मैं जब भी किसी सफ़र से लौट कर घर आता हूँ ...
कुछ सामान भूल आता हूँ अपना सफ़र में ...
कुछ नया सामान सफ़र से अपने साथ ले आता हूँ ...
बिखरने लगती हैं कुछ उलझनें कुछ बेचैनियां मेरी ...
खिलते हुए खेतों, बहती हुई नदियों, हंसते हुए बच्चों को देख कर ...
कुछ चेहरों पर कई दिनों बाद घर जाने का सुकून देख कर ...
कुछ चेहरों पर घर से दूर अपने ख्वाबों को पाने का जुनून देख कर ...
भर उठता है दिल जब कुछ अजनबियों से बेपनाह प्यार पाता हूँ ...
सफ़र का सुकून, सफ़र की शामें, सफ़र की हलचल, सफ़र का प्यार ...
सब कुछ थोड़ा थोड़ा मन की जेबों में भर लाता हूँ ...
मैं जब भी किसी सफ़र से लौट कर घर आता हूँ ...
कुछ सामान भूल आता हूँ अपना सफ़र में ...
कुछ नया सामान सफ़र से अपने साथ ले आता हूँ ...
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