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Monday, September 17, 2018

यादे और मोहोबत

My first poem  
 Uski yadey

Uski yad me n jane kya kya kahani ban gyi mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi

uske chehre ki masumiat mere aankho pe chha gyi..uski aada mere dil ko bha gyi

paheli bar jab maine usko dekha to uske .yad me din ..rat ktne lgi.dekh kar usko mere dil ki dhadkane badne lgi.

uske yad me n jane kya kya kahani ban gyi.mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi  

Uski yade bus yado me simt gyi, uski yad jawani ki nishani ban gyi

uske yad me n Jan kya kya khani ban gyi mano ki jaise ye jwani hai diwani ban gyi 

Dhire  dhire uski chaht kam hone lgi  o jan kar bhi humse aanjan banne lgi..

uski yad me n jane kya kya kahani ban gyi mano ki jaise ye jawani hai diwani ban gyi

Maine socha ki agle salo me kahani nya range layegi o Hume dekh kar u hi muskurayegi Dekhte hi Dekhte o Mughese bichhad gyi,

uski yad me ek nyi kahani ban gyi, O Ab bus khowab ban  ke  rah gyi.

Chhod gayi o Apni Yadey Her Gali Chaubare me,
Dekh Leta hu Ab Bhi use Kabhi kabhi Chand Aur Sitaro Me

  This story is real  story..Written.by  vinod kumar kushwaha.      HEART    TOUCHing ,,REAL,,STORY,,
              

मेरे कालमो की आवाज







कहानी .   
 
