दिन बाद मुझे देखने लड़के वाले आ रहे है , फैसला तुम पर छोड़ती हु आ तुम्हारी मर्जी , तुम्हारे लिए अब मैं अपने माँ बाप का दिल और नहीं दुखा सकती !!
इतना कहकर सना वहां से चली जाती है सना अनंत के जवाब का इंतजार करती है लेकिन अनंत बीना जवाब दिए वापस बेंगलोर चला जाता है , सना घरवालों की पसंद के लड़के से सगाई कर लेती है !! शादी तय हो जाती है और शादी के 1 महीने पहले अनंत बैंग्लोर से आता है और सना से मिलने के लिए कहता है
दोनों अपनी उसी पुराणी जगह पहुंच जाते है जहा अकसर मिलते थे !! सना चुप थी और अनंत भी फिर अनंत ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा
अनंत - शादी मुबारक हो ,
सना - थैंक्यू
अनंत - तूम खुश हो !!
सना - उस से क्या फर्क पड़ता है अनंत , मेर ख़ुशी अब मेरे घरवालों की ख़ुशी में है .. मैं नहीं जानती तुम्हारी क्या मज़बूरी रही होगी लेकिन मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है
अनंत - मुझे माफ़ कर दो ,
सना - तुम्हारी कोई गलती नहीं है , मैंने ही तुम पर कुछ ज्यादा भरोसा कर लीया था , टूट ना तो था ही , खैर तुम भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर लेना
अनंत - नहीं मुझे अब शादी नहीं करनी ,, अब मैं किसी और से प्यार नहीं कर सकता, न ही लव मैरिज कर सकता !!
सना - क्यों नहीं करनी , जिंदगी क्या ऐसे ही काटोगे अकेले .. और अगर शादी नहीं करो तो बच्चो का ना नाम कैसे रखोगे जो हमने रखा था .
इतना कहकर सना ,मुस्कुरा पड़ी उसके होठो पर हसी भले हो लेकिन आँखे नम हो चुकी थी
अनंत - पापा लव मैरिज के लिए कभी नहीं मानते ////
सना - अगर तुमने एक बार कोशिश की होती तो शायद जरूर मानते ,, चलती हु शायद अब कभी न मिल पाउ
/ इतना कहकर सना वहां से निकल जाती है वो जानती थी ये अनंत से उसकी आखरी मुलाकात है , आँखों में आयी नमी कोई देख ना पाए इसलिए आँखों पर काला लगा लेती है
कुछ दिन बाद सना की शादी हो जाती है लेकिन यहाँ भी क़िस्मत उसका साथ नहीं देती है शादी के एक साल बाद ही सना का तलाक हो जाता है और वो वापस अपने घर आ जाती है ..
शादी के सना ने अनंत को हमेशा क लिए खुद से दूर कर दिया था ,,
शादी के बाद अनंत ने कई बार सना से बात करने और मिलने की कोशिश की लेकिन हर बार असफल रहा .. वक्त गुजरता रहा सना नहीं चाहती थी की उसकी ऎसी हालत के बारे में अनंत को कभी पता ना चले
एक दिन सना की एक दोस्त प्रिया घर आयी और इधर उधर की बाते करने के बाद उसने कहा की
प्रिया - सना , तुम्हे पता है अनंत शादी कर रहा है
सना - हां तो ये तो अच्छी बात है , इसमें गलत क्या है --- सना ने बिना उसकी तरफ देखे कहा
प्रिया - गलत ये है की वो लव मैरिज कर रहा है , वो भी घरवालों के खिलाफ जाकर other कास्ट लड़की से !!
सना चुपचाप उसका मुँह देखती रही और उसने कहना जार रखा
प्रिया - आज उसमे बड़ी हिम्मत आ गयी , तब क्या हो गया था उसे जब तुमसे प्यार था तब तो उसने खुद अपने कदम पीछे ले लिए थे, तुम्हारे बारे में एक बार भी नहीं सोचा ,, और आज लव मैरिज कर रहा है वो !
