इक जगह जहां आप बड़े सपने देखते हुए बड़े हुए हैं।
वो सपने जो अधूरे रह गये हैं। जब भी उस जगह पे वापस आओगे। सपने वैसे ही जिन्दा मिलते हैं कहीं अलमारियों में कहीं बरामदे में कहीं किसी टेबल पर पड़े हुए।  कभी कभी सोचता हूं उन सपनों का क्या जो जड़ें की रात में भीगते हुए बरसात में जुन की गर्मी में देखें थे। सोचता हूं जगह छोड़ते ही सपने भुलते गये। सोचता हूं वो सपने वापस गाव आने पे ही क्यों जिन्दा हो जातें हैं। शायद सपने यादें और जगह ये तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं।  अगर हम सपने की बात करें तो गांवों मे टुटी चारपाई पर लेटा हुआ बचा चंद को देखता है।  और चांद पर जाने की तमाम तरीके के बारे में सोचता है।  ग़रीबी और कम संसाधनों मे जो सपने आते हैं न वो अमीरों के घर में नहीं आते।  इतिहास गवाह है बड़े से बड़े साइंटिस्ट बदतर हालातों में रह कर कुछ ऐसा दिया हैं संसार को की सदियों तक रिसर्च चलता रहेगा।  सपने की बात करें तो बहुत बड़े बड़े सपने इन गांव के गलियारों में दफ़न हो जातें हैं ।  और सपने देखने वाला दो वक्त की रोटी कमाने मे लग जाता है। सपने हकीकत और हम पिछरेपन का तमगा लिए जीते हैं अधुरेपन इक अवशेष सा है जो दफ़न है कहीं कहीं न कहीं।
                 *VinodkushwahaBlogs*
 
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