Monday, March 18, 2019

जब देखा गॉंव के नजरो से शहर को

शहर अब कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा हैं, ऊँची इमारते, चौड़ी सड़के, चकाचौंध जो मन को मोह ले परन्तु इन शहरों का हकीकत कुछ और ही हैं. लोग अपनी जीविका चलाने के लिए इतने मजबूर हो गये हैं कि शहर में पैसा कमाने के चक्कर में प्रदूषित जल पी रहे हैं और प्रदूषित वायु को ग्रहण कर रहे हैं. हवा और पानी अब तो शहरों में बिकने लगे हैं.

रिश्तों की कोई अहमियत नहीं हैं. स्वार्थ ही इनका सबसे बड़ा रिश्तेदार हैं. जेब में जब पैसा होता हैं तो शहर रंगीन दीखता हैं यदि पैसा न हो तो वीरान सा लगता हैं.

शहर की यहीं जिन्दगी हैं,
अब तो हवाओं में भी गंदगी हैं.

यादों का शहर देखो बिल्कुल वीरान हैं,
दूर-दूर तक न जंगल, न कोई मकान

रहने का मजा तो गाँव में हैं,
शहर कहाँ पेड़ की छाँव में हैं.

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