सना चुप थी पर उसके अंदर कुछ टूट सा रहा था और उसकी चुभन उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी , वो खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रही थी बेशक अनंत गलत नहीं होगा पर आज उसे अपनी दोस्त की बाते भी सच लग रही थी ak बार फिर सना की आँखे नम हो उठी ,,
प्रिया - उस इंसान के लिए आँसू बहाने की जरूरत नहीं है तुझे , आज तेरी इस हालत क पीछे कही ना कही वो भी जिम्मेदार है , प्यार के नाम पर बस हमेशा धोखा देता रहा तुम्हे और तुम उसे प्यार समझती रही ,, तुम्हारे लिए wo घरवालों को कह भी न सका और आज किसी और के लिए वो सबके खिलाफ जाने को तैयार है, अपने माँ बाप के भी
की तुम्हारा प्यार , प्यार नहीं था !!
सना जानती थी की उसका गुस्सा जायज था , पर उसने चुप रहना सही समझा
सना - सुन !! शांत हो जा वो मेरा बिता हुआ कल है और अपने बीते हुए कल की वजह से मैं अनंत का आने वाला कल बिगाड़ना नहीं चाहती , उसे उसका प्यार मिल गया है और उसे पूरा हक़ है अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का !!
मैं उसका अतीत हु और अतीत का काम है बित जाना बस वो खुश रहे मुझे और कुछ नहीं चाहिए
प्रिया - तो क्या तुम उसे ऐसे ही जाने दोगी , उसने तुम्हारे साथ जो किया उसका जरा भी दुख नहीं तुम्हे .. तुम्हारी जिंदगी को इस हाल में लाकर वो अपना घर बसा रहा है और तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ रहा और अभी भी उसकी परवाह ho रही है
सना - उसने जो भी किया हो मैंने तो उस से प्यार किया था ना , तो फिर उसे गलत बोलना मतलब अपने प्यार को गाली देना .. उसकी जो भी मज़बूरी रही हो मुझे अब उस से कोई शिकायत नहीं है , उसकी दुनिया अब कुछ और है और मेरी दुनिया कुछ और !!
प्रिया - पर वो.....
सना - शशशशशश plz , अब कुछ मत बोलो ... मैं और नहीं सुन सकती
प्रिया - ठीक है !! तुम ठीक हो (सना की भीगी पलके देखकर पूछती है)
सना - हम्म्म , मुझसे एक वादा करोगी ?
प्रिया - हां बोलो ,,
सना - अनंत को मेरे बारे में कभी कुछ पता नहीं चलना चाहिए ..
प्रिया - लेकिन क्यों ?
सना - मैं नहीं चाहती की वो खुद को मेरा गुनहगार समझे !! मैं चाहती हु की वो अब हमेशा खुश रहे मेरी परछाई भी उसके आस पास ना हो ...
इस बार पलके भीगने की बारी प्रिया की थी ,,
प्रिया - कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है ..
सना - मैं करती हु ना !! कहकर सना प्रिया को गले लगा लेती है
सना - मेरे साथ बाहर चलोगी
प्रिया - चलो
दोनों पार्क में उसी दिवार के सामने जाकर रुक जाती है जहा "अनंत लव सना" लिखा था !! कुछ देर उसे अपलक देखने के बाद सना लव और सना नाम को मिटा देती है पर अनंत का नाम छोड़ देती है !! प्रिया को कुछ समझ नहीं आता तो पूछ लेती है
प्रिया - ये लव क्यों मिटाया ,
सना - अब मेरा इसपे हक़ नहीं रहा
प्रिया - तो फिर अनंत का नाम क्यों नहीं मिटाया !!
सना - उसका नाम मिटाया तो मोहब्बत बुरा मान जाएगी ,
प्रिया - उस से इश्क़ था ?
सना न अपनी बड़ी बड़ी भीगी पलकों को उठाकर कहा - आज भी है !!
और दोनों पार्क से बाहर निकल जाती है
कुछ दिनों बाद अखबार में एक खबर आती है
"आर्मी अफसर ने किया प्रेम - विवाह"

