(Vinod kushwaha) Born in Eastern UP, a microbiologist by profession and unseen storyteller by soul, I walk where science and literature walk the dusty roads together, weaving unseen stories.
Wednesday, March 8, 2023
बेरंग मन रंगीन हवाये
क्या क्या छिन लेती है जवानी होली और दिवाली बचपन की खुशियां गांव की गलियां मोहाले और बस्ती । बरसात की पानी और कागज की कस्ती। मां के हाथों का पकवान अपनों के हाथों का गुलाल। हेनडमैड पिचकारीया। बचपन की दोस्ती गलियों की मस्ती। अपने और खिलौने सब छिन लेती है। सोचता हूं जैसे जैसे हम संभलते है इक इक चिज छिन ली जाती हैं हमसे। सबसे लास्ट बार छिनी गयी थी कालेज की बैग तब से रंगीन जिन्दगी बेरंग सी हो गयी।। अब तो होली पे भी रंग फिका ही रहता हैं। जबसे बचपना गया होली रंगीन न हुई।।।
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