कभी कभी हम उस मोड़ पर मुड़ जाते हैं.
जो जाता तो वहीं है जहां हमें जाना होता है
मगर वो रास्ता जाना पहचाना नहीं होता.
उस नए रास्ते पर बढ़ते हुए याद आते हैं हमें ...
वो पुराने जाने पहचाने रास्ते के बीच के शहर ...
वो कुछ ठिकाने कुछ दुकानें कुछ छोटे बड़े दरख़्त ...
और कभी कभी इस नए रास्ते की नई रौनकें ...
हमें वो पुराना रास्ता याद ही नहीं आने देतीं...
जो भुल जाते हैं
जैसे स्कूल कि कच्चे सड़कें कालेज के रास्ते
गांव कि पगडंडिया। कभी गुज़र के देखना इन रास्तों से
ये आज भी पहचान जाती हैं और लगता है आवाज़ दे रही हैं। आज इन रास्तों से गुजरते हुए ये महसूस होता है कि
शहर की पकी चमचमाती हुई रास्ते बस बेचैनीया पैदा करती है अन्दर सुकुन तो ये पुरानी कच्चे रास्ते देती थीं जब हम चला करते
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