Friday, November 2, 2018

मेरी बेचैनिय मुझे जीने नही देती

Kabhi kabhi bechainiya mujhe jine nhi deti.
badi uljhane bdhati hai mujhe sone nhi deti. 

Mere sapne jad hai mere bechainiyo ka.   
Chhod deta mai apne sapno ka hakikat me badalna per meri umeede aisa hone nhi deti. 

Thak jata hu mai har kar kosise tmam karne k bad  per mere hosle mere andar  thakan hone nhi deti. 
Mai hu aur meri umide hai bus aaj kal mere sath ..

 Andheri rat nind bhi hai thakan bhi hai . Sona to chahta hu.
 Per ye jajbate mujhe sone nhi deti. Mujhe sone nhi deti

Thursday, October 4, 2018

अनकही कहानी उस सुबह कि

ये उन दिनो की बात है जब मै  Bsc मे पढता था  सुबह का समय था लगभग  4.30 बजे थे  ठंड के मैसम होने के कारण सभी लोग सोये थे मेरे घर से मेरे college की दुरी 18 किमी थी मै अकसर साईकल से ही जाता था  6 बजे से लेकीन उस दिन सुबह मे coaching  होने के कारण मै 4 बजे से ही घर से निकला था कुहासे इतने थे कि कुछ दिखाई नही दे रहा था घर से लगभग 5 किमी दुर गया था ये जगह सुन सान पडता था काफी दुर तक घर नही था .. मै जैसे ही वहा पहुचा मुझे लडकी कि चिलाने कि अवाज सुनाई दी मै एका एक रुुक  गया फिर पिछे से खटकने कि अवाज आई मै पिछे मुड के देखा तो इक साईकल साइड मे था और...

Monday, September 17, 2018

यादे और मोहोबत

My first poem  
 Uski yadey

Uski yad me n jane kya kya kahani ban gyi mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi

uske chehre ki masumiat mere aankho pe chha gyi..uski aada mere dil ko bha gyi

paheli bar jab maine usko dekha to uske .yad me din ..rat ktne lgi.dekh kar usko mere dil ki dhadkane badne lgi.

uske yad me n jane kya kya kahani ban gyi.mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi  

Uski yade bus yado me simt gyi, uski yad jawani ki nishani ban gyi

uske yad me n Jan kya kya khani ban gyi mano ki jaise ye jwani hai diwani ban gyi 

Dhire  dhire uski chaht kam hone lgi  o jan kar bhi humse aanjan banne lgi..

uski yad me n jane kya kya kahani ban gyi mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi

Maine socha ki agle salo me kahani nya range layegi o Hume dekh kar u hi muskurayegi Dekhte hi Dekhte o Mughese bichhad gyi,

uski yad me ek nyi kahani ban gyi, O Ab bus khowab ban  ke  rah gyi.

Chhod gayi o Apni Yadey Her Gali Chaubare me,
Dekh Leta hu Ab Bhi use Kabhi kabhi Chand Aur Sitaro Me

  This story is real  story..Written.by  vinod kumar kushwaha.      HEART    TOUCHing ,,REAL,,STORY,,
              

मेरे कालमो की आवाज







कहानी .   
 
