A Few Things From My Diary
(Vinod kushwaha) Born in Eastern UP, a microbiologist by profession and unseen storyteller by soul, I walk where science and literature walk the dusty roads together, weaving unseen stories.
Tuesday, October 21, 2025
हर बार कुछ भी वैसा नहीं होता।
Sunday, July 6, 2025
आदमी बिन पैरों वाला
Sunday, June 1, 2025
गोदान: जहां हर किरदार किसी अपने जैसा लगता है"
Thursday, May 15, 2025
UPH प्रश्न-पुस्तिका: किताबों से जुड़ी एक परछाई
कुछ पेज को पलट के देखने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे किसी पुराने बहुत खास इंसान से मुलाकात हुई हो। यकीन मानिए पुराने इंसान में बदलाव आ सकता है। लेकिन पुरानी किसी वास्तु में नहीं। आप कभी मिल के देखना, किसी वास्तु से पुरानी खिलौने, पुरानी किताबे, पुरानी साइकिल, पुराने कपड़े, या पुराने किसी रास्ते से, हमे लगता है। अतीत को इंसानों से ज्यादा ये न बोलने वाली चीजें आपको याद दिल देगी। आपका अतीत।
Tuesday, April 15, 2025
“खेतों का इंतजार: बारिश और बचपन”
बेटा शहर में रहता है। अच्छा कमा लेता है अब। एक महीने की तनख्वाह से पूरा ६ महीने की फसल खरीद सकता है। लेकिन बारिश के बाद घर फोन कर के पिता से ये जान कर दुखी हो जाता है। कि इस बार की बारिश से गेहूं की फसल को नुकसान हो गया है। ये दुख पैसों की नुकसान का नहीं है। ये दुख है उसको उसके खेत और फसलों से लगाव का जहां उसका बचपना बीता है। वो बड़ा हुआ है। बढ़ती हुई फसलों के साथ। गेहूं धान की बालियों के साथ खेलते हुए। पकते हुए फसलों को देख कर वो महसूस किया है। लंबे इंतज़ार के बाद की खुशी जब पकी फसले आंगन में दस्तक देती है। तो जो खुशी जो सुकून आता है , उसको उस सुकून का छीन जाने का दुख है। उसको समृद्धियों का वापस आ जाने से दुख है। सबसे ज्यादा जो दुख हैं उसको वो पिता का दुखी हो जाना है। जिसकी भरपाई पैसों से नहीं की जा सकती। मेरा मानना है कि हर दुःख को पैसों से नही ठीक किया जा सकता।
Sunday, February 16, 2025
एकांत: भीड़ से परे, अपने सबसे करीब”
Monday, February 3, 2025
अतीत की दस्तक: जब चीज़ें बोल उठती हैं"
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हर बार कुछ भी वैसा नहीं होता।
हर बार कुछ नया दिखता है। कुछ पुराने के साथ। बच्चे बड़े हो जाते है, बड़े के चेहरे पे झुरिया आ गई होती है। बूढ़े और झुक गए होते है, पौधा पेड़ ...
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A There are a few things in life so beautiful they hurt: swimming in the ocean while it rains, reading alone in empty libraries, the sea...
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गोदान" जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव को बहुत गहराई से बया करता है। और आज भी पढ़ते वक्त लगता ही नहीं है। कि ये 1940 से पहले लिखी गई है...