एक जुलाई वो तारीख़ थी जिसको खिसकाने की
लाख कोशिश के बावजूद भी 1 जुलाई को स्कूल खुल जाता था।
बदलते मौसम और बारिश के हल्के हल्के फव्वारे और खेत में धान कि रूपाई देख कर ईक अजीब सा डर लगने लगता था। ऐसे लगता था कि स्कूल जाने का मौसम आ ही गया है। क़रीब तीन महीने की छुट्टी के बाद हाथ को क्रिकेट वाला बैट पकड़ने की इतनी आदत हो चुकी होती थी कि पेन की ग्रिप बनने में जुलाई बीत जाता था।
एक जुलाई को सब कुछ नया हो जाता था ।
ज़िन्दगी में एक जुलाई से सब कुछ नया हो जाना
चाहिये किताबें, क्लास, जगह, बातें....सबकुछ।
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