एक लेखक हमेशा कुछ न कुछ अच्छा लिखने को तड़पता रहता है , वो हमेशा से अपने पाठकों को इस दुनिया में हो रही हलचलों से, नयी बातों से रूबरू कराने की कोशिश करता है, वो चाहता है हमेशा उसके पाठक उसकी कहानियों में खुद को ढूंढें, वो उसकी लिखी कहानियों को समझे, जाने , और कुछ नया सीखें. वो अपनी ज़िन्दगी के सारे अनुभवों को एक कहानी में इस तरह पिरोता है जैसे मानो वो जानता हो कि उसके पाठकों की ज़िन्दगी में क्या चल रहा है , वो अपनी कहानियों में उनके उलझे हुए सवालों के जवाब दे जाता है ... मै कोई लेखक नहीं हूँ पर आज कुछ लिखने को मैं कर रहा है , देवरिया  शहर के एक छोटे से घर के कमरे में बैठा हुआ मैं , मेज पर रखे टाइपराइटर और कुछ पन्नो का ढेर देख कुछ लिखने को मैं व्याकुल हो उठा तो मेने अपनी कुर्सी सरका कर मेज के साथ लगाई , पन्नो के ढेर से एक पन्ना निकाला और टाइपराइटर में लगाया, और उंगलियां टाइपराइटर के बटन्स पर रखी ... क्या लिखूं , कहाँ से शुरू करूँ, टाइपराइटर में फसा वो पन्ना मुझसे बोल रहा था , शुरू करो, कुछ लिख डालो मुझ पर ...
कमरे में चमकता हुआ बल्ब बार बार जल बुझ रहा था...कमरा छोटा था तो मैंने कमरे की खिड़की खोल दी , थोड़ी हवा से मैं मोहित हो उठा, थोड़ी ही देर में बारिश ने पूरे वातावरण में मिठास घोल दी ... बारिश के साथ चली वो थोड़ी हवा अपने साथ यादों का एक झोंका ले आयी और मेरे जीवन में घटी हुई कहानी के पन्ने खोल कर मेरे सामने रख दिए...
अहमद चाचा , ज़रा एक कप अपनी स्पेशल चाय तो पिलाओ... ये आवाज़ सुन कर मै थोड़ा चौंका , पलट कर देखा तो एक सफ़ेद कुर्ते पायजामे में, २३-२४ साल का लड़का मेरे थोड़ी ही दूर बैठा हुआ था, हाथ में एक डायरी और पेन, उसके हाव-भाव से वो एक लेखक नज़र आ रहा था... मुझे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद थे, मुझसे रहा न गया और मै उस लड़के के पास जा कर बैठ गया और खुद के लिए एक चाय आर्डर कर दी ...
मैं कुछ देर तक उस लड़के की डायरी की तरफ देखता रहा , मैने काफी कोशिश की देख लूँ आखिर क्या लिखा है उस डायरी में... पर नहीं देख पाया. मुझसे रहा न गया और मै उस लड़के से पूछ बैठा,
मैं : क्या तुम लेखक हो ??
मेरी आवाज़ सुन कर उसने अपनी डायरी झट से बंद कर ली... फिर वो बोला :
लड़का : जी ! आपने मुझसे कुछ कहा ?
मैं : हाँ ! क्या तुम एक लेखक हो ?
लड़का : अह्ह .... नहीं तोह !
मैं : तो फिर तुम इस डायरी में क्या लिख रहे हो ?
लड़का: कुछ नहीं, ये तो बस ऐसे ही ...
मैं : ओह्ह...शायद मुझे ही कुछ ग़लतफहमी हो गयी ... दरअसल बात ये है की मुझे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद है , मुझे माफ़ करना...!
लड़का: जी ! कोई बात नहीं...
चायवाला चाय दे गया , और मेने पास में पड़ा हुआ अखबार उठाया, और पढ़ने लगा,
थोड़ी ही देर बाद वो लड़का मुझसे बोला,
लड़का : जी ! मैं लेखक नहीं हूँ , पर बनना चाहता हूँ
