(Vinod kushwaha) Born in Eastern UP, a microbiologist by profession and unseen storyteller by soul, I walk where science and literature walk the dusty roads together, weaving unseen stories.
Thursday, April 27, 2023
तजुर्बा और कांफिडेंस
अब आदमी समय के उस पड़ाव में आ गया है कि जब कभी कुछ चीजें जिन्दगी को डिस्टर्ब करतीं हैं। या कोई समस्या होती है! तो आदमी साइलेंट मोड में आ जाता हैं। और एकान्त में बैठकर जिन्दगी में चल रही उथल पुथल को बैलेंस करने की कोशिश करता है। कभी कभी लगता हैं एकान्त ही समस्याओं का निदान है। अब किसी से राय ने लेकर खुद की विचारधारा पे आगे बढ़ने में ही सुकून लगता है। कहीं न कहीं ऐसा लगता हैं उम्र के साथ हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस कि कमी नहीं रह गयी है अब। अब ख़ुद कि विचारो पे विश्वास होने लगा हैं। ऐसा लगता हैं जिन्दगी को करीब से समझने के बाद कांफिडेंस की कमी नहीं रह जाती हैं। तजुर्बा कांफिडेंस कि जननीं हैं। अब लगने लगा है 
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