एक लेखक हमेशा कुछ न कुछ अच्छा लिखने को तड़पता रहता है , वो हमेशा से अपने पाठकों को इस दुनिया में हो रही हलचलों से, नयी बातों से रूबरू कराने की कोशिश करता है, वो चाहता है हमेशा उसके पाठक उसकी कहानियों में खुद को ढूंढें, वो उसकी लिखी कहानियों को समझे, जाने , और कुछ नया सीखें. वो अपनी ज़िन्दगी के सारे अनुभवों को एक कहानी में इस तरह पिरोता है जैसे मानो वो जानता हो कि उसके पाठकों की ज़िन्दगी में क्या चल रहा है , वो अपनी कहानियों में उनके उलझे हुए सवालों के जवाब दे जाता है ... मै कोई लेखक नहीं हूँ पर आज कुछ लिखने को मैं कर रहा है , देवरिया  शहर के एक छोटे से घर के कमरे में बैठा हुआ मैं , मेज पर रखे टाइपराइटर और कुछ पन्नो का ढेर देख कुछ लिखने को मैं व्याकुल हो उठा तो मेने अपनी कुर्सी सरका कर मेज के साथ लगाई , पन्नो के ढेर से एक पन्ना निकाला और टाइपराइटर में लगाया, और उंगलियां टाइपराइटर के बटन्स पर रखी ... क्या लिखूं , कहाँ से शुरू करूँ, टाइपराइटर में फसा वो पन्ना मुझसे बोल रहा था , शुरू करो, कुछ लिख डालो मुझ पर ...
कमरे में चमकता हुआ बल्ब बार बार जल बुझ रहा था...कमरा छोटा था तो मैंने कमरे की खिड़की खोल दी , थोड़ी हवा से मैं मोहित हो उठा, थोड़ी ही देर में बारिश ने पूरे वातावरण में मिठास घोल दी ... बारिश के साथ चली वो थोड़ी हवा अपने साथ यादों का एक झोंका ले आयी और मेरे जीवन में घटी हुई कहानी के पन्ने खोल कर मेरे सामने रख दिए...
अहमद चाचा , ज़रा एक कप अपनी स्पेशल चाय तो पिलाओ... ये आवाज़ सुन कर मै थोड़ा चौंका , पलट कर देखा तो एक सफ़ेद कुर्ते पायजामे में, २३-२४ साल का लड़का मेरे थोड़ी ही दूर बैठा हुआ था, हाथ में एक डायरी और पेन, उसके हाव-भाव से वो एक लेखक नज़र आ रहा था... मुझे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद थे, मुझसे रहा न गया और मै उस लड़के के पास जा कर बैठ गया और खुद के लिए एक चाय आर्डर कर दी ...
मैं कुछ देर तक उस लड़के की डायरी की तरफ देखता रहा , मैने काफी कोशिश की देख लूँ आखिर क्या लिखा है उस डायरी में... पर नहीं देख पाया. मुझसे रहा न गया और मै उस लड़के से पूछ बैठा,
मैं : क्या तुम लेखक हो ??
मेरी आवाज़ सुन कर उसने अपनी डायरी झट से बंद कर ली... फिर वो बोला :
लड़का : जी ! आपने मुझसे कुछ कहा ?
मैं : हाँ ! क्या तुम एक लेखक हो ?
लड़का : अह्ह .... नहीं तोह !
मैं : तो फिर तुम इस डायरी में क्या लिख रहे हो ?
लड़का: कुछ नहीं, ये तो बस ऐसे ही ...
मैं : ओह्ह...शायद मुझे ही कुछ ग़लतफहमी हो गयी ... दरअसल बात ये है की मुझे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद है , मुझे माफ़ करना...!
लड़का: जी ! कोई बात नहीं...
चायवाला चाय दे गया , और मेने पास में पड़ा हुआ अखबार उठाया, और पढ़ने लगा,
थोड़ी ही देर बाद वो लड़का मुझसे बोला,
लड़का : जी ! मैं लेखक नहीं हूँ , पर बनना चाहता हूँ
मैंने अपना अखबार बंद किया और उसकी तरफ़ बात करने को मुडा,
मैं: अच्छा ,क्या नाम है तुम्हारा ?
लड़का : जी ! अनुभव, अनुभव वर्मा
मैं : तोह अभी तक कुछ लिखा है ?
लड़का: जी ! हाँ , मैं कहानियां लिखता हूँ
मैं : तो क्या मैं सुन सकता हूँ ?
लड़के ने थोड़ी देर सोचा , फिर बोला,
लड़का: अच्छा जी ! ठीक है , मैं आपको कहानी सुनाऊंगा पर यहाँ नहीं , कहीं अकेले में
मैं उसकी इस बात को सुन कर समझ गया और बोला,
मैं : ठीक है ! पर पहले ये चाय ख़त्म कर लूँ , फिर चलते है...
मैंने गिलास में भरी चाय का आखिरी घूँट अपने गले में उतरा, और अपनी जगह से उठते हुए बोला , चलें ! , मैंने चायवाले को उसके पैसे देकर, उस लड़के के साथ दुकान से बाहर आया,
लड़का : जी ! क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ?
मैं : आनंद श्रीवास्तव, यहीं पास में एक बैंक है , मै उसमे लिपिक हूँ
लड़का : ओह्...जी ! अच्छा
मैं : हाँ तो , कहाँ चलना है ?
लड़का: यहाँ पास में ही एक समंदर है, वहां चलते है !