मैंने अपना अखबार बंद किया और उसकी तरफ़ बात करने को मुडा,
मैं: अच्छा ,क्या नाम है तुम्हारा ?
लड़का : जी ! अनुभव, अनुभव वर्मा
मैं : तोह अभी तक कुछ लिखा है ?
लड़का: जी ! हाँ , मैं कहानियां लिखता हूँ
मैं : तो क्या मैं सुन सकता हूँ ?
लड़के ने थोड़ी देर सोचा , फिर बोला,
लड़का: अच्छा जी ! ठीक है , मैं आपको कहानी सुनाऊंगा पर यहाँ नहीं , कहीं अकेले में
मैं उसकी इस बात को सुन कर समझ गया और बोला,
मैं : ठीक है ! पर पहले ये चाय ख़त्म कर लूँ , फिर चलते है...
मैंने गिलास में भरी चाय का आखिरी घूँट अपने गले में उतरा, और अपनी जगह से उठते हुए बोला , चलें ! , मैंने चायवाले को उसके पैसे देकर, उस लड़के के साथ दुकान से बाहर आया,
लड़का : जी ! क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ?
मैं : आनंद श्रीवास्तव, यहीं पास में एक बैंक है , मै उसमे लिपिक हूँ
लड़का : ओह्...जी ! अच्छा
मैं : हाँ तो , कहाँ चलना है ?
लड़का: यहाँ पास में ही एक समंदर है, वहां चलते है !
मैं : लाजवाब ! समंदर के किनारे कहानी सुनना , मेरा मन तो अभी से प्रफुल्लित हो रहा है.
मैं : तो चलते है ...
हम दोनों समंदर के किनारे पर पहुँचे , और बैठ गए ... आस पास देखा बहुत ही ख़ूबसूरत नज़ारा था.
मैं : तो शुरू करो , लेखक साहब !
लड़का : जी ! ये कहानी है एक लड़के की जो ......
उसकी कहानी में एक अजब का एहसास था , वो जब कहानी सुना रहा था तो उस कहानी के सारे पात्र मेरी आँखों के सामने नज़र आने लगे... मै खुद को उस कहानी के पात्रों में महसूस करने लगा, ये बिलकुल एक सपने जैसा था , और जैसे ही उसकी कहानी ख़त्म हुई , मेरे हाथों ने तालियों का रूप ले लिया और मेरे मुंह से निकला : वाह ! बहुत खूब
मैं : तुम तो सच में बहुत अच्छा लिखते हो
लड़का: सच में ?
मैं : हाँ, क्या तुम्हारी लिखी और कहानियां है ?
लड़का : हाँ, काफी है !
मैं : तो तुम एक किताब क्यों नही छपवाते ?
लड़का : मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं किताब छपवा सकूँ
मैं : ओह...कोई बात नहीं , कभी न कभी तुम्हारी किताब ज़रूरी छपेगी
लड़का : मैं भी इसी उम्मीद में हूँ
मैं : मै तुम्हारी और कहानियां सुनना चाहूंगा ? , क्या तुम सुनोगे ?
लड़का : क्यों नहीं , पर अभी तो काफी देर हो चुकी है ...
मैं : हाँ , रात होने वाली है , चलो चलते है , कल तुम्हारी अगली कहानी ज़रूर सुनूंगा.
लड़का : जी ज़रूर , कल मिलते है फिर ..
मैं : जी ! लेखक साहब ... शुभरात्रि
लड़का : शुभरात्रि.
अगली शाम को हम फिर चाय वाले पर मिले , और फिर वहां से समंदर....ऐसा हर रोज होने लगा, वो हर राज मुझे एक नयी कहानी सुनाता... उसकी कहानियां मुझे मेरे कई सवालों के जवाब दे जाती... ये कितना आसान सा महसूस हो रहा था, मैंने उससे इन मुलाकातों में उसके बारे में काफी कुछ जान लिया था , वो पास ही की एक बस्ती में रहता था, . वो सुबह एक स्कूल में बच्चों को हिंदी पढ़ाया करता था, और शाम को उस समंदर किनारे आ कर कहानियां लिखा करता था...
