कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ|
हर रोज़ इम्तिहान लेती है जिंदिगी,
हर रोज़ मगर मैं मोहब्बत चुनता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हू…
बहुत दूर चला आया हूँ कारवाँ से, तन्हा रास्तों में एक हमसफ़र ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
अंधेरों में तुम्हारा चेहरा साफ़ दिखता है,
तुम सामने होते हो जब आँख मूंदता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
सिर्फ एहसास ए मोहब्बत बन जाता हूँ,
जब तेरी जबीं को मैं चूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
तेरे होते हुए सुखन मुमकिन नहीं, तेरे जाते ही अपनी कलम ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
सब हैरान हैं देख कर रक्स ए इश्क, मैं तेरी वफ़ा में ऐसा झूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
दिल में आशियाने की आरजू लिए, मैं शहरों शहरों घूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
लोग सुनाते हैं और मैं सुनता हु, बस कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…
No comments:
Post a Comment