क्या आपमें से किसी के साथ कभी ऐसा हुआ है कि कोई डरावना सपना देखते हुए अचानक आधी रात को आपकी नींद खुल गई हो, वह सपना भले ही टूट चुका हो लेकिन आप अपने शरीर को हिलाने या कुछ बोलने में खुद को असमर्थ पाते हैं? आप जोर से चिल्लाना चाहते हैं लेकिन आवाज़ नहीं निकलती. मेरे साथ तो कई बार हुआ है.
जिन लोगों ने जीवन में कभी ऐसे हालात का अनुभव नहीं किया है उनके लिए यह एक कहानी हो सकती है. लेकिन जो लोग इस दौर से गुजरे हैं उनके लिए यह सब बेहद खौफनाक है. क्योंकि यह ऐसा समय होता है, जब हम जाग तो रहे होते हैं लेकिन पूरी तरह अपने शरीर पर नियंत्रण को खो देते हैं. यह एक बहुत ही डरावना अनुभव है.
ये मेरे कई निजी अनुभवों में से एक ऐसा अनुभव है जिसे मैंने आज तक किसी के साथ नहीं बांटा. हाँ जब छोटा था तो अकेले अँधेरे में नहीं जाता था. अकेले नहीं सोता था. लेकिन मुझे कुछ ही चीज़ों से डर लगता था जैसे: अँधेरे से और भूत-प्रेतों से.
तो क्या भूत प्रेत होते हैं. क्या मृत्यु के बाद कुछ बचता है?? क्या आत्मा होती है? स्वामी अभेदानंद की लिखी पुस्तक “Life Beyond Death” जो मैंने वर्ष 2013 में पढ़ी थी या खुर्शीद भाव नगरी की “The Laws of the spirit world” जो हाल ही में पढ़ी है के अनुसार हाँ. अगर मुझसे पूछा जाए कि मेरा अनुभव क्या है तो उत्तर सकारात्मक ही होगा.
बहरहाल जीवन जिसे हम देख रहे हैं जब वो इतना रहस्यमयी है तो मृत्यु कितनी रहस्यमयी होगी सोच से परे है. नींद में किसी डरावने सपने को देख कर नींद का खुल जाना और शरीर का निढाल पड़े रहना, दो तरह से देखा जाता है. दर्शन शास्त्र में इसे शरीर और आत्मा के अलग होने से जोड़ा जाता है. जब हम नींद में होते हैं तो हमारी आत्मा ट्रेवल करती है. और कुछ अतीव संवेदनशील लोग इन दोनों को अलग देख पाते हैं.
वहीं शरीर विज्ञान इसे एक शारीरिक समस्या के रूप में देखता है जिसे “स्लीप पैरालिसिस” नाम दिया गया है. यह एक ऐसी अवस्था है जब नींद खुलने के बाद भी मस्तिष्क ‘अटैक’ के दायरे में ही रहता है और खौफ को महसूस करता है. कभी कभार स्लीप पैरालिसिस में यह भ्रम हो जाता है कि कोई तीसरा व्यक्ति कमरे में घुस आया है. स्पिरिट वर्ल्ड में इसे आत्मा को महसूस करना कहते हैं.
कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि नींद में जो डरावना सपना हम देख रहे होते हैं, आंख खुलने के बाद भी वह पीछा कर रहा होता है, जिसकी वजह से हम उस डर से बाहर नहीं निकल पाते. परिणामस्वरूप स्लीप पैरालिसिस हो जाता है. क्योंकि डर इतना खतरनाक होता है कि डर की वजह से शरीर जड़ हो जाता है.
बहुत से लोगों ने यह भी दावा किया है कि नींद खुलते ही उन्हें ऐसा लगता है कि उनके सीने पर कोई दबाव बना रहा है. इसे कुछ लोग प्रेत आत्मा का दबाव कहते हैं. चीनी अवधारणा में यह अनुभव जानलेवा भी माना गया है.
यह समस्या बहुत आम है लेकिन अधिकतर लोग इसे स्वीकार नहीं करते हैं. उन्हें डरपोक समझे जाने कर डर होता है. बड़ी अफसोस की बात यह है कि अभी तक विज्ञान के पास स्लीप पैरालिसिस को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है कि यह वाकई किसी तरह की बीमारी है, इसके पीछे कोई पारलौकिक शक्ति है या फिर यह सब मस्तिष्क का भ्रम मात्र है.
डर के शरीर विज्ञान के अध्ययन से पता चलता है कि जब हम डरते हैं तब एड्रेनल ग्रंथियों, अर्थात् एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल द्वारा एक विशेष तरह के हार्मोन का उत्सर्जन होता है. यह हॉर्मोन लोगों में अलग अलग प्रतिक्रियाओं जैसे उत्तेजना या अवरोध को जन्म देते हैं. इस पर बहुत शोध की आवश्यकता है. यह रसायन अभी भी एक रहस्य बना हुआ है.
हम उस दौर में बड़े हुए हैं जब टी.वी. पर “Zee Horror Show” और “Aahat” जैसे सीरियल आते थे. रामसे ब्रदर्स के फूहड़ डरावनी फिल्मों का दौर था वो. लेकिन यकीन मानें कि मैं इनमें से कोई भी सीरियल या फिल्म नहीं देखता था. क्यूंकि मैं हर एक चीज़ को रिअलाइज कर सकता था. मुझे लम्बे समय तक इस बात का पूरा यकीन रहा कि मैं डरपोक हूँ.
लेकिन बाद में मैंने डर के कारण और उसके निवारण के लिए काफी अध्ययन किया. मृत्यु के सम्बन्ध में भी दर्शन और विज्ञान की ख़ाक छानी और फिर डर का सामना करने का निश्चय किया.
बस्तर जिले के एक छोटे से कसबे जगदलपुर में हमारा पक्का मकान था और मकान के पीछे कुछ पुश्तैनी मिट्टी के बने कमरे. मैंने एक कमरे को अपने अध्ययन के लिए सजाया. मिट्टी का यह कमरा घर के पीछे अँधेरे में था और मैंने शुरुआत इस कमरे में रहकर की.
यह कमरा मेरे ताऊ जी का था जिन्हें हम प्यार से बाबा कहते थे. उनकी मृत्यु गाँव के कुँए में डूबकर हुई थी. मैंने महसूस किया था उनका कुँए में डूबना. मरने के बाद भी लगभग तीन महीने तक वो मुझसे बात करने की कोशिश करते रहे. आधी रात को उनकी आवाज़ मेरे कानों में गूंजती थी. लगता था जैसे वो मुझे कहीं दूर से बुला रहे हैं. रात के समय कमरे में होते थे मैं और मेरे सभी तरह के डर. कई रात नहीं सोया. डर से बातें करते बिता दी. मैंने डर को करीब से देखा है, डर से बातें की है, दो-दो हाथ भी किये हैं और अब उबर गया हूँ सभी तरह के डरों से.
समय रहते अपने डर को पहचानने की आवश्यकता है क्यूंकि डर से मुक्ति पाने की पहली आवश्यकता है डर को जानना उसे पहचानना. डर से मुक्त हुए बिना जीवन के उन्मुक्त आकाश में विचारना संभव नहीं
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