एक शाम मैं चायवाले की दुकान पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था, मैं घडी की तरफ बार बार देखता फिर सड़क की तरफ... पर वो नहीं आया , मैं समंदर के पास भी गया, इस तलाश में कि क्या पता वो वहां हो पर वो वहां भी नहीं था , काफी देर इंतज़ार के बाद मैं अपने घर की तरफ चल पड़ा. घर लौटते वक़्त मनन में सिर्फ एक ही सवाल था , वो आज आया क्यों नहीं ?
अगली कुछ शामों में वो मुझे नहीं मिला , मैं कुछ दिन तक उसका चायवाले की दुकान पर , समंदर के किनारे उसका इंतज़ार करता रहा... उसके स्कूल जाकर भी उसके बारे में पूछा तो जवाब मिला वो कुछ दिनों से स्कूल नहीं आया... अब मेरा मैं उसकी चिंता करने लगा, कुछ डरावने ख्याल मन को सताने लगे , मुझसे रहा न गया उसका पता लगाने उसकी बस्ती में गया, कुछ लोगों से उसके घर का पता पूछा, पूछते पूछते मैं उसके घर के बाहर पहुँच गया, मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया... कुछ ही देर बाद उस लड़के ने दरवाजा खोला, मुझे देखते ही उसने मुझे अन्दर आने को कहा.. उसका उदास चेहरा देख कर मैंने उससे पूछा, क्या हुआ ?, कई दिनों से तुम आये नहीं ? वो बोला गाव जानी है. कुछ देर बाद वो थोडा शांत हुआ, और बोला, लड़का : अब मैं और कहानियां नहीं सुना पाउँगा.
मैं : क्यों ?
लड़का : मैं ये शहर छोड़ कर जा रहा हु , यहाँ अब मेरा कोई है ही नहीं तो यहाँ रह क्या करूँगा.
मैं : तो फिर कहाँ जाओगे ?
लड़का : जिसके लिए जी रहा था , वो तो अब इस दुनिया में है नहीं.... अब मेरी ज़िंदगी मेरी ये कहानियां है , सोच रहा हूँ किसी बड़े शहर जा कर काम करूँ,और पैसे बचा कर अपनी किताब छपवाऊँ
ज़िन्दगी हर कदम पर कई नए मोड़ ला कर खड़ा कर देती है, हम सोचते है कौनसा रास्ता सही है कौनसा गलत. लेकिन रास्ते सारे सही है ये आप पर निर्भर करता है की आप रास्तों में आने वाली परिस्थिति का कैसे सामना करते हो ?
मैं : तो कब निकल रहे हो ?
लड़का: कल शाम को ६ बजे की ट्रेन है.
मैं : ओह्...
लड़का : कुछ दोस्तों से बात हुई है , शहर में वो मेरे रहने का इंतजाम कर देंगे.
मैं : सही है, अरे ! रात हो गयी (खिड़की से बाहर देखते हुए) अभी मैं चलता हूँ, कल शाम को मिलते है चाय वाले पर…
लड़का : जी ! ज़रूर
मैं : अच्छा, अपना ध्यान रखना.
लड़का : जी !
और मैं उसके घर से चल दिया..
अगले दिन जब चायवाले की दुकान के लिए निकला तो मन में ख्याल आ रहा था , शायद आज उससे मेरी आख़िरी मुलाक़ात हो , क्या पता हम कभी दोबारा मिलेंगे या नहीं ?, सोचा उसके लिए एक तोहफा ले चलूँ... तोहफा पैक करवाने के बाद, मैं चायवाले की दुकान पर जा पहुंचा. वो वहां अपने सामान के साथ पहले से मौजूद था. मैं उसके पास जा कर बैठ गया और चाय आर्डर कर दी. मेने उसे तोहफा देते हुए कहा,
मैं : ये मेरी तरफ से , तुम्हारे लिए , एक छोटा सा तोहफा.
लड़का : अरे इसकी क्या ज़रूरत थी