मैं : लाजवाब ! समंदर के किनारे कहानी सुनना , मेरा मन तो अभी से प्रफुल्लित हो रहा है.
मैं : तो चलते है ...
हम दोनों समंदर के किनारे पर पहुँचे , और बैठ गए ... आस पास देखा बहुत ही ख़ूबसूरत नज़ारा था.
मैं : तो शुरू करो , लेखक साहब !
लड़का : जी ! ये कहानी है एक लड़के की जो ......
उसकी कहानी में एक अजब का एहसास था , वो जब कहानी सुना रहा था तो उस कहानी के सारे पात्र मेरी आँखों के सामने नज़र आने लगे... मै खुद को उस कहानी के पात्रों में महसूस करने लगा, ये बिलकुल एक सपने जैसा था , और जैसे ही उसकी कहानी ख़त्म हुई , मेरे हाथों ने तालियों का रूप ले लिया और मेरे मुंह से निकला : वाह ! बहुत खूब
मैं : तुम तो सच में बहुत अच्छा लिखते हो
लड़का: सच में ?
मैं : हाँ, क्या तुम्हारी लिखी और कहानियां है ?
लड़का : हाँ, काफी है !
मैं : तो तुम एक किताब क्यों नही छपवाते ?
लड़का : मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं किताब छपवा सकूँ
मैं : ओह...कोई बात नहीं , कभी न कभी तुम्हारी किताब ज़रूरी छपेगी
लड़का : मैं भी इसी उम्मीद में हूँ
मैं : मै तुम्हारी और कहानियां सुनना चाहूंगा ? , क्या तुम सुनोगे ?
लड़का : क्यों नहीं , पर अभी तो काफी देर हो चुकी है ...
मैं : हाँ , रात होने वाली है , चलो चलते है , कल तुम्हारी अगली कहानी ज़रूर सुनूंगा.
लड़का : जी ज़रूर , कल मिलते है फिर ..
मैं : जी ! लेखक साहब ... शुभरात्रि
लड़का : शुभरात्रि.
अगली शाम को हम फिर चाय वाले पर मिले , और फिर वहां से समंदर....ऐसा हर रोज होने लगा, वो हर राज मुझे एक नयी कहानी सुनाता... उसकी कहानियां मुझे मेरे कई सवालों के जवाब दे जाती... ये कितना आसान सा महसूस हो रहा था, मैंने उससे इन मुलाकातों में उसके बारे में काफी कुछ जान लिया था , वो पास ही की एक बस्ती में रहता था, . वो सुबह एक स्कूल में बच्चों को हिंदी पढ़ाया करता था, और शाम को उस समंदर किनारे आ कर कहानियां लिखा करता था...
एक शाम मैं चायवाले की दुकान पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था, मैं घडी की तरफ बार बार देखता फिर सड़क की तरफ... पर वो नहीं आया , मैं समंदर के पास भी गया, इस तलाश में कि क्या पता वो वहां हो पर वो वहां भी नहीं था , काफी देर इंतज़ार के बाद मैं अपने घर की तरफ चल पड़ा. घर लौटते वक़्त मनन में सिर्फ एक ही सवाल था , वो आज आया क्यों नहीं ?
अगली कुछ शामों में वो मुझे नहीं मिला , मैं कुछ दिन तक उसका चायवाले की दुकान पर , समंदर के किनारे उसका इंतज़ार करता रहा... उसके स्कूल जाकर भी उसके बारे में पूछा तो जवाब मिला वो कुछ दिनों से स्कूल नहीं आया... अब मेरा मैं उसकी चिंता करने लगा, कुछ डरावने ख्याल मन को सताने लगे , मुझसे रहा न गया उसका पता लगाने उसकी बस्ती में गया, कुछ लोगों से उसके घर का पता पूछा, पूछते पूछते मैं उसके घर के बाहर पहुँच गया, मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया... कुछ ही देर बाद उस लड़के ने दरवाजा खोला, मुझे देखते ही उसने मुझे अन्दर आने को कहा.. उसका उदास चेहरा देख कर मैंने उससे पूछा, क्या हुआ ?, कई दिनों से तुम आये नहीं ? वो बोला गाव जानी है. कुछ देर बाद वो थोडा शांत हुआ, और बोला, लड़का : अब मैं और कहानियां नहीं सुना पाउँगा.
मैं : क्यों ?
लड़का : मैं ये शहर छोड़ कर जा रहा हु , यहाँ अब मेरा कोई है ही नहीं तो यहाँ रह क्या करूँगा.
मैं : तो फिर कहाँ जाओगे ?
लड़का : जिसके लिए जी रहा था , वो तो अब इस दुनिया में है नहीं.... अब मेरी ज़िंदगी मेरी ये कहानियां है , सोच रहा हूँ किसी बड़े शहर जा कर काम करूँ,और पैसे बचा कर अपनी किताब छपवाऊँ
ज़िन्दगी हर कदम पर कई नए मोड़ ला कर खड़ा कर देती है, हम सोचते है कौनसा रास्ता सही है कौनसा गलत. लेकिन रास्ते सारे सही है ये आप पर निर्भर करता है की आप रास्तों में आने वाली परिस्थिति का कैसे सामना करते हो ?
