एक हम हैं जो अभी भी वही लिबास पहने हुए हैं
रेशो की परतों पर कुछ धूल भी जम चुकी है
यादों की तपिश में कुछ रंग भी हल्का हो गया है
कुछ कड़वी यादो के जख्म धोए तो थे
मगर दाग जाने का नाम ही नहीं लेते
एक रोज कोशिश भी की थी उस लिबास को उतारने की
पर तुम्हारी यादों की हवायें इतनी सर्द थी
की उसे बिना पहने रूह की ठंडक जाती ही न थी
खैर अभी भी वो लिबास मुझे जकड़े हुए है
शायद मुझे आदत नहीं है कमीज़ की तरह रिश्ते बदलने की !!!!
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