पुरानी शामों की कुछ गुत्थियाँ ...
हर शाम थोड़ी थोड़ी सुलझाते हैं ...
चाय की प्याली जाने कब खाली हो जाती है ..
सुबह के उड़े परिंदे छज्जे पर लौट के आते हैं
रात होने लगती है सांझ सोने लगती है ...
हम थोड़े खुद में रहते हैं और थोड़े खो जाते हैं ...
पुरानी शामों की कुछ गुत्थियाँ ...
हर शाम थोड़ी थोड़ी सुलझाते हैं ...
No comments:
Post a Comment