Saturday, October 23, 2021

इक ख्याल

एक ख़याल से दूसरे ख़याल में 
बहते हुए भी जो एक ख़याल ज़हन में रहता है,
जिसमें जाने की, रुकने की, 
और फिर कुछ देर रुक कर वापस बाहर आने की
ज़रूरत नहीं होती, जो तब भी साथ होता है 
जब मैं होता हूँ मश्गूल बहुत किसी काम में, 
या जब होता हूँ शोर भरे बीच बाज़ार में, 
जब कुछ खरीद रहा होता हूँ
या फिर जब सड़क पर गुब्बारे से खेलते 
किसी बच्चे को देख रहा होता हूँ, जो
तब भी साथ होता है जब में सूनसान रातों में 
किसी पुराने गाने में खोता हूँ, या
किसी एकान्त के किनारे बैठ कर हवाओं 
की आवाज़ को कानों से दिल तक सफर
करते महसूस करता हूँ, 
वो ख़याल जो हर पल हर जगह मेरे साथ है...
वो तेरा ख़याल है ..

Saturday, October 16, 2021

वो शाम पुरानी बचपन की

पुरानी शामों की कुछ गुत्थियाँ ...
हर शाम थोड़ी थोड़ी सुलझाते हैं ...
चाय की प्याली जाने कब खाली हो जाती है ..
सुबह के उड़े परिंदे छज्जे पर लौट के आते हैं
रात होने लगती है सांझ सोने लगती है ...
हम थोड़े खुद में रहते हैं और थोड़े खो जाते हैं ...
पुरानी शामों की कुछ गुत्थियाँ ...
हर शाम थोड़ी थोड़ी सुलझाते हैं ...

Saturday, October 2, 2021

कुछ पुरानी यादें

कमरे की सफाई करते वक़्त बक्से में 
कुछ पुरानी किताबें मिलीं,
उनकी धूल साफ करने पर पता लगा के 
वो किताबें कहानियों की नहीं थी, 
वो मेरे स्कूल की छठवीं क्लास की किताबें थी, 
मैं वहीं पास लगी कुर्सी पर बैठ कर उन्हें पढ़ने लगा,
मेरी नज़र किताबों के पन्नों पर थीं 
और ज़हन में वो छठवीं क्लास घूम रही थी, 
वो दोस्त वो टीचर की डांट 
वो छुट्टी की घंटी बजने का इंतज़ार
वो स्कूल के बाहर लगा कुल्फी का ठेला 
वो कच्ची सड़क वो पुरानी साइकिल 
जिसका हर १०० मीटर पर चैन उतरता था।
अब तो बचपन ऐसे ही मिला करता है,
कभी अलमारियों में किसी कपड़े में छुपा हुआ तो 
कभी बक्सों में किसी किताब या खिलोने में
बसा हुआ, कभी मिलना हो बचपन से तो 
ढूंढना ऐसी ही किसी जगह पर, 
और अगर हो सके तो उसे वहां से 
निकाल कर अपने साथ रख लेना ...

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