कमरे की सफाई करते वक़्त बक्से में 
कुछ पुरानी किताबें मिलीं,
उनकी धूल साफ करने पर पता लगा के 
वो किताबें कहानियों की नहीं थी, 
वो मेरे स्कूल की छठवीं क्लास की किताबें थी, 
मैं वहीं पास लगी कुर्सी पर बैठ कर उन्हें पढ़ने लगा,
मेरी नज़र किताबों के पन्नों पर थीं 
और ज़हन में वो छठवीं क्लास घूम रही थी, 
वो दोस्त वो टीचर की डांट 
वो छुट्टी की घंटी बजने का इंतज़ार
वो स्कूल के बाहर लगा कुल्फी का ठेला 
वो कच्ची सड़क वो पुरानी साइकिल 
जिसका हर १०० मीटर पर चैन उतरता था।
अब तो बचपन ऐसे ही मिला करता है,
कभी अलमारियों में किसी कपड़े में छुपा हुआ तो 
कभी बक्सों में किसी किताब या खिलोने में
बसा हुआ, कभी मिलना हो बचपन से तो 
ढूंढना ऐसी ही किसी जगह पर, 
और अगर हो सके तो उसे वहां से 
निकाल कर अपने साथ रख लेना ...
 
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