एक ख़याल से दूसरे ख़याल में 
बहते हुए भी जो एक ख़याल ज़हन में रहता है,
जिसमें जाने की, रुकने की, 
और फिर कुछ देर रुक कर वापस बाहर आने की
ज़रूरत नहीं होती, जो तब भी साथ होता है 
जब मैं होता हूँ मश्गूल बहुत किसी काम में, 
या जब होता हूँ शोर भरे बीच बाज़ार में, 
जब कुछ खरीद रहा होता हूँ
या फिर जब सड़क पर गुब्बारे से खेलते 
किसी बच्चे को देख रहा होता हूँ, जो
तब भी साथ होता है जब में सूनसान रातों में 
किसी पुराने गाने में खोता हूँ, या
किसी एकान्त के किनारे बैठ कर हवाओं 
की आवाज़ को कानों से दिल तक सफर
करते महसूस करता हूँ, 
वो ख़याल जो हर पल हर जगह मेरे साथ है...
वो तेरा ख़याल है ..
