दिन के किसी भी वक़्त अपने लिए चाय बनाना ...
किसी अधूरी पढ़ी किताब को पूरा पढ़ जाना ...
किसी पुराने दोस्त से फ़ोन पर घंटो बतियाना ...
चाय के प्याले में बिस्किट का टूट के गिर जाना
जा कर बालकनी में कुछ पौधों से मिल कर आना ...
रूठना खुद ही से फिर खुद ही को समझाना ...
रेडियो पर कुछ पुराने गाने सुन कर गुनगुनाना
आईने में कुछ देर तक देखना खुद को ...
और देख कर कई तरह की शक्लें बनाना ...
अच्छा लगता है कभी कभी ...
खुद के साथ भी कुछ वक़्त बिताना ...
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