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Thursday, June 1, 2023

ख्वाबों के अवशेष

इक जगह जहां आप बड़े सपने देखते हुए बड़े हुए हैं।
वो सपने जो अधूरे रह गये हैं। जब भी उस जगह पे वापस आओगे। सपने वैसे ही जिन्दा मिलते हैं कहीं अलमारियों में कहीं बरामदे में कहीं किसी टेबल पर पड़े हुए।  कभी कभी सोचता हूं उन सपनों का क्या जो जड़ें की रात में भीगते हुए बरसात में जुन की गर्मी में देखें थे। सोचता हूं जगह छोड़ते ही सपने भुलते गये। सोचता हूं वो सपने वापस गाव आने पे ही क्यों जिन्दा हो जातें हैं। शायद सपने यादें और जगह ये तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं।  अगर हम सपने की बात करें तो गांवों मे टुटी चारपाई पर लेटा हुआ बचा चंद को देखता है।  और चांद पर जाने की तमाम तरीके के बारे में सोचता है।  ग़रीबी और कम संसाधनों मे जो सपने आते हैं न वो अमीरों के घर में नहीं आते।  इतिहास गवाह है बड़े से बड़े साइंटिस्ट बदतर हालातों में रह कर कुछ ऐसा दिया हैं संसार को की सदियों तक रिसर्च चलता रहेगा।  सपने की बात करें तो बहुत बड़े बड़े सपने इन गांव के गलियारों में दफ़न हो जातें हैं ।  और सपने देखने वाला दो वक्त की रोटी कमाने मे लग जाता है। सपने हकीकत और हम पिछरेपन का तमगा लिए जीते हैं अधुरेपन इक अवशेष सा है जो दफ़न है कहीं कहीं न कहीं।

                 *VinodkushwahaBlogs*

Thursday, April 27, 2023

तजुर्बा और कांफिडेंस

अब आदमी समय के उस पड़ाव में आ गया है कि जब कभी कुछ चीजें जिन्दगी को डिस्टर्ब करतीं हैं। या कोई समस्या होती है! तो आदमी साइलेंट मोड में आ जाता हैं। और एकान्त में बैठकर जिन्दगी में चल रही उथल पुथल को बैलेंस करने की कोशिश करता है। कभी कभी लगता हैं एकान्त ही समस्याओं का निदान है। अब किसी से राय ने लेकर खुद की विचारधारा पे आगे बढ़ने में ही सुकून लगता है। कहीं न कहीं ऐसा लगता हैं उम्र के साथ हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस कि कमी नहीं रह गयी है अब। अब ख़ुद कि विचारो पे विश्वास होने लगा हैं। ऐसा लगता हैं जिन्दगी को करीब से समझने के बाद कांफिडेंस की कमी नहीं रह जाती हैं‌। तजुर्बा कांफिडेंस कि जननीं हैं। अब लगने लगा है 

Tuesday, April 4, 2023

बीतते वक्त

सुख के लम्हें तक के पास 
पहुँचते पहुँचते‌  हम उन लोगों से
जुदा हो जाते हैं,
जिनके साथ हमनें दुख झेलकर
सुख का स्वप्न देखा था।