मैं : तो कब निकल रहे हो ?
लड़का: कल शाम को ६ बजे की ट्रेन है.
मैं : ओह्...
लड़का : कुछ दोस्तों से बात हुई है , शहर में वो मेरे रहने का इंतजाम कर देंगे.
मैं : सही है, अरे ! रात हो गयी (खिड़की से बाहर देखते हुए) अभी मैं चलता हूँ, कल शाम को मिलते है चाय वाले पर…
लड़का : जी ! ज़रूर
मैं : अच्छा, अपना ध्यान रखना.
लड़का : जी !
और मैं उसके घर से चल दिया..
अगले दिन जब चायवाले की दुकान के लिए निकला तो मन में ख्याल आ रहा था , शायद आज उससे मेरी आख़िरी मुलाक़ात हो , क्या पता हम कभी दोबारा मिलेंगे या नहीं ?, सोचा उसके लिए एक तोहफा ले चलूँ... तोहफा पैक करवाने के बाद, मैं चायवाले की दुकान पर जा पहुंचा. वो वहां अपने सामान के साथ पहले से मौजूद था. मैं उसके पास जा कर बैठ गया और चाय आर्डर कर दी. मेने उसे तोहफा देते हुए कहा,
मैं : ये मेरी तरफ से , तुम्हारे लिए , एक छोटा सा तोहफा.
लड़का : अरे इसकी क्या ज़रूरत थी
चायवाला चाय दे गया , कुछ देर हम बातें करते रहे. और धीरे धीरे उसके जाने का वक़्त नजदीक आता गया, उसने घडी को देखते हुए कहा,
लड़का : लगता है, अब चलना चाहिए
मैं : जी.. चलिए !
हम दोनों रेलवे स्टेशन पहुंचे, ट्रैन आने में थोड़ा वक़्त था... हमने प्लेटफार्म पर सारा सामान रख दिया, और ट्रैन का इंतज़ार करने लगे
लड़का : सुनिए ! मैंने कुछ लिखा है...
और उसने अपनी जेब से एक कागज निकाला और मुझे थमा दिया, और कहा,
लड़का : इसे मेरे जाने के बाद ही पढियेगा
मैं : पर इसमें लिखा क्या है ?
लड़का : कहानी , आज की कहानी
थोड़ी ही देर में ट्रैन स्टेशन पर आ गयी... और उसके जाने का वक़्त हो गया. मैने उसका सामान ट्रेन में चढ़ाया , फिर उसे गले लगाया
मैं : मैं उम्मीद करता हूँ, तुम एक अच्छे लेखक ज़रूर बनोगे.
लड़का : धन्यवाद, मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा
ट्रैन ने अपना सिग्नल दे दिया...
मैं : अलविदा दोस्त, फिर मिलेंगे !
और ट्रैन चलने लगी..... तभी तेज़ चलती हवा से मेरे कमरे की खिड़की का दरवाजा टकराया , और मैं चौंक उठा... मैंने उठ कर खिड़की बंद की , और कमरे में जा कर अपनी किताबो के शैल से एक किताब में रखा हुआ वो कहानी वाला कागज निकाला,जो उसने जाते वक़्त दी थी.. और पढ़ना शुरू किया
आनंद जी , आज की कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसे बचपन से ही लेखक लोग बहुत पसंद थे, वो मानता था कि लेखक एक ऐसा शख्स है जो ज़िन्दगी को भली भांति समझता है, उसकी कहानियों में हर सवाल के जवाब छुपे होते है, वो एक दिन एक चायवाले की दुकान पर एक लड़के को देखता है जो देखने में एक लेखक जैसा ही होता है, वो लड़का उस लेखक से मिलता है,लड़के को पता चलता है वो लेखक है नहीं, पर बनना चाहता है, धीरे धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है, वो लेखक उस लड़के को रोज़ समंदर किनारे एक कहानी सुनाता, उसकी कहानियां को सुन कर वो लड़का अपनी ज़िन्दगी में आ रही उलझनों का जवाब ढूंढ लेता, इन मुलाकातों में उस लड़के ने लेखक के बारे में बहुत कुछ जान लिया था, लेकिन लेखक ने उस लड़के एक झूठ बोला था,उसकी माँ तो १ साल पहले ही गुज़र गयी थी,
लेखक, माँ के गुज़र जाने के बाद खुद को काफी अकेला महसूस करने लगा, स्कूल में पढ़ाने से सिर्फ उसकी दैनिक जरूरतें ही पूरी हो रही थी, वो इतने कम पैसों में कभी भी अपने सपने पूरे नहीं कर सकता था, वो खुद की एक किताब छपवाना चाहता था पर उस लेखक में आत्मविश्वास की कमी थी, उसे डर था की कहीं वो सफल न हुआ तो. पर जब वो लड़का उसकी ज़िन्दगी में आया, उसने उसकी कहानियों की तारीफ़ की, और उस लेखक से बोला, तुम्हे तो एक किताब छपवानी चाहिए. तब जा कर लेखक के अंदर का आत्मविश्वास जगा. और उसने ठान लिया अब वो बड़े शहर जा कर काम करेगा और पैसे बचा कर खुद की किताब छपवाएगा. और आनंद जी, आपसे वादा करता हूँ, मेरी किताब की पहली प्रतिलिपि में आपको ही भेजूँगा…
धन्यवाद आनंद जी !