चायवाला चाय दे गया , कुछ देर हम बातें करते रहे. और धीरे धीरे उसके जाने का वक़्त नजदीक आता गया, उसने घडी को देखते हुए कहा,
लड़का : लगता है, अब चलना चाहिए
मैं : जी.. चलिए !
हम दोनों रेलवे स्टेशन पहुंचे, ट्रैन आने में थोड़ा वक़्त था... हमने प्लेटफार्म पर सारा सामान रख दिया, और ट्रैन का इंतज़ार करने लगे
लड़का : सुनिए ! मैंने कुछ लिखा है...
और उसने अपनी जेब से एक कागज निकाला और मुझे थमा दिया, और कहा,
लड़का : इसे मेरे जाने के बाद ही पढियेगा
मैं : पर इसमें लिखा क्या है ?
लड़का : कहानी , आज की कहानी
थोड़ी ही देर में ट्रैन स्टेशन पर आ गयी... और उसके जाने का वक़्त हो गया. मैने उसका सामान ट्रेन में चढ़ाया , फिर उसे गले लगाया
मैं : मैं उम्मीद करता हूँ, तुम एक अच्छे लेखक ज़रूर बनोगे.
लड़का : धन्यवाद, मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा
ट्रैन ने अपना सिग्नल दे दिया...
मैं : अलविदा दोस्त, फिर मिलेंगे !
और ट्रैन चलने लगी..... तभी तेज़ चलती हवा से मेरे कमरे की खिड़की का दरवाजा टकराया , और मैं चौंक उठा... मैंने उठ कर खिड़की बंद की , और कमरे में जा कर अपनी किताबो के शैल से एक किताब में रखा हुआ वो कहानी वाला कागज निकाला,जो उसने जाते वक़्त दी थी.. और पढ़ना शुरू किया
आनंद जी , आज की कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद थे, वो मानता था कि लेखक एक ऐसा शख्स है जो ज़िन्दगी को भली भांति समझता है, उसकी कहानियों में हर सवाल के जवाब छुपे होते है, वो एक दिन एक चायवाले की दुकान पर एक लड़के को देखता है जो देखने में एक लेखक जैसा ही होता है, वो लड़का उस लेखक से मिलता है,लड़के को पता चलता है वो लेखक है नहीं, पर बनना चाहता है, धीरे धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है, वो लेखक उस लड़के को रोज़ समंदर किनारे एक कहानी सुनाता, उसकी कहानियां को सुन कर वो लड़का अपनी ज़िन्दगी में आ रही उलझनों का जवाब ढूंढ लेता, इन मुलाकातों में उस लड़के ने लेखक के बारे में बहुत कुछ जान लिया था, लेकिन लेखक ने उस लड़के एक झूठ बोला था,उसकी माँ तो १ साल पहले ही गुज़र गयी थी,
लेखक, माँ के गुज़र जाने के बाद खुद को काफी अकेला महसूस करने लगा, स्कूल में पढ़ाने से सिर्फ उसकी दैनिक जरूरतें ही पूरी हो रही थी, वो इतने कम पैसों में कभी भी अपने सपने पूरे नहीं कर सकता था, वो खुद की एक किताब छपवाना चाहता था पर उस लेखक में आत्मविश्वास की कमी थी, उसे डर था की कहीं वो सफल न हुआ तो. पर जब वो लड़का उसकी ज़िन्दगी में आया, उसने उसकी कहानियों की तारीफ़ की, और उस लेखक से बोला, तुम्हे तो एक किताब छपवानी चाहिए. तब जा कर लेखक के अंदर का आत्मविश्वास जगा. और उसने ठान लिया अब वो बड़े शहर जा कर काम करेगा और पैसे बचा कर खुद की किताब छपवाएगा. और आनंद जी, आपसे वादा करता हूँ, मेरी किताब की पहली प्रतिलिपि में आपको ही भेजूँगा…
धन्यवाद आनंद जी !

