हर शहर के बीच में कही न कही कुछ एकांत स्थान होता है।
जो बया करता है अपना अतीत। की उन्हें कैसे मिटाया गया,
कैसे एक हरे भरे मैदान पेड़ पौधों और कच्ची सड़कों को
उजड़ कर ऊंची ऊंची इमारतों और कंक्रीट का रास्तों को बनाया गया। लेकिन सुनता कौन है।
शोरो के बीच दबी हुई धीमी आवाजों को जो आवाजें अब विलुप्त होने के कगार पे जा चुकी हो। न जाने ऐसे ही कितनी आवाजें झोपड़पट्टियों से निकल कर ऊंची इमारतों और सरकारी दफ्तरों तक नहीं पहुंच पाती। कई आवाजें इंसान से निकल कर दूसरे इंसान तक नहीं पहुंच पाती। कुछ धीमी आवाजें तो खुद के कानों तक भी नहीं पहुंच पाती। वो आवाजें जो कभी शोर किया करती थी एक समय में। वो आवाजें अब किसी और शोर के वजह से अब धीमी सुनाई देती है! कही न कही हमें लगता है धीमी आवाजें एकांत पैदा करती है। और इसे सुनने के लिए एकांत कि जरूरत होती है। शोरो के बीच धीमी आवाजें कभी सुनाई नहीं देगी विज्ञान कहता है। अगर कभी किसी धीमी आवाजों को सुनना है तो उससे एकांत में मिलो। हमे लगता है हर चीज कुछ न कुछ कहती है। कभी किसी इंसान से ही मिलो किसी एकांत में, हमे लगता है हर इंसान के अन्दर अनगिनत कई सारी धीमी आवाजें है। जो बाहर आने के लिए एकांत ढूंढती है।