हालात मेरे जिन्दगी की

ज़िन्दगी के उलझे सवालो के जवाब ढूंढता हु
कर सके जो दर्द कम, वोह नशा ढूंढता हु वक़्त से मजबूर, हालात से लाचार हु मैं
जो कोई देदे  जीने का बहाना ऐसी राह ढूंढता हु मै
हर दर्द का सताया हु मै . जिंदगी मै चैन का नाम ढुढता हु मै

नजरो का कसुर .तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"


तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ
तेरी नीली आँखों से कुछ ख्वाब चुराने आया हूँना दे इल्ज़ाम तू चोरी का, मैं चोर नहीं दीवाना हूँ इस रात की बस औकात मेरी, मैं नन्हा इक परवाना हूँले चलूँ तुझे तारों की छाँव, आ चल मैं लेने आया हूँ तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
तेरी चमक पे नहीं अटका मैं, तेरी सादगी पे फिसला हूँ
है आज आखिरी रात मेरी, मोहब्बत के सफर पे निकला हूँ
रख दे मेरे काँधे पर सर, इक गीत सुनाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
जो मधुर मिलन दो पल का है, वो सदियों पे भारी है
ला पिला दो ज़ाम इन आँखों से, मेरे पैमाने खाली हैं
अधरों पे मुस्कान तो ला, मैं तुझे हंसाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
सुना है चाँद की बस्ती खाली है, वहां किसी से जान-पहचान नहीं
पत्थर के टीले पर बैठेंगे, सबसे छुपकर चुपचाप कहीं
क्यूँ ऐसे रूठी सोयी है, मैं तुझे मनाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
वो देख फलक पर बादल हैं, और चाँद बगल से झांक रहा
तू याद करेगी रे पगली, इस रात मैं तेरे साथ रहा
बंधन तुझसे है जन्मो का, मैं तुझे बताने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ………………..
सूरज आने ही वाला है, है थोड़ी सी अब साँस बची
क्यूँ करती है रे ज़िद सजनी, तारों की बारात सजी
तू दुल्हन, मैं तेरा दूल्हा हूँ, मैं ब्याह रचाने आया हूँ
तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ
तेरी नीली आँखों से कुछ ख्वाब चुराने आया हूँ
""""Writer"""""""@विनोद"""""

भैसों का ट्वीट


आज कल भौसौ मे बहुत रोस है वे सरकार के खिलाप धरने के मुड मे है  आज सुबह twite कर जानकारी दी. आखिर कयो उनके साथ अनदेखा किया जा रहा. गायो को सर पे चडा रखी है सरकार और हमारी कोई फिकर ही नही.  इस twite के वाद  गायो ने दे दना दन retwite किया है. सपा सरकार मे मेरी नही सुनी जा रही थी तो तुम सब के मुह मे दही जमी थी हम लोग कभी कुछ बोले ..आगे कि खबर के लिये पढते रहीये

यादे मेरे बचपन की

मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गयी! OFFICE की खिड़की से जब देखा मैने,मौसम की पहली बरसात को.... काले बादल के गरज पे नाचती, बूँदों की बारात को... एक बच्चा मुझसे निकालकर भागा था भीगने बाहर... रोका बड़प्पन ने मेरे, पकड़ के उसके हाथ को! बारिश और मेरे बचपने के बीच एक उम्र की दीवार खड़ी हो गयी... लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी.. वो बूँदें काँच की दीवार पे खटखटा रही थी... मैं उनके संग खेलता था कभी, इसीलिए बुला रही थी... पर तब मैं छोटा था और यह बातें बड़ी थी... तब घर वक़्त पे पहुँचने की किसे पड़ी थी... अब बारिश पहले राहत, फिर आफ़त बन जाती है... जो गरज पहले लुभाती थी,वही अब डराती है.... मैं डरपोक हो गया और बदनाम सावन की झड़ी हो गयी... लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी.. जिस पानी में छपाके लगाते, उसमे कीटाणु दिखने लगा... खुद से ज़्यादा फिक्र कि लॅपटॉप भीगने लगा... स्कूल में दुआ करते कि बरसे बेहिसाब तो छुट्टी हो जाए... अब भीगें तो डरें कि कल कहीं OFFICE की छुट्टी ना हो जाए... सावन जब चाय पकोड़ो की सोहबत में इत्मिनान से बीतता था, वो दौर, वो घड़ी बड़े होते होते कहीं खो गयी.. लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी... Vinod kumar kushwaha