(Vinod kushwaha) Born in Eastern UP, a microbiologist by profession and unseen storyteller by soul, I walk where science and literature walk the dusty roads together, weaving unseen stories.
Friday, November 26, 2021
उदास लड़के
Sunday, November 21, 2021
यात्राएं और हम
Thursday, November 4, 2021
गुल्लक सा बचपन
Monday, November 1, 2021
अच्छा लगता हैं
दिन के किसी भी वक़्त अपने लिए चाय बनाना ...
किसी अधूरी पढ़ी किताब को पूरा पढ़ जाना ...
किसी पुराने दोस्त से फ़ोन पर घंटो बतियाना ...
चाय के प्याले में बिस्किट का टूट के गिर जाना
जा कर बालकनी में कुछ पौधों से मिल कर आना ...
रूठना खुद ही से फिर खुद ही को समझाना ...
रेडियो पर कुछ पुराने गाने सुन कर गुनगुनाना
आईने में कुछ देर तक देखना खुद को ...
और देख कर कई तरह की शक्लें बनाना ...
अच्छा लगता है कभी कभी ...
खुद के साथ भी कुछ वक़्त बिताना ...
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हर बार कुछ भी वैसा नहीं होता।
हर बार कुछ नया दिखता है। कुछ पुराने के साथ। बच्चे बड़े हो जाते है, बड़े के चेहरे पे झुरिया आ गई होती है। बूढ़े और झुक गए होते है, पौधा पेड़ ...
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पुराने जगहों पे पुरानी चीजें ही। अतीत को याद दिलाती है। अगर पुरानी चीजें पुरानी जगह से सब कुछ बदल जाए तो। मान लेना चाहिए कि आप वहां कभी गए ...
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A There are a few things in life so beautiful they hurt: swimming in the ocean while it rains, reading alone in empty libraries, the sea...
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