हालात मेरे जिन्दगी की

ज़िन्दगी के उलझे सवालो के जवाब ढूंढता हु
कर सके जो दर्द कम, वोह नशा ढूंढता हु वक़्त से मजबूर, हालात से लाचार हु मैं
जो कोई देदे  जीने का बहाना ऐसी राह ढूंढता हु मै
हर दर्द का सताया हु मै . जिंदगी मै चैन का नाम ढुढता हु मै

नजरो का कसुर .तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ
तेरी नीली आँखों से कुछ ख्वाब चुराने आया हूँना दे इल्ज़ाम तू चोरी का, मैं चोर नहीं दीवाना हूँ इस रात की बस औकात मेरी, मैं नन्हा इक परवाना हूँले चलूँ तुझे तारों की छाँव, आ चल मैं लेने आया हूँ तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
तेरी चमक पे नहीं अटका मैं, तेरी सादगी पे फिसला हूँ
है आज आखिरी रात मेरी, मोहब्बत के सफर पे निकला हूँ
रख दे मेरे काँधे पर सर, इक गीत सुनाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
जो मधुर मिलन दो पल का है, वो सदियों पे भारी है
ला पिला दो ज़ाम इन आँखों से, मेरे पैमाने खाली हैं
अधरों पे मुस्कान तो ला, मैं तुझे हंसाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
सुना है चाँद की बस्ती खाली है, वहां किसी से जान-पहचान नहीं
पत्थर के टीले पर बैठेंगे, सबसे छुपकर चुपचाप कहीं
क्यूँ ऐसे रूठी सोयी है, मैं तुझे मनाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
वो देख फलक पर बादल हैं, और चाँद बगल से झांक रहा
तू याद करेगी रे पगली, इस रात मैं तेरे साथ रहा
बंधन तुझसे है जन्मो का, मैं तुझे बताने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
सूरज आने ही वाला है, है थोड़ी सी अब साँस बची
क्यूँ करती है रे ज़िद सजनी, तारों की बारात सजी
तू दुल्हन, मैं तेरा दूल्हा हूँ, मैं ब्याह रचाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ
तेरी नीली आँखों से कुछ ख्वाब चुराने आया हूँ
""""Writer"""""""@विनोद"""""

भैसों का ट्वीट


आज कल भौसौ मे बहुत रोस है वे सरकार के खिलाप धरने के मुड मे है  आज सुबह twite कर जानकारी दी. आखिर कयो उनके साथ अनदेखा किया जा रहा. गायो को सर पे चडा रखी है सरकार और हमारी कोई फिकर ही नही.  इस twite के वाद  गायो ने दे दना दन retwite किया है. सपा सरकार मे मेरी नही सुनी जा रही थी तो तुम सब के मुह मे दही जमी थी हम लोग कभी कुछ बोले ..आगे कि खबर के लिये पढते रहीये

यादे मेरे बचपन की

मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गयी! OFFICE की खिड़की से जब देखा मैने,मौसम की पहली बरसात को.... काले बादल के गरज पे नाचती, बूँदों की बारात को... एक बच्चा मुझसे निकालकर भागा था भीगने बाहर... रोका बड़प्पन ने मेरे, पकड़ के उसके हाथ को! बारिश और मेरे बचपने के बीच एक उम्र की दीवार खड़ी हो गयी... लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी.. वो बूँदें काँच की दीवार पे खटखटा रही थी... मैं उनके संग खेलता था कभी, इसीलिए बुला रही थी... पर तब मैं छोटा था और यह बातें बड़ी थी... तब घर वक़्त पे पहुँचने की किसे पड़ी थी... अब बारिश पहले राहत, फिर आफ़त बन जाती है... जो गरज पहले लुभाती थी,वही अब डराती है.... मैं डरपोक हो गया और बदनाम सावन की झड़ी हो गयी... लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी.. जिस पानी में छपाके लगाते, उसमे कीटाणु दिखने लगा... खुद से ज़्यादा फिक्र कि लॅपटॉप भीगने लगा... स्कूल में दुआ करते कि बरसे बेहिसाब तो छुट्टी हो जाए... अब भीगें तो डरें कि कल कहीं OFFICE की छुट्टी ना हो जाए... सावन जब चाय पकोड़ो की सोहबत में इत्मिनान से बीतता था, वो दौर, वो घड़ी बड़े होते होते कहीं खो गयी.. लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी... Vinod kumar kushwaha